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उत्तराखंंड के 5 प्रसिद्ध देवी मंदिर

उत्तराखंंड के 5 प्रसिद्ध देवी मंदिर

उत्तराखंड में बसे हैं मां के 05 विशेष मंदिर, दर्शन करने से सफल हो जाती है प्रत्येक मनोकामना 


शारदीय नवरात्र के दौरान माता के दर्शन का अपना विशेष महत्व होता है। शिवालिक पहाड़ियों से घिरे उत्तराखंड राज्य में कई प्राचीन मंदिर हैं जहाँ पहुँचने का अनुभव भी अद्भुत रहता है। ये शक्तिपीठ सदियों से आस्था का केंद्र रहे हैं। यहां लाजवाब प्राकृतिक सौंदर्य के बीच माता के साक्षात दर्शन का आनंद अलग ही शांति देता है। उत्तराखंड के ये मंदिर ना केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि प्रकृति की गोद में बसे होने के कारण यहाँ की यात्रा आपको एक अलग ही दुनियां में सैर करवाती है। 


1.धारी देवी मंदिर उत्तराखंड- बद्रीनाथ से आने वाली अलकनंदा नदी पर स्थित ये मंदिर अत्यंत ही जागृत है। कहा जाता है कि धारी देवी चारों धाम की संरक्षिका हैं। सबसे विशेष बात ये है कि ये मंदिर अलकनंदा नदी के बीचों बीच स्थित है। रुद्रप्रयाग जिले में कलियासोल नामक स्थान पर बना ये मंदिर अपनी शक्तियों और जागृत अवस्था के साथ-साथ अपनी लाजवाब खूबसूरती के लिए भी जाना जाता है। यहां माँ की मूर्ति केवल सिर के रूप में स्थापित है और मान्यता है कि धारी देवी की मूर्ति का निचला हिस्सा कालीमठ में है। इस मंदिर तक पहुँचने के लिए भक्तों को कलियासोल गाँव आना पड़ता है, जहाँ से अलकनंदा के अद्भुत दृश्य भी देखने को मिलते हैं। लोगों का कहना है कि माता का आशीर्वाद हर संकट से निकालता है और भक्तों को मानसिक शांति भी प्रदान करता है। धारी देवी मंदिर की विशेषता इसकी गजब की प्राकृतिक सुंदरता और धार्मिक महत्ता है।  


2.सुरकंडा देवी मंदिर उत्तराखंड- मसूरी के पास धनोल्टी में स्थित सुरकंडा देवी मंदिर, माँ सती के शक्तिपीठों में से एक है। यहाँ माँ सती का सिर गिरा था। इस पवित्र स्थल तक पहुँचने के लिए एक कठिन चढ़ाई करनी होती है, जो लगभग 2 किलोमीटर की है। हालांकि यात्रा थोड़ी कठिन होती है, परंतु मंदिर के दर्शन के बाद मिलने वाली संतुष्टि और मानसिक शांति से सारी थकान दूर हो जाती है। चारों ओर से घने जंगल और प्राकृतिक सौंदर्य से घिरा यह मंदिर, आध्यात्मिक शांति और ध्यान के लिए आदर्श स्थान है।


3.नैना देवी मंदिर उत्तराखंड- उत्तराखंड के नैनीताल के दिल में नैना देवी मंदिर स्थित है। यह स्थान ना केवल धार्मिक बल्कि एक पर्यटन स्थल के रूप में भी विख्यात है। नैनी झील के किनारे बसे इस मंदिर में माँ नैना की पूजा होती है। मंदिर में स्थित माता की मूर्ति को माँ सती का नेत्र माना जाता है। यहाँ हर साल लाखों श्रद्धालु और पर्यटक पहुंचते हैं। माँ के दर्शन के साथ लोग नैनीताल की अद्वितीय खूबसूरती का आनंद लेने के लिए भी यहां आते हैं। यहाँ के शांतिपूर्ण और प्राकृतिक माहौल में दर्शन करना एक विशेष अनुभव प्रदान करता है, जिसकी अनुभूति यहां आकर ही की जा सकती है। 


4.चंडी देवी मंदिर उत्तराखंड- हरिद्वार में नील पर्वत पर स्थित चंडी देवी मंदिर, भक्तों के लिए एक प्रमुख आकर्षण का केंद्र है। मंदिर तक पहुँचने के लिए या तो ट्रेकिंग की जा सकती है या फिर रोपवे द्वारा पहुँच सकते हैं। रोपवे इस यात्रा को रोमांचक तो ट्रैकिंग की चुनौती इस यात्रा को अभूतपूर्व बना देती है। मान्यता है कि इस स्थान पर देवी चंडी ने शुंभ-निशुंभ नामक दैत्यों का वध किया था और तभी से यह स्थान शक्तिपीठ के रूप में प्रसिद्ध है। यहाँ की प्राकृतिक छटा और आध्यात्मिक वातावरण हर दर्शनार्थी को आंतरिक शांति और ऊर्जा से भर देता है। नवरात्र के दौरान यहाँ विशेष भीड़ देखने को मिलती है और भक्तजन माता के विशेष अनुष्ठान करते हैं।


5.मंशा देवी मंदिर उत्तराखंड- हरिद्वार के बिलवा पर्वत पर स्थित मंशा देवी मंदिर राज्य के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक मानी जाती है। मंशा देवी को इच्छाओं की पूर्ति करने वाली देवी के रूप में जाना जाता है। भक्तजन यहाँ आकर अपनी मनोकामनाएँ पूर्ण करने के लिए माँ से प्रार्थना करते हैं। जब भक्तों की इच्छा पूरी हो जाती है तो वे मंदिर में विशेष धागा बाँधते हैं। इस मंदिर तक पहुँचने के लिए भी रोपवे की सुविधा उपलब्ध है। हालांकि, जो मजा और अनुभूति आपको ट्रैकिंग करने में होगी वैसा मजा रोपवे में नहीं मिलेगा। रोपवे केवल यात्रा को आसान बनाता है। हालंकि, रोपवे पर बैठकर आप हरिद्वार और आसपास के अद्भुत दृश्यों का आनंद भी ले सकते हैं। 


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कुंभ संक्रांति शुभ योग

आत्मा के कारक सूर्य देव हर महीने अपना राशि परिवर्तन करते हैं। सूर्य देव के राशि परिवर्तन करने की तिथि पर संक्रांति मनाई जाती है। इस शुभ अवसर पर गंगा समेत पवित्र नदियों में स्नान-ध्यान किया जाता है।

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एकादशी व्रत फरवरी 2025

हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का विशेष महत्व है। एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित होती है और इस दिन भगवान विष्णु संग मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है।

फाल्गुन में क्या करें, क्या नहीं

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