Baisakhi 2025: कैसे मनाई जाती है वैशाखी, सांस्कृतिक कार्यक्रमों का होता है आयोजन
वैशाखी भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है, जिसे विशेष रूप से पंजाब और उत्तर भारत में बड़े उत्साह और श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। यह केवल एक धार्मिक त्योहार नहीं है, बल्कि फसलों की कटाई का पर्व, सिख नववर्ष, और खालसा पंथ की स्थापना का प्रतीक भी है। यह हर साल अप्रैल महीने में मनाया जाता है जब सूर्य मेष राशि में प्रवेश करता है, जिसे मेष संक्रांति भी कही जाती है।
वैशाखी पर मनाई जाती है गुरुद्वारों में जश्न
वैशाखी पर देशभर के गुरुद्वारों में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। भक्त गुरबाणी सुनते हैं, शांति पाठ करते हैं और प्रभात फेरियों में भाग लेते हैं। गुरुद्वारों में लंगर का आयोजन किया जाता है, जहां सभी जाति, धर्म और वर्ग के लोग एक साथ बैठकर भोजन करते हैं, जो एकता और समानता का प्रतीक है।
भांगड़ा और गिद्दा कर मनाते हैं वैशाखी का पर्व
वैशाखी के दिन घरों में खीर, शरबत, मिठाई और तरह-तरह के पकवान बनाए जाते हैं।
महिलाएं और पुरुष पारंपरिक पंजाबी पोशाक पहनकर भांगड़ा और गिद्दा जैसे नृत्य करते हैं। इन नृत्यों के माध्यम से वे अपनी खुशी और आभार व्यक्त करते हैं। साथ ही, एक दूसरे को नव वर्ष की शुभकामनाएं देते हैं।
कई जगहों पर मेले और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, जिनमें लोक संगीत, खेलकूद और हस्तशिल्प की प्रदर्शनी दिखाई जाती है।
वैशाखी पर होती है रबी फसल की कटाई
वैशाखी रबी फसल के पकने का प्रतीक है और इसे किसान बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। जब खेतों में गेहूं की सुनहरी बालियां लहलहाती हैं, तो किसान अपनी मेहनत का फल देखकर भगवान को धन्यवाद देते हैं। साथ ही, इस दिन वे नई फसल की कटाई करते हैं और उसका कुछ भाग मंदिरों और गुरुद्वारों में दान कर समृद्धि के लिए प्रार्थना करते हैं।
सिख समुदाय के लिए वैशाखी का विशेष धार्मिक महत्व होता है क्योंकि यह उनका नव वर्ष भी है। इस दिन 1699 में सिखों के दसवें गुरु, श्री गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। उन्होंने पांच प्यारों का चयन कर सिख धर्म को एक नई पहचान दी थी।
हिंदू धर्म में अमावस्या तिथि को स्नान और दान के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण माना गया है। प्रत्येक माह आने वाली अमावस्या को अलग-अलग नामों से जाना जाता है। माघ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मौनी अमावस्या कहते हैं।
मौनी अमावस्या पर महाकुंभ का दूसरा अमृत स्नान होगा। इस बार अमावस्या तिथि को काफी खास माना जा रहा है। बता दें कि महाकुंभ का आयोजन प्रयागराज में 13 जनवरी से शुरू हो चुका है और रोजाना करीब लाखों की संख्या में श्रद्धालु संगम में स्नान करने के लिए पहुंच रहे हैं।
महाकुंभ 2025 में बसंत पंचमी का महत्व विशेष रूप से बढ़ जाता है क्योंकि इस दिन तीसरा अमृत स्नान होना तय हुआ है। यह स्नान त्रिवेणी संगम में होगा जहां देश के कोने-कोने से साधु संत और श्रद्धालु पहुंचे हुए हैं।
ज्योतिष शास्त्र में कुंडली का बहुत महत्व है, और ग्रहों की स्थिति हमारे जीवन के हर पहलू को प्रभावित करती है। गुरु, जिसे बृहस्पति भी कहा जाता है, को देवताओं का गुरु माना जाता है और इसका कुंडली में विशेष महत्व होता है।