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छत्तीसगढ़ में कई चमत्कारी मंदिर है, जिनकी कई मान्यताएं है और कई दिलचस्प कहानियां है। ठीक इसी प्रकार से हम एक मंदिर के बारे में आपको बताने जा रहे हैं जिसका नाम है हाटकेश्वर महादेव मंदिर। ये मंदिर रायपुर से 7 किलोमीटर दूर स्थित है, जिसे हाटकेश्वर मंदिर अर्थात महादेव घाट के नाम से जाना जाता है। ये मंदिर खारुन नदी के तट पर स्थित है। कहते है कि रायपुर शहर की शुरुआती बसाहट खारुन नदी के तट पर स्थित महादेव घाट क्षेत्र में हुई थी। ये मंदिर प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों में से एक है, इसलिए देश ही नहीं बल्कि विदेशों से भी श्रद्धालु यहां दर्शन करने आते हैं।
मंदिर परिसर का निर्माण कलचुरी वंश के राजाओं ने कराया गया था। मंदिर के शिलालेख से पता चलता है कि ये मंदिर कलचुरी शासक ने 1402 ई. में बनवाया था। संस्कृत में ब्रह्मदेव राय की संपादकीय लिपि अभी भी महंत घासीदास मेमोरियल संग्रहालय में संरक्षित है। रायपुर के कलचुरी राजाओं ने सर्वप्रथम इस क्षेत्र में अपनी राजधानी बनाई थी। राजा ब्रह्मदेव के विक्रम संवत् 1458 अर्थात ईं. के शिलालेखों से ज्ञात होता है कि हाजीराज ने यहां हाटकेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण कराया था।
मंदिर की सीढ़ियों से गर्भगृह तक जाने वाले रास्ते में कई सारी मूर्तियां देखने को मिलेगी। स्थानीय प्रशासन ने खारुन नदी के आस-पास अनेक छोटे-बड़े मंदिरों का निर्माण करवाया है। लेकिन सर्वाधिक महत्व हाटकेश्वर महादेव मंदिर का है। ये मंदिर बाहर से आधुनिक प्रतीत होता है। लेकिन इसकी संरचना उत्तर- मध्यकालीन होने का अनुमान लगाया जा सकता है।
महादेव घाट में शिवलिंग स्थापना की कहानी पुरानी है। मंदिर के पुजारी इसे त्रेता युग से जोड़कर बताते हैं। जब राम, सीता और भाई लक्ष्मण वनवास में थे तब इस शिवलिंग की स्थापना लक्ष्मण जी ने की थी। वहीं बजरंग बली अपने कंधे पर महादेव को खारुन नदी के किनारे लेकर आए थे। इसके चलते इस मंदिर की लोकप्रियता केवल राज्य में ही नहीं देशभर में है।
मंदिर में शिवलिंग स्थापना को लेकर एक और मान्यता लोकप्रिय मानी जाती है। इसमें कहा जाता है कि खारुन नदी को द्वापर युग में द्वारकी नदी के नाम से जाना जाता था। महाकौशल प्रदेश के हैहयवंशी राजा ब्रह्मदेव जब नदी के किनारे स्थित घने जंगल में शिकार करने आए थे तब नदी में बहता पत्थर का शिवलिंग दिखा जिसकी उन्होंने स्थापना की।
हाटकेश्वर मंदिर में 500 सालों से एक पुराने अखंड ज्योति प्रज्वलित की जा रही है। लोगों का मानना है कि इस अखंड ज्योति के दर्शन मात्र से लोगों के कष्ट दूर होते है तो वहीं कुछ लोग इस ज्योति के ताप से रुद्राक्ष को सिद्ध करते हैं।
खारुन नदी के बीचो-बीच जाकर यहां पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान भी किया जाता है। गया और काशी की तरह यहां विशेष पूजा पाठ किया जाता है।
श्रावण में हर सोमवार को शिवलिंग का विविध सामग्री से श्रृंगार किया जाता है। महादेव घाट पर एक साल में तीन बार मेला लगता है। कार्तिक पूर्णिमा, माघ पूर्णिमा और महाशिवरात्रि पर शिवलिंग का रुद्राभिषेक पूजन करने हजारों श्रद्धालु उमड़ते है।
हवाई मार्ग - मंदिर का निकटतम हवाई अड्डा स्वामी विवेकानंद हवाई अड्डा (20.2 किमी) है। छत्तीसगढ़ राज्य की राजधानी रायपुर में हवाई अड्डा है जो देश के लगभग सभी महत्वपूर्ण हवाई अड्डों से जुड़ा हुआ है। यहां से आप मंदिर के लिए टैक्सी ले सकते हैं।
रेल मार्ग - रायपुर और बिलासपुर छत्तीसगढ़ में दो सबसे महत्वपूर्ण रेलवे स्टेशन हैं। इन स्टेशनों पर देश भर से कई एक्सप्रेस ट्रेनें रुकती हैं। आप रेलवे स्टेशन से मंदिर के लिए टैक्सी या ऑटो ले सकते हैं।
सड़क मार्ग - छत्तीसगढ़ में अपने सभी शहरों और कस्बों को जोड़ने वाला एक अच्छा सड़क नेटवर्क है। राष्ट्रीय राजमार्ग 6, 16, और 43 छत्तीसगढ़ और देश के अन्य हिस्सों के सभी महत्वपूर्ण शहरों और कस्बों को जोड़ते हैं। आप सड़क मार्ग से आसान से पहुंच सकते हैं।
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