बलराम जी, भगवान श्रीकृष्ण के बड़े भाई और शेषनाग के अवतार माने जाते हैं। उन्हें हलधर के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि वे हमेशा हाथ में हल धारण करते थे। बलराम जी शक्ति, बल और कृषि के देवता के रूप में पूजे जाते हैं। बलराम जी को शेषनाग का अवतार माना जाता है। शेषनाग, भगवान विष्णु के शय्यास्थल पर स्थित सर्प हैं। जब कंस ने देवकी के छह पुत्रों को मार डाला, तब देवकी के गर्भ में भगवान बलराम पधारे। योगमाया ने उन्हें आकर्षित करके नंद बाबा के यहां निवास कर रही श्री रोहिणीजी के गर्भ में पहुंचा दिया।1 इसलिए उनका एक नाम संकर्षण पड़ा। अब ऐसे में प्रभु बलराम जी की पूजा किस विधि से करने से उत्तम परिणाम मिल सकती है। इसके बारे में भक्त वत्सल के इस लेख में विस्तार से जानते हैं।
बलराम जी को शारीरिक बल और मानसिक दृढ़ता का प्रतीक माना जाता है। उनकी पूजा करने से भक्तों को शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत बनने की प्रेरणा मिलती है। बलराम जी की पूजा करने से भक्तों में विपरीत परिस्थितियों का सामना करने की क्षमता बढ़ती है। वे जीवन की चुनौतियों को धैर्य और दृढ़ता से स्वीकार करते हैं। बलराम जी को कृषि का देवता भी माना जाता है। वे किसानों के आराध्य देवता हैं। उनकी पूजा करने से किसानों को अच्छी फसल और समृद्धि की प्राप्ति होती है। बलराम जी पृथ्वी और प्रकृति के संरक्षक भी हैं। उनकी पूजा करने से पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ती है। बलराम जी धैर्य और संयम का प्रतीक हैं। वे भक्तों को अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखने और शांत रहने की शिक्षा देते हैं। बलराम जी की पूजा करने से भक्तों को जीवन में सफलता और समृद्धि की प्राप्ति होती है।
पूजा करने के दौरान बलराम जी के मंत्रों का जाप विशेष रूप से करें।
- ऊं बलरामाय नमः।
- ऊं श्री बलरामाय नमः।
- ऊं राधे कृष्ण बलरामे नमः।
- ऊं बलराम देवाय नमः।
- ऊं राधे कृष्ण बलरामे हरिम्।
- ऊं श्री बलरामे नमः स्वाहा।
- ऊं बलरामाय हुम्फ।
- ऊं बलरामाय नमो नमः।
- ऊं लीलाधराय बलरामाय नमः।
- ऊं ह्रीं श्री बलरामाय नमः।
हिंदू धर्म में भगवान गणेश की पूजा मोदक के भोग के बिना अधूरी मानी जाती है। बप्पा को मोदक बेहद प्रिय है। आप कितने भी 56 भोग भगवान को भोग लगा दें, लेकिन मोदक के बिना पूजा पूर्ण नहीं मानी जाती है। अब ऐसे में आखिर भगवान गणेश को मोदक इतना क्यों प्रिय है। आइए भक्त वत्सल के इस लेख में विस्तार से जानते हैं।
महाकुंभ के धार्मिक त्यौहार में श्रद्धालुओं और साधु संतों का जमावड़ा नजर आने वाला है। इस मौके पर लाखों श्रद्धालु और साधु संत प्रयागराज में एकत्रित होंगे और आस्था की डुबकी लगाएंगे। महाकुंभ के दौरान कुल छह शाही स्नान होंगे, जिनमें से पहला शाही स्नान 13 जनवरी को पौष पूर्णिमा पर होगा।
महाकुंभ मेला हर 12 साल में भारत के चार पवित्र स्थलों—प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक—में आयोजित किया जाता है। साल 2025 में यह दिव्य आयोजन प्रयागराज में होगा, जो लगभग 30 से 45 दिनों तक चलेगा।
महाकुंभ की शुरुआत में अब केवल 15 दिन से भी कम का समय बचा है। इससे पहले, विभिन्न अखाड़े प्रयागराज में अपनी पेशवाई निकाल रहे हैं और नगर में प्रवेश कर रहे हैं। कई अखाड़ों ने अपनी पेशवाई पूरी कर ली है, जिन्हें देखने के लिए प्रयाग का वातावरण उमड़ पड़ा है।