उगादी त्योहार क्यों मनाया जाता है

Ugadi Story: देशभर में अलग-अलग नामों से मनाया जाता है उगादि त्योहार, जानिए इसे मनाए जाने की पूरी कहानी 


उगादि दक्षिण भारत में एक महत्वपूर्ण नववर्ष उत्सव होता है। "उगादि" शब्द संस्कृत के "युग" अर्थात् "युग की शुरुआत" और "आदि" अर्थात् "आरंभ" से मिलकर बना है, जिसका अर्थ होता है नए युग का आरंभ। यह पर्व विशेष रूप से आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक और महाराष्ट्र में धूमधाम से मनाया जाता है। महाराष्ट्र में इसे "गुड़ी पड़वा" भी कहते हैं।
उगादि का इतिहास और मान्यताएं

पौराणिक कथा के अनुसार, उगादि त्योहार के दिन भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि का निर्माण किया था, और समय, तिथि, दिन, योग और ग्रहों की गणना प्रक्रिया की शुरुआत की थी। इसलिए इस दिन को "काल गणना" का प्रारंभिक दिन भी कहा जाता है। उगादि त्योहार हिंदू नव वर्ष की शुरुआत का प्रतीक है।

उगादि पर्व की रस्में और परंपराएं


  • इस दिन लोग सुबह जल्दी उठकर नहाने के पानी में चुटकी भर हल्दी, तिल और चंदन डालकर स्नान करते हैं। इससे अंतरात्मा शुद्ध होती है और शांति मिलती है।
  • इस दिन लोग अपने घर की सफाई करते हैं और पूरे घर को सजाते हैं। साथ ही अपने घर के मुख्य द्वार पर रंगोली भी बनाते हैं।
  • इस दिन लोग खास तौर पर पंचांग सुनते हैं।
  • उगादि के अवसर पर "उगादि पचड़ी" का विशेष महत्व होता है। यह भोजन 6 अलग-अलग स्वादों के साथ तैयार किया जाता है - तीखा, खट्टा, मीठा, कड़वा, कसैला और नमकीन। ये सभी स्वाद आपको जीवन की विभिन्न परिस्थितियों से परिचित कराते हैं।
  • इस दिन सभी लोग भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा की पूजा करते हैं, और नए वस्त्र पहन कर एक दूसरे के घर जाकर उन्हें बधाइयां देते हैं।

इन स्थानों पर मनाया जाता है उगादि त्योहार


  • आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में इसे "उगादि" पर्व के रूप में मनाया जाता है।
  • कर्नाटक में इसे "युगादि" त्योहार के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की विधिवत रूप से पूजा की जाती है।
  • महाराष्ट्र में इसे "गुड़ी पड़वा" के रूप में मनाया जाता है और इस दिन गुड़ की खीर और पूरण पोली बनाने की परंपरा है।
  • गोवा और कोंकण क्षेत्र में इसे "संवत्सर पाडवो" के रूप में मनाया जाता है।

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लेके पूजा की थाली

लेके पूजा की थाली, ज्योत मन की जगा ली
तेरी आरती उतारूँ, भोली माँ
तू जो दे-दे सहारा, सुख जीवन का सारा
तेरे चरणों पे वारूँ, भोली माँ

सत्यनारायण व्रत विधि

भगवान सत्यनारायण, भगवान विष्णु का ही स्वरूप हैं। सत्यनारायण की पूजा का असल अर्थ है 'सत्य की नारायण के रूप' में पूजा। भगवान सत्यनारायण व्रत हिंदू धार्मिक मान्यता में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है।

भजमन शंकर भोलेनाथ - भजन (Bhajman Shankar Bholenath)

भजमन शंकर भोलेनाथ,
डमरू मधुर बजाने वाले,

जिसको जीवन में मिला सत्संग है (Jisko jivan Main Mila Satsang Hai)

जिसके जीवन मैं मिला सत्संग हैं,
उसे हर घड़ी आनंद ही आनंद है ।

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