Logo

विजय लक्ष्मी की महिमा

विजय लक्ष्मी की महिमा

विजय लक्ष्मी : जानिए क्या है माता लक्ष्मी के अवतार विजय लक्ष्मी की महिमा, पूजा करने से हो सकते हैं कौन-कौन से लाभ


विजय का मतलब होता है जीत। अष्ट लक्ष्मी का एक स्वरूप विजय लक्ष्मी, विजया लक्ष्मी या जया लक्ष्मी का भी है जो जीत का ही प्रतीक माना गया है। यह देवी धन और कार्य क्षेत्र में जीत दिलाती है। Bhakt Vatsal की दीपावली पूजन और अष्ट लक्ष्मी के स्वरूपों के वर्णन की कड़ी में यहां जानिए विजयलक्ष्मी के बारे में विस्तार से। 


विजयलक्ष्मी या जयालक्ष्मी  का स्वरूप 


माता लाल साड़ी में एक कमल पर बैठी अष्ट भुजा वाली हैं। उनके हर हाथ में अस्त्र शस्त्र है। मैया का वर्ण गुलाबी आभा वाला है। मैया सुंदर श्रंगार में हैं और हीरे, मोती और रत्न जड़ित स्वर्ण आभूषणों से विभूषित हैं। मैया के हाथों में चक्र, शंख, कमल, तलवार, ढाल, भाल और एक हाथ अभय मुद्रा तो दूसरे में वर मुद्रा है। 


ऐसे करें माता की पूजा 


  • संध्याकाल में ईशानमुखी होकर देवी की पंचोपचार से विधिवत पूजा करें।
  • गौघृत यानी गाय के घी का दीप जलाएं, चंदन की अगरब‍त्ती जलाएं, गुलाब का फूल चढ़ाएं। 
  • अबीर सहित पूजन सामग्री से पूजन करें। 
  • साबूदाने की खीर का भोग लगाएं।


मंत्र:-


“ॐ क्लीं कनकधारायै नम:।” 


विजय लक्ष्मी से जुड़ी पौराणिक कथा 


विजय लक्ष्मी की उत्पत्ति समुद्र मंथन के दौरान कमल के फूल पर खड़ी होकर बाहर निकलते हुए बताई गई है। लक्ष्मी जी को श्री, पद्मा, कमला, पद्म प्रिया, पद्ममाला, धर देवी के नाम से भी पूजा जाता है।


विजय लक्ष्मी की पूजा से लाभ?  


>> भय दूर होता है और विजय मिलती है। 

>> जीत की देवी हर क्षेत्र में विजय देने वाली है। 

>> पारिवारिक सुख में वृद्धि होती है।

>> घर में आनंद की अनुभूति होती है।

>> मां लक्ष्मी की विशेष कृपा होती है।

>> घर में सुख-समृद्धि और लक्ष्मी की वृद्धि होती है।

>> घर का वैभव और शांति बढती है।

>> आर्थिक स्थिति में सुधार होता है।

>> उत्तम स्वास्थ्य और सामाजिक मान >> सम्मान में वृद्धि होती है।

>> कारोबार में वृद्धि, नौकरी में तरक्की होती है।

>> शत्रु पर विशेष सफलता प्राप्त होती है।

>> यश, ऐश्वर्य और कार्यों में सफलता हासिल होती है।


विजय लक्ष्मी स्तोत्र 


जय कमलासनि सद-गति दायिनि ज्ञानविकासिनि गानमये ।
अनुदिन मर्चित कुङ्कुम धूसर भूषित वसित वाद्यनुते ।
कनकधरास्तुति वैभव वन्दित शङ्करदेशिक मान्यपदे ।
जय जय हे मधुसूदन कामिनि विजयक्ष्मि परिपालय माम् । 

........................................................................................................
महाकुंभ के पहले दिन बन रहा शुभ संयोग

हर 12 साल में कुंभ का आयोजन होता है। यह हिंदू धर्म के लोगों का सबसे बड़ा समागम है। इसे आध्यात्मिक ऊर्जा और आस्था का पर्व कहा जाता है। महाकुंभ में लाखों श्रद्धालु विभिन्न तीर्थों में गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर स्नान करने के लिए आते हैं ।

नागा साधुओं से जुड़े कठोर नियम

महाकुंभ 2025 की शुरुआत प्रयागराज में हो रही है। इसके लिए साधु-संत भी पहुंच गए हैं। इनमें से कई साधु संत श्रद्धालुओें के आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। खासकर नागा साधुओं को देखने के लिए बड़ी भीड़ उमड़ रही है। बता दें कि नागा साधु सनातन धर्म के एक विशेष और रहस्यमय संप्रदाय है।

महिलाएं भी होती हैं नागा साधु, जानें उनके नियम

प्रयागराज महाकुंभ की शुरुआत हो चुकी है। 14 जनवरी को मकर संक्रांति पर पहला शाही स्नान हुआ। इस दौरान बड़ी संख्या में अखाड़ों के साधु संतों ने आस्था की डुबकी लगाई। 13 अखाड़ों ने अपने क्रम के अनुसार स्नान किया।

महामंडलेश्वर कैसे बनते हैं

अध्यात्म का मार्ग आसान नहीं होता। यह एक ऐसा पथ है, जहाँ साधना, तपस्या और त्याग के कठिन इम्तिहान से गुजरना पड़ता है। जब बात साधु-संतों की हो, तो यह मार्ग और भी चुनौतीपूर्ण हो जाता है। इसी कठिन राह पर चलते हुए एक पद ऐसा है, जिसे सर्वोच्च सम्मान और गौरव प्राप्त है...महामंडलेश्वर।

यह भी जाने
HomeAartiAartiTempleTempleKundliKundliPanchangPanchang