Logo

तुर्रीधाम शिव मंदिर, छत्तीसगढ़ (Turridham Shiv Temple, Chhattisgarh)

तुर्रीधाम शिव मंदिर, छत्तीसगढ़ (Turridham Shiv Temple, Chhattisgarh)

तुर्रीधाम की शिवलिंग का रहस्यमयी जल से होता है अभिषेक, जल कहां से आता है वैज्ञानिक भी पता नहीं लगा सके


छत्तीसगढ़ के हृदय स्थल जांजगीर-चांपा जिले के अति पावन धरा तुर्रीधाम शिव भक्तों के लिए अत्यंत पूजनीय है। सावन मास में हजारों की संख्या में शिव भक्त अपनी मनोकामना लेकर तुर्रीधाम पहुंचते हैं। हालांकि यहां साल के बारह महीने भक्तों की भीड़ देखने मिलती है। स्थानीय लोगों के मुताबिक यहां का शिवलिंग, प्रमुख ज्योतिर्लिंग के समान ही वंदनीय है। 


रहस्यमयी जल से होता है शिवलिंग का अभिषेक 


इस मंदिर का स्थापत्य अनोखा है। इसके चारों ओर मंडप बनाया गया है। गर्भगृह मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार से 8 फीट की गहराई पर है, गर्भगृह जाने के लिए नीचे की ओर आती हुई सीढ़ियां बनी हुई है। यहां शिवलिंग पूर्वाभिमुख है। इस तुर्रीधाम की प्रमुख विशेषता यह है कि इसके गर्भगृह में अनवरत जल बहता हुआ आ रहा है, जहां से जलाभिषेक हो रहा है। वहीं दीवार पर योनि आकार बना हुआ है, साथ ही जल कहां से आ रहा है ये आज भी रहस्य है, इसका पता भू वैज्ञानिक भी नहीं लगा पाए हैं। इसी जल पुंज के नीचे ही उत्तर मुखी प्राचीन शिवलिंग स्थापित है, जिस पर सदैव ही प्राकृतिक रूप से शिवलिंग पर जलाभिषेक होता रहता है। 


इस जल स्त्रोत की खासियत है कि उसकी गति वर्षा, ग्रीष्म, शीत ऋतु अलग-अलग समय में धीमी और तेज गति हो जाती है। लेकिन ये जलस्त्रोत आजतक बंद नहीं हुआ है। इस जल पुंज को स्थानीय लोग गंगाजल के समान ही पवित्र और औषधीय गुणों से भरपूर मान कर बोतलों में भरकर अपने घर ले जाते है। मान्यता है कि अस्वस्थ होने पर इस जल को पिलाने से अत्यंत लाभ मिलता है। उन्होंने बताया कि मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग के निकट ही नंदी पश्चिम की ओर मुख किये विराजमान है।


राजा को आया तुर्रीधाम वाले महादेव का सपना 


मिली जानकारी के अनुसार सक्ती राज्य के राजा लीलाधर को सपना आया जिसमें शिव जी ने कहा कि मैं यहां पर हूं मुझे बाहर निकालो। तब राजा लीलाधर ने अपने लोगों को उक्त स्थान पर भेजा और शिवलिंग खोजने लगे। उस समय तुर्रीधाम सहित आसपास का इलाका घनघोर जंगल था। कई दिनों की खोज के बाद अचानक एक व्यक्ति ने जमीन से पानी निकलते हुए देखा लेकिन पानी का कोई ठोस स्त्रोत नहीं होने के बाद भी पानी निकलता देख अचंभित हुआ। जब उस स्थान पर खुदाई की गई तो वहीं शिवलिंग मिला। इसके बाद राजा लीलाधर के द्वारा मंदिर स्थापना की। यहां हर साल तुर्री मेला लगता है। शिवरात्रि पर सुबह चार बजे सबसे पहले राजपरिवार के राजा पूजा अर्चना करते हैं और प्रदेशवासियों के लिए आशीर्वाद मांगते है। फिर श्रद्धालु दर्शन करते है।


तुर्रीधाम शिव मंदिर कैसे पहुंचे


हवाई मार्ग - यहां का सबसे निकटतम हवाई अड्डा रायपुर है। यहां से आप टैक्सी या बस के द्वारा दुर्ग पहुंच सकते हैं, फिर वहां से मंदिर जा सकते हैं।

रेल मार्ग - यहां जाने के लिए निकटतम रेलवे स्टेशन दुर्ग है। यहां से आप ऑटो या टैक्सी लेकर तुर्रीधाम मंदिर पहुंच सकते हैं। 

सड़क मार्ग - तुर्रीधाम मंदिर दुर्ग शहर से लगभग 20 से 25 किलोमीटर की दूरी पर है। आप अपनी कार या बस द्वारा सीधे यहां तक पहुंच सकते हैं।


........................................................................................................
यह भी जाने

संबंधित लेख

HomeBook PoojaBook PoojaTempleTempleKundliKundliPanchangPanchang