मैली चादर ओढ़ के कैसे,
द्वार तुम्हारे आऊँ,
हे पावन परमेश्वर मेरे,
मन ही मन शरमाऊँ ।
॥ मैली चादर ओढ़ के..॥
तूने मुझको जग में भेजा,
निर्मल देकर काया,
आकर के संसार में मैंने,
इसको दाग लगाया ।
जनम जनम की मैली चादर,
कैसे दाग छुड़ाऊं,
॥ मैली चादर ओढ़ के..॥
निर्मल वाणी पाकर तुझसे,
नाम ना तेरा गाया,
नैन मूँदकर हे परमेश्वर,
कभी ना तुझको ध्याया ।
मन-वीणा की तारे टूटी,
अब क्या राग सुनाऊँ,
॥ मैली चादर ओढ़ के..॥
इन पैरों से चलकर तेरे,
मंदिर कभी ना आया,
जहाँ जहाँ हो पूजा तेरी,
कभी ना शीश झुकाया ।
हे हरिहर मई हार के आया,
अब क्या हार चढाउँ,
॥ मैली चादर ओढ़ के..॥
तू है अपरम्पार दयालु,
सारा जगत संभाले,
जैसा भी हूँ मैं हूँ तेरा,
अपनी शरण लगाले ।
छोड़ के तेरा द्वारा दाता,
और कहीं नहीं जाऊं
मैली चादर ओढ़ के कैसे,
द्वार तुम्हारे आऊँ,
हे पावन परमेश्वर मेरे,
मन ही मन शरमाऊँ ।
वट सावित्री व्रत हिंदू धर्म में विशेष रूप से विवाहित महिलाओं द्वारा किया जाने वाला महत्वपूर्ण व्रत है। यह व्रत महाभारत काल की कथा 'सावित्री और सत्यवान' से जुड़ा हुआ है, जिसमें सावित्री ने अपने तप, भक्ति और बुद्धि से यमराज से अपने पति सत्यवान के प्राण वापस लिए थे।
वट सावित्री व्रत हिन्दू धर्म की एक अत्यंत महत्वपूर्ण परंपरा है, जिसे विशेष रूप से विवाहित स्त्रियों द्वारा अपने पति की दीर्घायु के लिए किया जाता है। यह व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है।
वट सावित्री व्रत हिन्दू धर्म की उन विशेष परंपराओं में से एक है जो स्त्री के श्रद्धा, समर्पण और पति के प्रति प्रेम को दर्शाता है। यह व्रत विवाहित महिलाएं अपने पति की दीर्घायु और सुखमय वैवाहिक जीवन के लिए करती हैं।
वट सावित्री व्रत हिंदू धर्म में स्त्रियों द्वारा पति की लंबी उम्र, अच्छे स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि की कामना के लिए किया जाने वाला एक अत्यंत पवित्र व्रत है। यह व्रत विशेषकर ज्येष्ठ अमावस्या को किया जाता हैI