अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने 13 प्रमुख अखाड़ों को मान्यता दे रखी है। इन्हीं में से एक अखाड़ा है नागपंथी गोरखनाथ अखाड़ा। इस अखाड़े से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी जुड़े हुए है। यह हिंदू परंपरा का एक अहम अखाड़ा है, जिसका नाथ संप्रदाय से संबंध है। इसकी स्थापना 866 ईस्वी में पीर शिवनाथ जी ने अहिल्या गोदावरी संगम पर की थी। पीर शिवनाथ जी नाथ संप्रदाय के प्रसिद्ध संत थे। वहीं इसके इष्ट देव बाबा गोरखनाथ है। अखाड़ा भगवान शिव का उपासक है। चलिए नागपंथी गोरखनाथ अखाड़े के बारे में आपको विस्तार से बताते हैं।
नाथ संप्रदाय का नागपंथी गोरखनाथ अखाड़े से गहरा और ऐतिहासिक संबंध है। नाथ संप्रदाय में 12 पंथ है। नागपंथी गोरखनाथ अखाड़ा बारह पंथों में से एक है। यह संप्रदाय की एक प्रमुख शाखा है, जिसके सिद्धांतों का पालन करते हुए साधु संत आध्यात्मिक विकास करते हैं और समाज के कल्याण के लिए कार्य करते हैं।
बाबा गोरखनाथ को नाथ अखाड़े का प्रमुख संत माना जाता है।उन्होंने इस संप्रदाय को एक संगठित किया और इसकी शिक्षाओं को जन-जन तक पहुंचाया। इसी कारण से नागपंथी गोरखनाथ अखाड़ा बाबा गोरखनाथ जी को अपना आराध्य देव मानता है। इसके अलावा अखाड़े के साधु संत विशेष रूप से गुरु गोरखनाथ और उनके द्वारा स्थापित योग, तपस्या और साधना की परंपराओं का पालन करते हैं।
नाथ संप्रदाय और गोरखनाथ अखाड़ा दोनों ही योग और साधना पर विशेष बल देते हैं। योगासन, प्राणायाम और ध्यान इनकी साधना का मुख्य हिस्सा हैं। इसके माध्यम से साधक शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य प्राप्त करते हैं और आत्मज्ञान की ओर बढ़ते हैं। अखाड़ा योग साधना के द्वारा जीवन को संतुलित और अनुशासित बनाने का संदेश देता है।
गोरखपुर, उत्तर प्रदेश का एक प्रमुख शहर है और इसका गहरा संबंध गुरु गोरखनाथ जी से जुड़ा हुआ है। यहां गुरु जी का मंदिर भी स्थित है, जहां देश-विदेश से लोग दर्शन के लिए आते हैं। माना जाता है कि गोरखपुर में बाबा गोरखनाथ ने लंबे समय तक तप और साधना की थी। इसी कारण से यह नाथ संप्रदाय का भी प्रमुख तीर्थ स्थल है।
महाराज युधिष्ठिर ने भगवान् कृष्ण से पुनः प्रश्न किया कि भगवन् ! अब आप कृपा कर आश्विन कृष्ण एकादशी का माहात्म्य सुनाइये।
युधिष्ठिर ने फिर पूछा-जनार्दन ! अब आप कृपा कर आश्विन शुक्ल एकादशी का नाम और माहात्म्य मुझे सुनाइये। भगवान् कृष्ण बोले राजन् !
इतनी कथा सुनकर महाराज युधिष्ठिर ने भगवान् से कहा-प्रभो ! अब आप कृपा करके कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी के माहात्म्य का वर्णन करिये। पाण्डुनन्दन की ऐसी वाणी सुन भगवान् कृष्ण ने कहा-हे राजन् !
ब्रह्माजी ने कहा कि हे मनिश्रेष्ठ ! गंगाजी तभई तक पाप नाशिनी हैं जब तक प्रबोधिनी एकादशी नहीं आती। तीर्थ और देव स्थान भी तभी तक पुण्यस्थल कहे जाते हैं जब तक प्रबोधिनी का व्रत नहीं किया जाता।