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भारत देश के कोने कोने में प्राचीन मंदिर स्थापित है। इन मंदिरों की प्रसिद्धि से इनका इतिहास जुड़ा है। आज हम आपको एक ऐसा मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं जहां शिवलिंग की पूजा स्त्री रुप में की जाती है। ये मंदिर छत्तीसगढ़ के आलोर गांव में है। यहां शिवलिंग के रुप में देवी की पूजा होती है। इसके पीछे मान्यता है कि इस लिंग में शिव और शक्ति दोनों समाहित हैं। यहां शिव और शक्ति की पूजा एक साथ लिंग स्वरुप में होती है। इसीलिए इस देवी को लिंगेश्वरी माता या लिंगई माता कहा जाता है।
फरसगांव से लगभगह 8 किमी दूर पश्चिम से बड़ेडोंगर मार्ग पर ग्राम आलोर स्थित है। ग्राम से लगभग 2 किमी दूर उत्तर पश्चिम में पहाड़ी है जिसे लिंगई गट्टा लिंगई माता के नाम से जाना जाता है। इस छोटी सी पहाड़ी के ऊपर विस्तृत फैली हुई चट्टान के ऊपर एक विशाल पत्थर है। बाहर से अन्य पत्थर की तरह सामान्य दिखने वाला यह पत्थर स्तूप-नुमा है। इस पत्थर की संरचना को भीतर से देखने पर ऐसा लगता है कि मानो कोई विशाल पत्थर को कटोरानुमा तराश कर चट्टान के ऊपर उलट दिया गया है। इस मंदिर की दक्षिण दिशा में एक सुरंग है जो इस गुफा का प्रवेश द्वार है। इसका द्वार इतना छोटा है कि बैठकर या लेटकर ही यहां प्रवेश किया जा सकता है। गुफा के अंदर 25 से 30 आदमी बैठ सकते हैं। गुफा के अंदर चट्टान के बीचों-बीच निकला शिवलिंग है, जिसकी ऊंचाई लगभग दो फुट होगी। श्रद्धालुओं का मानना है कि इसकी ऊंचाई पहले बहुत कम थी समय के साथ ये बढ़ गई।
परंपरा और लोकमान्यता के कारण इस प्राकृतिक मंदिर में प्रति दिन पूजा अर्चना नहीं होती है। साल में एक दिन मंदिर का द्वार खुलता है और इसी दिन यहां मेला भरता है। संतान प्राप्ति की मन्नत प्राप्ति की मन्नत लिए यहां हर साल हजारों संख्या में श्रद्धालु जुटते हैं। प्रतिवर्ष भाद्रवर्ष माह के शुल्क पक्ष नवमीं तिथि के पश्चात आने वाले बुधवार को इस प्राकृतिक देवालय को खोल दिया जाता है एवं दिनभर श्रद्धालुओं द्वारा पूजा अर्चना एवं दर्शन की जाती है।
लिगेंश्वरी देवी से जुड़ी दो खास और प्रचलित मान्यताएं है। पहली मान्यता संतान प्राप्ति को लेकर है। कहा जाता है कि यहां निःसंतान अगर अर्जी लगाते हैं, तो संतान की प्राप्ति जरुर होती है। संतान प्राप्ति की इच्छा रखने वाले दंपति को खीरा चढ़ाना होता है। प्रसाद के रुप में चढ़े खीरे को पुजारी पूजा के बाद दंपति को वापस लौटा देता है। दम्पति को इस खीरे को अपने नाखून से चीरा लगाकर दो टुकड़ो में तोड़कर इस प्रसाद को ग्रहण करना होता है। वहीं दूसरी मान्यता भविष्य के अनुमान को लेकर है। एक दिन की पूजा के बाद जब मंदिर बंद किया जाता है तो मंदिर के बाहर सतह पर रेत बिछा दी जाती है। इसके अगले साल इस रेत पर जो पद्चिन्ह मिलते हैं, उससे पुजारी अगले साल के भविष्य का अनुमान लगाते है। जैसे की यदि कमल का निशान हो तो धन-संपदा में बढ़ोतरी होती है। हांथी के पांव के निशान हो तो उन्नति, घोड़े के खुर के निशान हों तो युद्ध, बाघ के पैर के निशान हो तो आतंक और मुर्गियों के पैर के निशान हो तो अकाल होने का संकेत माना जाता है।
परम्परानुसार इस प्राकृतिक मंदिर में हर दिन पूजा नहीं होती है। इस मंदिर के कपाट साल में केवल एक ही बार खुलते हैं। इसी दिन यहां विशाल मेला लगता है। हजारों की तादाद में यहाँ भक्तगण पहुंचते है। हर साल भादो माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि के बाद आने वाले बुधवार को इस प्राकृतिक देवालय को खोल दिया जाता है। इस पूरे दिन श्रद्धालु लिंगई माता के दर्शन करते हैं। पूरे दिन माता की पूजा- अर्चना की जाती है। यहां पर जब तक सभी श्रद्धालु माता के दर्शन नहीं कर लेते तब तक पट खुला रहता है।
हवाई मार्ग - माता लिंगेश्वरी देवी मंदिर का निकटतम हवाई अड्डा रायपुर का स्वामी विवेकानंद है। यहां से आप टैक्सी लेकर मंदिर जा सकते हैं।
रेल मार्ग - अगर आप ट्रेन से यात्रा कर रहे हैं तो आप नजदीकी रेलवे स्टेशन पर उतर सकते हैं। यहां का निकटतम रेलवे स्टेशन दुर्ग या रायपुर है। यहां से आप मंदिर के लिए टैक्सी ले सकते हैं।
सड़क मार्ग- छत्तीसगढ़ के प्रमुख शहरों जैसे रायपुर, बिलासपुर और दुर्ग से लिंगई माता मंदिर के लिए नियमित बस सेवाएं उपलब्ध हैं। आप स्थानीय बस स्टैंड से लिंगई माता मंदिर के लिए बस सेवा ले सकते हैं।
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