श्रावण में भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए भक्त कई तरह के उपाय आजमाते हैं। इस दौरान भक्त शिव पर कई प्रकार की वस्तुओं को अर्पित करते हैं, लेकिन कभी कभी भक्त शिव पर कुछ ऐसी वस्तुऐं भी अर्पित कर देते हैं जिससे उनको फायदे की जगह काफी नुकसान होने लगता है। इसलिए भगवान शिव को कुछ भी अर्पित करने से पहले आपको ये जानना बहुत जरूरी है कि उन्हें कौन सी वस्तु अर्पित करना चाहिए और कौनसी नहीं। तो आईए जानते हैं ऐसे कौनसे पदार्थ हैं जो महादेव को बेहद प्रिय हैं और उन्हें अर्पित करने का क्या महत्व है?
जल - वैसे तो शिव पुराण में भगवान शिव को स्वयं ही जल कहा गया है लेकिन शिव पर जल चढ़ाने का महत्व समुद्र मंथन की कथा से शुरू होता है। दरअसल समुद्र मंथन से विष निकलने के बाद जब शिव ने वो विष अपने कंठ में धारण किया तो उनका कंठ एकदम नीला पड़ गया। विष की ऊष्णता को शांत करने और शिव को शीतलता प्रदान करने के लिए समस्त देवी-देवताओं ने उन्हें जल अर्पित किया जिसके बाद से शिव का थोड़ी सी शीतलता मिली और वे प्रसन्न हो गए। इसके अलावा पुराणों में कहा गया है कि महादेव के मस्तक पर गंगा और चंद्र विराजित है जो जल से ही संबंधित हैं। सनातन संस्कृति के मुताबिक इंसान के मस्तिष्क में केंद्र का स्थान भगवान भोले नाथ को प्राप्त है और जब हम शिवलिंग पर जल की धारा प्रवाहित करते हैं तो भगवान भोलेनाथ को शीतलता मिलती है जिससे हमारा मन भी शांत होता है।
भस्म - शिव पुराण में नारदजी को भस्म की महिमा बताते हुए ब्रह्माजी कहते हैं कि ये सभी प्रकार के शुभ फल देने वाली है और जो मनुष्य इसे अपने शरीर पर लगाता है उसके सभी दुख व शोक नष्ट हो जाते हैं। भस्म महादेव का प्रमुख वस्त्र माना जाता है, क्योंकि भस्म ही सृष्टि का सार भी है और पूरा संसार एक दिन भस्म में ही परिवर्तित हो जाता है। वेदों के अनुसार शिव का श्रृंगार भस्म से करने पर भोलेनाथ प्रसन्न होते हैं और सभी कष्टों को दूर करते हैं। इसके अलावा शिव पर भस्म चढ़ाने से भक्त का मन सांसारिक मोह माया से मुक्त होता है।
बेलपत्र - महादेव की पूजा में बेलपत्र चढ़ाने के पीछे एक पौराणिक महत्व है। कथा के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान कई चीजों के साथ विष भी निकला। ये विष चारों ओर फैलने लगा और पूरी सृष्टि को बचाने के लिए भगवान शिव ने इस विष को अपने कंठ में धारण कर लिया। जिसके बाद शिव का एक नाम नीलकंठ हो गया। जब इस विष से भगवान शिव का बदन जलने लगा तब उन्हें बेलपत्र चाढ़ए गए, कहा जाता है कि बेलपत्र में विष का प्रभाव खत्म करने की शक्ति होती है। इसके अलावा स्कंद पुराण के अनुसार, बेलपत्र का संबंध सीधे माता पार्वती से है क्योंकि माता पार्वती के पसीने की बूंद से ही बेल के पेड़ का जन्म हुआ था।
धतूरा - भगवान शिव का श्रृंगार बहुत ही रहस्यमयी और सबसे अलग है, शिव के श्रृंगार में धतूरा जैसे जंगली पेड़ के पत्ते और फूल शामिल हैं। ऐसा श्रृंगार बताता हैं कि शिवजी उन्हें भी अपनाते हैं जिन्हें लोगों ने अपने से दूर कर रखा हो। शिव पूजा में धतूरे जैसा जहरीला फल चढ़ाने के पीछे भी यही भाव मन जाता है कि व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामाजिक जीवन में बुरे व्यवहार और कड़वी बाते बोलने से बचना चाहिए। धार्मिक ग्रथों के अनुसार, भगवान शिव कैलाश पर्वत पर रहते हैं जो कि अत्यंत ठंडा क्षेत्र है, इसलिए में उन्हें इस प्रकार के आहार और औषधि की जरूरत होती है, जो शरीर को ऊष्मा प्रदान करे इसलिए शिव को धतूरा अर्पित किय जाता है। माना जाता है कि अगर धतूरे को सीमित मात्रा में लिया जाए तो यह औषधि का काम करता है और शरीर को अंदर से गर्म रखता है।
भांग - धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव हमेशा ध्यानमग्न रहते हैं और भांग ध्यान केंद्रित करने में मददगार होती है। भगवान को औषधि स्वरूप भांग दी गई लेकिन प्रभु ने हर कड़वाहट और नकारात्मकता को आत्मसात किया इसलिए भांग भी उन्हें प्रिय है। एक मान्यता बताती है कि एक समय पर भगवान शिव की अपने परिवार के साथ गहन बहस हुई थी। वह खेतों में चले गए और वहां वह भांग के पौधे के नीचे सो गए। जब वह उठे, तो भूखे थे और इसलिए उन्होंने पेड़ से तोड़कर कुछ भांग खा ली। इसके सेवन के बाद, भगवान शिव को इतनी ताजगी महसूस हुई कि उन्होनें भांग को अपना पसंदीदा खाद्य में से एक बना लिया। भागवत पुराण में भांग के महत्व को समुद्र मंथन से जोड़ा गया है।
रुद्राक्ष - ऐसी मान्यता है कि जब माता सती का वियोग शिव जी से सहन नहीं हुआ तब उनके आंखो से आंसू की धारा निकल पड़ी और इन आंसुओं से एक पेड़ का निर्माण हुआ। रुद्र की आंख से निकले आंसू यानी अक्ष से निर्मित इस पेड़ को रुद्राक्ष का नाम दिया गया। शिव का रुद्राक्ष से अटूट संबंध है। एक मान्यता के अनुसार ये भी कहा जाता है कि शिव श्री राम, कृष्ण और विष्णु के आराध्य थे, इसलिए जो भक्त नियमित रुद्राक्ष की पूजा और जप करता है, उसे करोड़ों पुण्य की प्राप्ति होती है और उसके जीवन में जाने अनजाने में किया गया सभी पाप नष्ट हो जाता है। रुद्राक्ष एक मुखी से लेकर चौदह मुखी तक होता है जिसका अपना अलग महत्व होता है।
शुक्ल पक्ष की अष्टमी का दिन मां दुर्गा को समर्पित होता है। इस दिन विधिवत मां दुर्गा की पूजा-अर्चना की जाती है। हिंदू पंचांग के मुताबिक, प्रत्येक माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी मां दुर्गा की आराधना के लिए समर्पित होती है। इस विधि-विधान से व्रत और पूजा करके मां दुर्गा की स्तुति की जाती है।
मेरे मन मंदिर में तुम भगवान रहे,
मेरे दुःख से तुम कैसे अनजान रहे
दुर्गा सप्तशती का पाठ देवी दुर्गा की कृपा पाने का एक अत्यंत पवित्र और प्रभावशाली माध्यम है। इसे 'चंडी पाठ' के नाम से भी जाना जाता है। दुर्गा सप्तशती में 700 श्लोक हैं, जो देवी दुर्गा की महिमा, उनकी विजय और शक्ति का वर्णन करते हैं।
मेरे ओ सांवरे,
तूने क्या क्या नहीं किया,