दिवाली का पर्व भारतीय संस्कृति में सिर्फ दीपों का नहीं, बल्कि समृद्धि, उजाला और आध्यात्मिक उत्थान का प्रतीक माना जाता है। यह वह दिन है जब घर-घर में देवी लक्ष्मी और भगवान कुबेर की पूजा बड़े विधि-विधान से की जाती है। मान्यता है कि इस दिन जो व्यक्ति श्रद्धा और संकल्प के साथ कुबेर यंत्र की स्थापना करता है, उसके जीवन में धन, वैभव और सौभाग्य की वृद्धि होती है।
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भगवान कुबेर धन के स्वामी और देवताओं के खजांची हैं। वे उत्तर दिशा के अधिपति और भगवान शिव के गणों में प्रमुख माने गए हैं। कुबेर जी को यक्षों का राजा भी कहा जाता है, जिनके पास समस्त धन, रत्न और संपदा का अधिकार है। इसलिए दीपावली की रात्रि को लक्ष्मी पूजन के साथ कुबेर पूजन का विशेष विधान बताया गया है।
पुराणों में वर्णन है कि कार्तिक अमावस्या की रात्रि को माता लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं और उनके साथ भगवान कुबेर भी होते हैं। इसीलिए इस दिन कुबेर यंत्र की स्थापना और पूजा का विधान है। ऐसा माना जाता है कि यदि इस रात्रि में व्यक्ति श्रद्धापूर्वक कुबेर यंत्र बनाकर भगवान कुबेर की आराधना करता है, तो उसके घर में कभी धन की कमी नहीं रहती और लक्ष्मी का स्थायी वास होता है।
कुबेर यंत्र एक पवित्र ज्यामितीय आकृति होती है, जिसमें विशेष अंकों का संयोजन होता है। यह यंत्र भगवान कुबेर की दिव्य ऊर्जा को आकर्षित करने वाला माध्यम माना जाता है। इसे तांबे, सोने या भोजपत्र पर स्वच्छता और श्रद्धा के साथ बनाया जाता है।
दिवाली की रात अमावस्या की होती है, जिसे शास्त्रों में ऊर्जाओं का सबसे शक्तिशाली समय कहा गया है। इस दिन वातावरण में व्याप्त सकारात्मक शक्ति कुबेर यंत्र की प्रभावशीलता को कई गुना बढ़ा देती है। दीपों का प्रकाश, मंत्रों की ध्वनि और श्रद्धा का भाव तीनों मिलकर यंत्र को धन और समृद्धि का स्रोत बना देते हैं।
गरुड़ पुराण और लक्ष्मी तंत्र में उल्लेख है कि कुबेर यंत्र की स्थापना से व्यक्ति को धन, यश, वैभव और स्थिरता प्राप्त होती है। यह यंत्र आर्थिक उन्नति के साथ-साथ व्यक्ति के मन में सकारात्मकता और कर्मठता को भी बढ़ाता है।
धर्मशास्त्रों के अनुसार कुबेर जी तभी प्रसन्न होते हैं जब व्यक्ति सत्य, परिश्रम और दान के मार्ग पर चलता है। इसलिए केवल यंत्र बनाना ही पर्याप्त नहीं, बल्कि सदाचारपूर्ण जीवन जीना भी आवश्यक है।