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नरसिंह जयंती पर भक्त प्रह्लाद कथा

नरसिंह जयंती पर भक्त प्रह्लाद कथा

Bhakt Prahlad Katha: नरसिंह जयंती पर अपने बच्चों को सुनाएं ये कथा, इससे बढ़ेगा उनका आत्मविश्वास


नरसिंह जयंती हिंदू धर्म का एक अत्यंत पावन पर्व है, जिसे वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। यह दिन भगवान विष्णु के चौथे अवतार, नरसिंह अवतार के प्रकट होने की स्मृति में मनाया जाता है। इस साल नरसिंह जयंती 11 मई को मनाई जाएगी। इस दिन भगवान विष्णु ने अपने प्रिय भक्त प्रह्लाद की रक्षा के लिए असुर हिरण्यकश्यप का वध किया था।


बच्चों को भक्त प्रह्लाद की कथा सुनाकर प्रदान करें धार्मिक संस्कार 

यह पर्व अच्छाई की बुराई पर विजय का प्रतीक है और माताओं के लिए यह एक विशेष अवसर होता है कि वे अपने बच्चों को भक्त प्रह्लाद की कथा सुनाकर धार्मिक संस्कार दें। यह कथा न केवल बच्चों में धार्मिक आस्था को जागृत करती है, बल्कि उन्हें सत्य, धर्म और भक्ति की शक्ति से भी परिचित कराती है।


हिरण्यकश्यप ऐसा करता था अपने पुत्र प्रह्लाद को प्रताड़ित 

भक्त प्रह्लाद की एक अत्यंत प्रेरणादायक कथा पौराणिक ग्रंथों में वर्णित है। शक्तिशाली राक्षस हिरण्यकश्यप ने कठोर तपस्या कर ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त किया कि वह न दिन में मरेगा, न रात में, न किसी मनुष्य से, न पशु से, न घर के भीतर, न बाहर, और न किसी अस्त्र या शस्त्र से उसका वध हो सकेगा। इस वरदान के कारण उसने खुद को भगवान घोषित कर दिया और सभी से अपनी पूजा करवाने लगा।

परंतु उसका पुत्र प्रह्लाद, बचपन से ही भगवान विष्णु का परम भक्त था। वह अपने पिता के आदेशों की अवहेलना कर निरंतर भगवान विष्णु की भक्ति में लीन रहता था। हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को समझाने के कई प्रयास किए, किंतु जब वह नहीं माना, तो उसे मारने के अनेक प्रयास किए, कभी विष देने की कोशिश की, कभी ऊँचाई से फेंक दिया, और यहां तक कि होलिका के साथ अग्नि में बैठा दिया गया। परंतु हर बार भगवान विष्णु ने प्रह्लाद की रक्षा की।


नरसिंह अवतार और हिरण्यकश्यप का वध 

अंत में जब हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को मृत्यु के घाट उतारने के लिए अंतिम प्रयास किया, तब भगवान विष्णु ने नरसिंह रूप धारण कर, जो आधा मनुष्य और आधा सिंह था। उन्होंने संध्या समय (जो न दिन था न रात), घर के चौखट पर  (जो न घर के भीतर था न बाहर), हिरण्यकश्यप को अपनी गोद में रखकर, नाखूनों (जो न अस्त्र थे न शस्त्र) से उसका वध किया। इस प्रकार भगवान नरसिंह ने धर्म की रक्षा और अधर्म का नाश किया।


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