Diwali Kali Puja: दिवाली की रात क्या है काली पूजा का महत्व, जानिए क्यों होती है महानिशा पूजा
दिवाली को आमतौर पर महालक्ष्मी की आराधना का पर्व माना जाता है, लेकिन इसी रात का एक और गूढ़ और शक्तिशाली पक्ष काली पूजा है। यह पूजा विशेष रूप से पूर्वी भारत, खासकर पश्चिम बंगाल, असम, ओडिशा और बिहार में बड़े भक्ति भाव से की जाती है। कार्तिक मास की अमावस्या तिथि, जिसे महानिशा कहा जाता है, इस दिन मां काली की आराधना की जाती है। यह वही रात्रि है जब देवी काली का प्रकट होना माना जाता है और वे अंधकार पर विजय की प्रतीक बनकर बुराई का नाश करती हैं।
काली पूजा का इतिहास और पौराणिक पृष्ठभूमि
पौराणिक कथाओं के अनुसार, कार्तिक मास की अमावस्या की रात देवी दुर्गा के क्रोध से मां काली का प्रकट हुआ था। जब राक्षस मधु और कैटभ समेत अनेक असुरों ने तीनों लोकों में आतंक फैला रखा था, तब देवी ने अपने भयानक रूप काली को धारण कर उनका विनाश किया। यह वही समय था जब संसार में अंधकार और भय का साम्राज्य था। मां काली ने उस अंधकार को समाप्त कर प्रकाश का मार्ग प्रशस्त किया। इसलिए, इस रात को “काली रात” या “अंधकार की रात” कहा जाता है, जब देवी की पूजा कर नकारात्मकता और भय को समाप्त करने की कामना की जाती है।
क्यों होती है दिवाली की रात काली पूजा
- अंधकार पर विजय का प्रतीक: अमावस्या की रात अंधकार और निष्क्रियता का प्रतीक होती है। मां काली की पूजा इस बात का संदेश देती है कि चाहे अंधकार कितना भी गहरा क्यों न हो, प्रकाश अंततः जीतता है।
- नकारात्मक शक्तियों से रक्षा: मां काली की उपासना से भय, बुरे प्रभाव, काले जादू और दुष्ट शक्तियों से सुरक्षा मिलती है। यह पूजा आत्मा को नकारात्मकता से मुक्त करती है।
- साहस और आत्मविश्वास का संचार: मां काली शक्ति और निर्भयता की देवी हैं। उनकी भक्ति से व्यक्ति में आत्मविश्वास, साहस और आंतरिक बल बढ़ता है, जिससे जीवन की कठिनाइयों का सामना सहजता से किया जा सकता है।
- आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग: तंत्र शास्त्र के अनुसार, देवी काली महाविद्याओं में सर्वोपरि हैं। उनकी साधना से साधक को अष्ट सिद्धियां और आत्मिक शक्ति की प्राप्ति होती है।
महानिशा पूजा का शुभ मुहूर्त 2025
साल 2025 में काली पूजा 20 अक्टूबर को मनाई जाएगी। इस दिन अमावस्या तिथि रात्रि के समय रहेगी।
- महानिशा काल (मध्यरात्रि) मुहूर्त: रात 11:30 बजे से 12:30 बजे तक
यह समय मां काली की आराधना के लिए अत्यंत शुभ माना जाता है। इसी काल में देवी की कृपा शीघ्र प्राप्त होती है।
काली पूजा की विधि
- स्नान और शुद्धि: पूजा से पहले स्नान कर साफ वस्त्र धारण करें।
- मां काली की स्थापना: काले या लाल वस्त्र पर मां काली की मूर्ति या चित्र स्थापित करें।
- दीप और धूप जलाएं: तेल या घी का दीपक जलाएं और सुगंधित धूप अर्पित करें।
- मंत्र जाप: “ॐ क्रीं कालीकायै नमः” या “जय मां काली, जय महाकाली” मंत्र का जाप करें।
- भोग अर्पण: फल, मिठाई, नारियल, चावल और काली हल्दी अर्पित करें।
- ध्यान और प्रार्थना: देवी से भयमुक्ति, रोग-नाश और आत्मबल की प्रार्थना करें।
विशेष उपाय और लाभ
- काली अमावस्या की रात काली हल्दी, गोमती चक्र और चांदी का सिक्का पीले कपड़े में बांधकर तिजोरी या धनस्थान में रखें, आर्थिक वृद्धि होती है।
- रोग या मानसिक तनाव से ग्रस्त व्यक्ति को काली हल्दी धारण कराने से लाभ मिलता है।
- इस दिन विशेष तंत्र साधना करने वाले साधक अपनी ऊर्जा और आध्यात्मिक शक्ति को बढ़ाने के लिए मां काली की आराधना करते हैं।
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