मेरा संकट कट गया जी,
मेहंदीपुर के दरबार में,
मेरा संकट कट ग्या,
संकट कट ग्या,
संकट कट ग्या जी,
मेरा संकट कट ग्या जी,
मेहंदीपुर के दरबार में ॥
क दिन चौराहे के ऊपर,
पैर मेरा था आया,
पीछे पड़ गया यारो मेरे,
एक भूत का साया,
हालत मेरी बिगड़न लागी,
समझ नहीं कुछ आवे,
मेरे बस की बात नही वो,
मन्ने घणा सतावे,
वो मेरे चिपट गया जी,
मैं सर मारू दीवार में,
मेरा संकट कट ग्या जी,
मेहंदीपुर के दरबार में ॥
श्याणे शपटे रोज करे,
चिमटे से मेरी पिटाई,
डॉक्टर वैद्य दिखाता डोलूं,
लागे नही दवाई,
एक जना यूँ बोला इसने,
मेहंदीपुर ले चालो,
बांध जूट ते इसने,
तुम सूमो के अंदर घालो,
मैं जाने ते नट गया जी,
उस बाबा के दरबार में,
मेरा संकट कट ग्या जी,
मेहंदीपुर के दरबार में ॥
मेहंदीपुर पंहुचा तो,
‘नरसी’ चेन थोड़ा सा आया,
लागा जब आरती का छींटा,
निर्मल हो गई काया,
भूत प्रेत सब भागे मेरे,
मिल गया था छुटकारा,
बालाजी ने कर दिया मेरे,
संकट का निपटारा,
मेरे संकट का निपटारा,
मन्ने बेरा पट गया जी,
ना इसा कोई संसार में,
मेरा संकट कट ग्या जी,
मेहंदीपुर के दरबार में ॥
मेरा संकट कट गया जी,
मेहंदीपुर के दरबार में,
मेरा संकट कट ग्या,
संकट कट ग्या,
संकट कट ग्या जी,
मेरा संकट कट ग्या जी,
मेहंदीपुर के दरबार में ॥
जन्माष्टमी का त्योहार दो दिन मनाने के पीछे देश के दो संप्रदाय हैं जिनमें पहला नाम स्मार्त संप्रदाय जबकि दूसरा नाम वैष्णव संप्रदाय का है।
भगवान अपने भक्तों को कब, कहा, क्या और कितना दे दें यह कोई नहीं जानता। लेकिन भगवान को अपने सभी भक्तों का सदैव ध्यान रहता है। वे कभी भी उन्हें नहीं भूलते। भगवान उनके भले के लिए और कल्याण के लिए हमेशा तैयार रहते हैं।
मुरलीधर, मुरली बजैया, बंसीधर, बंसी बजैया, बंसीवाला भगवान श्रीकृष्ण को इन नामों से भी जाना जाता है। इन नामों के होने की वजह है कि भगवान को बंसी यानी मुरली बहुत प्रिय है। श्रीकृष्ण मुरली बजाते भी उतना ही शानदार हैं।
भक्त वत्सल की जन्माष्टमी स्पेशल सीरीज के एक लेख में हमने आपको बताया था कि कैसे भगवान श्रीकृष्ण ने यमुना में कूदकर कालिया नाग से युद्ध किया था। क्योंकि उसके विष से यमुना जहरीली हो रही थी।