Logo

गंगा मैया मंदिर, दुर्ग

गंगा मैया मंदिर, दुर्ग

मछुआरे ने झोपड़ी में बनाया था बलोद का गंगा मंदिर, मालगुजार ने करवाया मंदिर निर्माण, नवरात्रि और मुंडन संस्कार का महत्व 


छत्तीसगढ़ के बलोद में है गंगा मैया मंदिर 


भारत में लोग काशी और ऋषिकेश जैसे स्थानों पर देवी गंगा की पूजा करने जाते है, और कहा जाता है कि जो व्यक्ति गंगा नदी में दर्शन करता है, वह अपने दुख और पीड़ा को दूर कर लेता है। लेकिन क्या आप छत्तीसगढ़ के बालोद तहसील के झलमला क्षेत्र में स्थित गंगा मैया मंदिर के बारे में जानते है, जो अपने आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व क लिए जाना जाता है। इस मंदिर के चर्चे दूर-दूर तक हैं। मूल रूप से गंगा मैया मंदिर का निर्माण एक स्थानीय मछुआरे द्वारा एक झोपड़ी के रुप में किया गया था। आज यहां पर हर साल हजारों भक्त दर्शन के लिए आते हैं। 


मछुआरे के जाल में फसी थी मूर्ति 


छत्तीसगढ़ में गंगा मंदिर का इतिहास काफी रोचक है। कहानी के अनुसार, एक मछुआरा पास की झील में मछली पकड़ रहा था, तभी उसने अपने जाल में एक मूर्ति फंसी देखी। हालांकि उसने कहा कि ये सिर्फ एक पत्थर हैं, लेकिन उसने मूर्ति को फिर से झील में फेंक दिया। उसी रात, देवी गंगा एक ग्रामीण के सपने में आईं और कहा कि मूर्ति को झील से निकालो। मछुआरे ने यह कहानी गांव के सभी लोगों को सुनाई। अगले दिन, मूर्ति को मछली पकड़ने के जाल की मदद से निकाला गया। 


अंग्रेजों ने भी किया मंदिर को हटाने का प्रयास 


एक और कहानी प्रचलित है कि अंग्रेजों के शासनकाल में नहरों के निर्माण के दौरान, उन्होंने मंदिर से गंगा मैया की मूर्ति को हटाने के लिए बहुत प्रयास किए। अंग्रेज अधिकारी एडम स्मिथ के भारी प्रयासों के बावजूद, वे इसे नहीं हटा पाए। मंदिर का निर्माण उसी स्थान पर भीकम चंद तिवारी नामक व्यक्ति ने किया था, और मंदिर का कई बार जीर्णोद्धार किया गया है। आज, ये मंदिर भारत के सबसे अनोखे स्थानों में से एक है जो दुनिया के हर कोने से लोगो को अपनी ओर आकर्षित करता है। 


बालोद के मालगुजार ने करवाया भव्य मंदिर का निर्माण


बालोद में झलमला मंदिर पहले झोपड़ी नुमा था जिसे बालोद के मालगुजार सोहन लाल टावरी ने इसका निर्माण कराया, तब से आज तक यहां भक्तों का तांता लगा रहता है। मंदिर में हर साल शारदीय नवरात्र में खास व्यवस्था की जाती है। इस दौरान मंदिर को पूरी तरह से सजाया जाता है। ज्योति कलश स्थापना से लेकर भक्तों की सुरक्षा, भोजन की व्यवस्था तक खास इंतजाम किये जाते है। इसके अलावा मंदिर ट्रस्ट की ओर से समाज के वरिष्ठ जनों, दानदाताओं का सम्मान किया जाता है। मंदिर परिसर में भजन कार्यक्रम के आयोजन किये जाते हैं। 



गंगा मैया मंदिर में मुंडन संस्कार की है मान्यता


देश के कोने-कोने से लोग यहां मुंडन संस्कार कराने आते हैं। नवरात्रि में यहां मुंडन संस्कार के लिए भीड़ लगी रहती हैं। मां गंगा मंदिर के साथ ज्योति कलश दर्शन के लिए यहां एक विशेष ज्योति दर्शन स्थल बना हुआ है। जहां भक्त ज्योत का दर्शन करते हैं। गंगा मैया मंदिर जाने का सबसे अच्छा समय सर्दियों के दौरान है, खासकर अक्टूबर से लेकर मार्च तक। इन दिनों में मौसम सुहाना होता है। मानसून के मौसम में भी आप यहां जा सकते हैं। 


गंगा मैया मंदिर के प्रमुख त्योहार


भारत एक ऐसा देश है जो देवी शक्ति और देवी दुर्गा के रूप में स्त्री ऊर्जा की पूजा करता है और नवरात्रि भारत में मनाया जाने वाला सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है। इसी तरह गंगा मैया मंदिर अपने नवरात्रि उत्सव के लिए जाना जाता है। नवरात्रि के दौरान हजारों भक्त इस मंदिर में उत्सव मनाने के लिए आते हैं। नवरात्रि के दौरान कुछ भक्त उपवास रखते हैं और नंगे पैर देवी गंगा के दर्शन करते हैं। 


गंगा मैया मंदिर कैसे पहुंचे


हवाई मार्ग -  यहां के लिए निकटतम हवाई अड्डा रायपुर का है। यहां से मंदिर पहुंचने के लिए 105 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है। आप टैक्सी या बस के द्वारा यहां पहुंच सकते हैं।


रेल मार्ग - अगर आप ट्रेन से आ रहे है तो निकटतम रेलवे स्टेशन रायपुर जंक्शन है। वहां से, बालोद तक 20 किमी की दूरी है, फिर आप मंदिर तक पहुंचने के लिए झलमला जा सकते हैं।


........................................................................................................
क्यों खास है यशोदा जयंती

हिंदू धर्म में यशोदा जयंती बहुत खास मानी जाती है। यशोदा जयंती का त्योहार भगवान श्रीकृष्ण की मां यशोदा के जन्म दिवस के रूप में मनाया जाता है। भगवान श्रीकृष्ण ने भले ही माता देवकी के गर्भ से जन्म लिया था परंतु उनका पालन-पोषण माता यशोदा ने ही किया था।

यशोदा जयंती क्यों मनाते हैं?

यशोदा जयंती भगवान कृष्ण के मंदिरों के साथ ही दुनियाभर में फैले इस्कॉन में भी काफी उत्साह के साथ मनाया जाता है। इस पर्व को गोकुल में भी धूमधाम से मनाया जाता है।

धनतेरस पूजा विधि

धनतेरस का नाम धन और तेरस ये दो शब्दों से बना है जिसमें धन का मतलब संपत्ति और समृद्धि है और तेरस का अर्थ है पंचांग की तेरहवीं तिथि। यह त्योहार खुशहाली, सुख और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।

रक्षाबंधन क्यों मनाते हैं

रक्षाबंधन भाई-बहन के अटूट प्रेम और स्नेह का प्रतीक है। यह पर्व प्रतिवर्ष सावन माह की पूर्णिमा तिथि पर मनाया जाता है। इस दिन बहनें पूजा करके अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हैं और उनकी सफलता एवं दीर्घायु की कामना करती हैं।

यह भी जाने

संबंधित लेख

HomeAartiAartiTempleTempleKundliKundliPanchangPanchang