उड़ीसा के बालासोर जिले के रेमुना में स्थित खीरचोर गोपीनाथ मंदिर सिर्फ एक मंदिर नहीं, बल्कि भक्ति और भगवान के बीच आत्मीय रिश्ते की मिसाल है। यहां बाल स्वरूप श्रीकृष्ण को रोज दूध से बनी खीर का भोग लगता है। मंदिर का नाम भी इसी चमत्कारिक खीर से जुड़ा है।
रेमुना का नाम भी ‘रमणीय’ से आया है—जिसका अर्थ है "सुंदर दिखने वाला स्थान"। यह जगह शुरू से ही वैष्णव भक्ति का एक जीवंत केंद्र रही है।
करीब 500 साल पहले की बात है। वृंदावन के महान संत श्री माधवेंद्र पुरी अपने गोपाल देवता के लिए चंदन लेने पुरी जा रहे थे। रास्ते में रेमुना आए और गोपीनाथ मंदिर पहुंचे। यहां के देवता की सुंदरता देख वे भाव-विभोर हो गए।
मंदिर में जब उन्हें पता चला कि गोपीनाथ को रोज बारह मिट्टी के बर्तनों में खीर अर्पित की जाती है, तो उन्होंने सोचा कि अगर वे इस खीर का स्वाद चख लें, तो अपने प्रभु श्री गोपाल को वैसी ही खीर बना सकेंगे। मगर फिर उन्होंने यह सोचकर मन में ग्लानि की कि बिना भगवान को अर्पण किए प्रसाद की इच्छा करना अनुचित है। पश्चाताप करते हुए वे मंदिर के पास ही रामचंडी मंदिर में जाकर भजन करने लगे।
रात में जो हुआ, वह चमत्कार से कम नहीं था। मंदिर के पुजारी को सपने में स्वयं गोपीनाथ ने दर्शन दिए और बताया कि उन्होंने खीर का एक बर्तन "चुरा" लिया है और वह माधवेंद्र पुरी के लिए है। सुबह जब पुजारी ने देखा, सचमुच भगवान की मूर्ति के वस्त्रों के बीच वह खीर का बर्तन रखा था।
पुजारी ने वह बर्तन लेकर रामचंडी मंदिर पहुंचे, जहां माधवेंद्र पुरी ध्यानमग्न थे। उन्होंने खीर सौंपते हुए कहा, “आप कितने भाग्यशाली हैं। स्वयं भगवान ने आपके लिए खीर चुराई है।”
तभी से यह मंदिर “खीरचोर गोपीनाथ” कहलाने लगा।
इस मंदिर से जुड़ी एक और दिव्य कथा है, जो त्रेता युग की है। जब भगवान राम चित्रकूट में थे, उन्होंने एक दिन गायों को चरते देखा और मुस्कुरा दिए। सीता ने जब कारण पूछा, तो राम ने बताया कि यह दृश्य उन्हें द्वापर युग में कृष्ण रूप में अपने अवतार की याद दिलाता है।
राम ने वहीं एक पत्थर पर बांसुरीधारी त्रिभंगी मुद्रा में श्रीकृष्ण, उनकी आठ सखियों और गोपों की मूर्तियां उकेरीं। जैसे ही राम ने बाण से पत्थर को छुआ, वह मूर्ति जीवंत हो गई और उसे “मदनगोपाल” नाम मिला।
बाद में कलियुग में उड़ीसा के राजा लांगुला नरसिंह देव ने इस मूर्ति को चित्रकूट से रेमुना लाकर स्थापित किया। यहां की सुंदरता और दूध देने वाली गायों की बहुलता के कारण भगवान ने स्वयं रेमुना में रहने की इच्छा जताई थी।
मंदिर के गर्भगृह में श्री गोपीनाथ अपने दोनों ओर गोविंदा और मदन मोहन के साथ विराजमान हैं। उनके साथ ही राधा रासबिहारी, श्री चैतन्य महाप्रभु और कई शालग्राम शिलाएँ भी स्थापित हैं।
यहां आज भी माधवेंद्र पुरी और रसिकानंद जी की समाधियां हैं। मान्यता है कि एक समय मुस्लिम आक्रमण के दौरान गोपीनाथ की मूर्ति को एक तालाब में छिपा दिया गया था। बाद में रसिकानंद ने उसे खोजकर फिर से मंदिर में स्थापित किया।
इस मंदिर का सबसे बड़ा आकर्षण है—रोजाना बारह बर्तनों में लगने वाला खीर का भोग, जिसे “अमृत केली” कहा जाता है। इसका स्वाद आज भी वही है, जो 500 साल पहले माधवेंद्र पुरी ने अनुभव किया था।
मेरे तन में भी राम,
मेरे मन में भी राम,
मेरे तो आधार है,
भोलेनाथ के चरणारविन्द,
मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई
मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई
तेरी होवे जय जयकार,
मेरे उज्जैन के महाकाल,