Logo

देवी कात्यायनी

देवी कात्यायनी

त्रिदेव के क्रोध से अवतरित हुईं देवी कात्यायनी, नवरात्रि में इस विधि से पूजा करने से होगा उद्धार


नवरात्रि की छठी तिथि को मां कात्यायनी का पूजन किया जाता है। यह मां पार्वती का दूसरा नाम है। इसके अलावा मां के इस स्वरूप को उमा, गौरी, काली, हेेमावती व ईश्वरी  नामों से भी जाना जाता हैं। यजुर्वेद के आरण्यक में, स्कन्द पुराण में, देवी भागवत पुराण और मार्कंडेय ऋषि द्वारा रचित मार्कंडेय पुराण के देवी महात्म्य में भी मैया के इस रूप का उल्लेख है। जिसके अनुसार मां भगवती त्रिदेवों के क्रोध से उत्पन्न हुई थीं। मैया ने अपने इस अवतार में सिंह पर आरूढ़ होकर महिषासुर का वध किया था। इसके साथ ही कालिका पुराण में भी देवी कात्यायनी का वर्णन है। भक्त वत्सल के नवरात्रि विशेषांक के आंठवे लेख में हम आपको मां कात्यायनी के बारे में बताने जा रहे हैं।


मां कात्यायनी का स्वरूप 


परम्परागत रूप से लाल चुनरी ओढ़े मैय्या के इस स्वरूप की नवरात्रि उत्सव की षष्ठी को पूजा की जाती है। मैय्या का यह रूप अत्यंत चमकीला और आभा से भरा है। मां कात्यायनी की चार भुजाएँ हैं। इनमें माताजी दाहिनी तरफ ऊपर वाले हाथ से भक्तों को अभयमुद्रा में आशीर्वाद दे रही हैं। वही माता का नीचे वाला हाथ वरमुद्रा में है। बाईं तरफ के ऊपर वाले हाथ में मां तलवार धारण किये हुए हैं। मैय्या अपने नीचे वाले हाथ में कमल-पुष्प लिए हुए है। 


इस अवतार में मां सिंह की सवारी पर सुशोभित है। माँ कात्यायनी की उपासना से भक्तों को बहुत ही लाभ होते हैं। मैय्या बड़ी सरलता और सहजता से अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष चारों फलों को देने वाली हैं।


माँ का नाम कात्यायनी कैसे पड़ा?


मां कात्यायनी के नाम को लेकर पौराणिक कथा है कि, कात्यायन नामक एक श्रेष्ठ महर्षि देवी के बड़े उपासक थे। उन्होंने  भगवती पराम्बा की उपासना और तपस्या की। वर्षों की कठिन तपस्या के बाद जब मां ने उनसे वरदान मांगने को कहा तो उन्होंने माँ भगवती से अपने घर पुत्री के रूप में जन्म लेने का वरदान मांगा। माँ भगवती ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार करते हुए उनके घर पुत्री बनकर जन्म लिया। कात्यायन मुनि की बेटी होने के कारण मैय्या का नाम कात्यायनी हुआ।


हालांकि इनकी उत्पत्ति के बारे में वामन और स्कंद पुराण दो अलग-अलग कथाएं हैं। स्कंद पुराण में कहा गया है कि, जब दानव महिषासुर का अत्याचार तीनों लोकों में बढ़ रहा था। तब मैय्या ने त्रिदेवों ब्रह्मा, विष्णु, महेश के क्रोध से अवतार लिया और महिषासुर का संहार किया।


वहीं वामन पुराण के अनुसार महिषासुरमर्दिनी मैय्या का यह अवतार सभी देवताओं की ऊर्जा से कात्यायन ऋषि के आश्रम में एक शक्तिपूंज के रूप में हुआ।


महिषासुरमर्दिनी माँ कात्यायनी की महिमा 


मैय्या अमोघ फलदायिनी हैं। भगवान कृष्ण को पति रूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने इन्हीं की पूजा कालिन्दी-यमुना के तट पर की थी। ये ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी भी हैं। नवरात्रि के छठे दिन साधक का मन 'आज्ञा चक्र' में स्थित होता है। जिसमें योग साधना का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है।


मां कात्यायनी का मंत्र 


चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहना । कात्यायनी च शुभदा देवी दानवघातिनी ॥



ऐसे करें माता कात्यायनी की पूजा


देवी की परंपरागत पूजा विधि के द्वारा ही मां कात्यायनी की पूजा की जाती है लेकिन फिर भी मैय्या के इस स्वरूप को प्रसन्न करने के लिए कुछ विशेष बातों का ध्यान रखें। जैसे- 

मां कात्यायनी की पूजा प्रदोषकाल यानी गोधूली बेला में करना श्रेष्ठ माना गया है।

इनकी पूजा में शहद का प्रयोग जरूर किया जाना चाहिए।

शहद युक्त पान का भोग भी देवी कात्यायिनी को लगाएं।

देवी कात्यायनी की पूजा में लाल रंग के कपड़ों का भी विशेष महत्व है।  


पूजा का महत्व


देवी कात्यायनी की पूजा करने से शक्ति का संचार होता है।

मैय्या दुश्मनों पर विजय की शक्ति प्रदान करने वाली हैं।

मां कात्यायनी की पूजा से अविवाहित लड़कियों के विवाह के योग बनते हैं।

देवी कात्यायनी भक्तों के सभी रोग, शोक, संताप, भय आदि का नाश करती है।


........................................................................................................
कल्पवास में खाने के नियम

हर साल माघ माह के दौरान कल्पवास के लिए प्रयागराज में भक्तों का जमावड़ा होता है, लेकिन इस बार का महाकुंभ माघ माह में होने के कारण इस संख्या में दोगुना इजाफा होने की उम्मीद है।

क्या कुंभ में स्नान करने से मिलता है मोक्ष

कुंभ की शुरुआत में अब 15 दिन से कम का समय रह गया है। 13 जनवरी से प्रयागराज में महाकुंभ की शुरुआत होने वाली है। इस दौरान देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु और साधु-संत पवित्र नदियों में डुबकी लगाकर अपनी आस्था प्रकट करेंगे।

क्या यमदेव की पूजा कर सकते हैं?

हिंदू धर्म में यमदेवता को मृत्यु के देवता के रूप में पूजा जाता है। यमराज या यमदेवता को संसार में मृत्यु के बाद आत्माओं का न्याय करने वाला देवता माना जाता है। वे पाताल लोक (नरक) के शासक हैं और मृत आत्माओं का मार्गदर्शन करते हैं।

माघ मेला, कुंभ मेले से कैसे अलग है?

माघ माह का प्रारंभ होने जा रहा है। इस दौरान बड़ी संख्या में कल्पवासी संगम तट पर पहुंचने वाले हैं। पुराणों में भी इस महीने का वर्णन किया गया है। कहा जाता है कि इस महीने में भगवान विष्णु गंगा जल में निवास करते हैं। इसी कारण गंगा स्नान को विशेष धार्मिक महत्व प्राप्त है। धर्म ग्रंथों में इस महीने के दौरान गंगा स्नान के महत्व को विस्तार से बताया गया है।

यह भी जाने

संबंधित लेख

HomeAartiAartiTempleTempleKundliKundliPanchangPanchang