हिंदू धर्म में हर त्यौहार का अपना महत्वपूर्ण स्थान है और शारदिये नवरात्रि के दौरान रखे जाने वाले व्रतों में से उपांग ललिता व्रत भी अत्यंत विशेष माना जाता है। इस व्रत को ललिता पंचमी के नाम से भी जाना जाता है, जो शारदीय नवरात्रि के 5वें दिन मनाया जाता है। इस दिन देवी ललिता जिन्हें त्रिपुर सुंदरी भी कहते हैं और जो दस महाविद्याओं में से एक हैं, उनकी पूजा होती है। देवी ललिता का स्वरूप सौंदर्य, शक्ति और करुणा का प्रतीक है।
इस वर्ष चूंकि शारदीय नवरात्रि 22 सितंबर, सोमवार से शुरू हो रही है, इसलिए उपांग ललिता 26 सितंबर, शुक्रवार को मनाई जाएगी, जो शारदीय नवरात्रि का पांचवा दिन है। यह त्यौहार विशेष रूप से गुजरात और महाराष्ट्र में मनाया जाता है।
शास्त्रों के अनुसार देवी ललिता की पूजा और अर्चना करने से साधक को बल, सौंदर्य और सौभाग्य की प्राप्ति होती है। साथ ही, शारदीय नवरात्रि का यह व्रत करने से जीवन से सभी दुर्भाग्य और बाधाएं दूर हो जाती हैं तथा शांति और समृद्धि का आशीर्वाद मिलता है।
ललिता सप्तमी के दिन प्रातः सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें और फिर साफ कपड़े पहनें। इसके बाद पूजा कक्ष में ईशान कोण, पूर्व या उत्तर दिशा में एक चौकी रखें, जिसमें ललिता देवी की मूर्ति या तस्वीर रखी जा सके। फिर उस चौकी पर लाल या पीले वस्त्र बिछाकर ललिता देवी की प्रतिमा या फोटो स्थापित करें।
लाल रंग शुभ माना जाता है, इसलिए ललिता देवी की प्रतिमा को लाल वस्त्र पहनाएं और उन्हें लाल गुड़हल का फूल भी अर्पित करें। इसके बाद उन्हें नैवेद्य और मिठाई का भोग लगाएं और ‘ॐ श्रीं ह्रीं क्लीं ऐं सौः ॐ ह्रीं श्रीं क ए ई ल ह्रीं ह स क ह ल ह्रीं सकल ह्रीं सौः ऐं क्लीं ह्रीं श्रीं नमः” मंत्र का कम से कम 108 बार जाप करें। इसके अलावा विशेष रूप से ललिता सहस्रनाम या ललितात्रिशती का पाठ करें, क्योंकि इन पाठ से पूजा का पूर्ण फल प्राप्त होता है।