मथुरा के वृंदावन में स्थित निधिवन, भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं का एक पवित्र साक्षी है।
यहां भगवान की मधुर छवि और उनके प्रेम की अद्भुत कहानियां आज भी सभी भक्तों के दिलों में बसी है। कृष्ण भक्तों की अटूट श्रद्धा का केंद्र, निधिवन में रोजाना हजारों भक्त श्रीकृष्ण और राधा जी के दर्शन के लिए आते हैं। ऐसी मान्यता है कि निधिवन में आज भी रात के समय भगवान श्रीकृष्ण अपनी गोपियों के साथ रासलीला का आनंद लेते हैं। इस पवित्र लीला को देखना मनुष्यों के लिए वर्जित है, इसलिए सूर्यास्त के पश्चात निधिवन में प्रवेश निषिद्ध है।
आइए, जानते हैं कि इस पावन स्थल में रात को प्रवेश क्यों वर्जित है।
निधिवन, वृंदावन का एक अत्यंत पवित्र और रहस्यमयी वन है। यह वन भगवान श्रीकृष्ण और राधा रानी के प्रेम की लीलाओं का साक्षी रहा है। निधिवन की सबसे बड़ी खासियत है रंगमहल। यह एक छोटा सा महल है, जिसके बारे में कई रहस्यमयी कहानियां प्रचलित हैं।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, शाम को निधिवन में आरती के बाद सभी श्रद्धालुओं को वहां से बाहर कर दिया जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि रात के समय भगवान श्रीकृष्ण अपने सखियों के साथ रंगमहल में रासलीला रचाने आते हैं। यह माना जाता है कि जो कोई भी रात को रंगमहल में प्रवेश करता है, वह भगवान श्रीकृष्ण के दिव्य नृत्य को देखकर पागल हो जाता है या उसकी मृत्यु हो जाती है।
इसलिए, निधिवन में रात को प्रवेश करना वर्जित है। यह एक ऐसा रहस्य है जो सदियों से लोगों को आकर्षित करता रहा है। कई लोगों का मानना है कि निधिवन में एक अदृश्य शक्ति काम करती है जो रात को वहां किसी को प्रवेश करने नहीं देती।
रंगमहल और निधिवन के रहस्य आज भी पूरी तरह से सुलझे नहीं हैं। कई लोग इन कहानियों को मिथक मानते हैं, जबकि कई लोग इन पर अटूट विश्वास रखते हैं। लेकिन एक बात तो निश्चित है कि निधिवन और रंगमहल हमेशा से लोगों की जिज्ञासा का केंद्र रहे हैं और रहेंगे।
लोक मान्यता है कि निधिवन में रात्रि के समय भगवान श्रीकृष्ण स्वयं विश्राम करते हैं। उनके लिए प्रतिदिन पंडितजी शयन के लिए आसन तैयार करते हैं। किंतु अगले दिन प्रातःकाल जब मंदिर के द्वार खोले जाते हैं, तो शय्या अस्त-व्यस्त पाई जाती है। यह दृश्य भक्तों को अत्यंत आश्चर्यचकित करता है। निधिवन के मंदिर में प्रतिदिन भगवान को माखन और मिश्री का भोग लगाया जाता है, जो कि भगवान श्रीकृष्ण को अत्यंत प्रिय है। शेष भोग को प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है, और विस्मयजनक रूप से प्रातःकाल यह बिल्कुल साफ और ताजा पाया जाता है।
वृंदावन का निधिवन शरद पूर्णिमा पर विशेष महत्व रखता है। इस वन में रात में प्रवेश करने की मनाही होती है। ऐसा कहा जाता है कि यहां रात गुजारने वाला मानसिक रूप से अस्वस्थ हो सकता है। ऐसा कहा जाता है कि शाम के समय एक अजीब सा माहौल बन जाता है और जानवर-पक्षी यहां से दूर चले जाते हैं। स्थानीय लोग इस वन को बहुत पवित्र मानते हैं और यहां की रात की आरती के बाद सभी खिड़कियां बंद कर दी जाती हैं। ऐसा कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण साक्षात राधा रानी और गोपियों के साथ वृंदावन में रास रचाते हैं।
देवी दुर्गा का चौथा स्वरूप मां कूष्मांडा का हैं, जिनकी चैत्र नवरात्रि के चौथे दिन पूजा की जाती है, मां का यह स्वरूप शक्ति, ऊर्जा और आत्मज्ञान का प्रतीक है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मां कूष्मांडा के मंद मुस्कान से इस सृष्टि की रचना हुई थी।
लोक आस्था का महापर्व चैती छठ सूर्य देव और छठी मैया को समर्पित है। यह 4 दिनों तक चलता है। यह पर्व चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से शुरू होकर सप्तमी तिथि तक चलता है।
छठ सिर्फ एक पर्व नहीं, बल्कि महापर्व है, जो चार दिनों तक चलता है। इसकी शुरुआत नहाय-खाय से होती है, जो डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य देकर समाप्त होता है। ये पर्व साल में दो बार मनाया जाता है, पहली बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक में।
हिंदू धर्म में आस्था और सूर्य उपासना का सबसे बड़ा पर्व चैती छठ को माना जाता है। छठ पूजा साल में दो बार कार्तिक और चैत्र माह में मनाई जाती है। कार्तिक छठ की तुलना में चैती छठ को कम लोग मनाते हैं, लेकिन इसका धार्मिक महत्व भी उतना ही खास है।