दीपावली का पर्व हर वर्ष कार्तिक अमावस्या की रात मनाया जाता है। इस दिन धन, समृद्धि और सौभाग्य की अधिष्ठात्री देवी लक्ष्मी की पूजा का विशेष महत्व होता है। माना जाता है कि दीपावली की रात जब घर-घर दीपक जलाए जाते हैं, तो लक्ष्मी जी अपने भक्तों के घर आती हैं। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि इस रात एक दीपक देवी लक्ष्मी की बड़ी बहन अलक्ष्मी के नाम से भी जलाया जाता है। इसका उद्देश्य दरिद्रता और नकारात्मकता को घर से दूर रखना होता है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, समुद्र मंथन के समय सबसे पहले देवी लक्ष्मी की बड़ी बहन अलक्ष्मी प्रकट हुई थीं। अलक्ष्मी को दरिद्रता, कलह और दुर्भाग्य की देवी कहा गया है। जबकि उनके बाद समुद्र से महालक्ष्मी प्रकट हुईं, जो धन-धान्य और समृद्धि की देवी मानी जाती हैं। इस प्रकार, लक्ष्मी जी जहां सुख-समृद्धि का प्रतीक हैं, वहीं अलक्ष्मी दरिद्रता और कलह का प्रतीक मानी जाती हैं।
कथाओं में बताया गया है कि देवी अलक्ष्मी का विवाह एक मुनि से हुआ था। जब वे अपने पति के साथ उनके आश्रम पहुंचीं, तो उन्होंने उस आश्रम में प्रवेश करने से इनकार कर दिया। जब उनसे कारण पूछा गया, तो अलक्ष्मी ने बताया- “मैं केवल उन घरों में जाती हूं जहां गंदगी रहती है, जहां लोग आपस में झगड़ते हैं, जहां आलस्य और अधर्म का वास है। जो घर साफ-सुथरे, शांत और धार्मिक होते हैं, वहां मैं प्रवेश नहीं कर पाती। ऐसे घरों में मेरी बहन लक्ष्मी का अधिकार होता है।”
दीपावली की रात देवी लक्ष्मी के स्वागत के लिए दीप जलाए जाते हैं। मान्यता है कि इसी रात एक दीपक घर के बाहर अलक्ष्मी के नाम से भी जलाना चाहिए। इसका भाव यह है कि “दरिद्रता रूपी अलक्ष्मी” को विनम्रता से घर के बाहर ही रोक दिया जाए, ताकि वे घर के भीतर प्रवेश न करें। यह दीपक अलक्ष्मी को समर्पित कर कहा जाता है “आपका स्वागत द्वार पर है, परंतु कृपया भीतर न आएं।”
यह परंपरा प्रतीकात्मक रूप से यह सिखाती है कि जैसे हम दीपक से अंधकार को दूर करते हैं, वैसे ही अपने जीवन से नकारात्मकता, कलह और आलस्य को भी दूर रखें।
अलक्ष्मी की कथा यह सिखाती है कि देवी लक्ष्मी की कृपा पाने के लिए केवल पूजा-अर्चना ही पर्याप्त नहीं, बल्कि हमारे कर्म और जीवनशैली भी शुद्ध होनी चाहिए।
जो व्यक्ति इन नियमों का पालन करता है, उसके घर में दरिद्रता का प्रवेश नहीं होता और वहां सदैव लक्ष्मी का वास बना रहता है।