Vat Savitri Vrat Katha: जानिए वट सावित्री व्रत की कथा, यमराज से मांग लाई थी पति के प्राण
वट सावित्री का व्रत पति की लंबी आयु, सुख-समृद्धि और वैवाहिक जीवन की सफलता के लिए किया जाने वाला एक पवित्र व्रत है। यह व्रत विशेष रूप से विवाहित स्त्रियों द्वारा किया जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, यह पर्व ज्येष्ठ मास की अमावस्या को मनाया जाता है। इस दिन महिलाएं उपवास रखती हैं, वट वृक्ष ‘बरगद के पेड़’ की पूजा करती हैं और सावित्री और सत्यवान की कथा को श्रद्धा से सुनती हैं।
तपस्वी सत्यवान से सावित्री ने किया था स्वयंवर
वट सावित्री व्रत की मूल कथा महाभारत के वनपर्व में वर्णित है। इस कथा के अनुसार, मद्रदेश के राजा अश्वपति की कोई संतान नहीं थी। उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए वर्षों तक तपस्या की और देवी सावित्री की आराधना की। देवी की कृपा से उन्हें एक तेजस्वी कन्या की प्राप्ति हुई, जिसका नाम सावित्री रखा गया।
सावित्री अत्यंत सुंदर, बुद्धिमान और धर्मनिष्ठ थी। विवाह के लिए योग्य होने पर जब सावित्री ने स्वयंवर की इच्छा जताई, तो वह वन में रहने वाले तपस्वी सत्यवान को अपना वर चुनती है। लेकिन नारद मुनि ने चेतावनी दी कि सत्यवान की आयु कम है और उसके जीवन में मात्र एक साल बाकी है। इसके बावजूद सावित्री ने प्रेम और निष्ठा के साथ सत्यवान से विवाह किया।
सावित्री ने यमराज से की थी सौ पुत्रों की कामना
विवाह के बाद सावित्री अपने ससुराल चली गई और एक वर्ष तक पति की सेवा और आराधना में लीन रही। जब सत्यवान की मृत्यु का दिन आया, तो वह उसके साथ वन गई। वहीं सत्यवान की मृत्यु हो गई और यमराज उसके प्राण लेने आए। फिर सावित्री यमराज के पीछे-पीछे चलने लगी और अपनी तपस्या और बुद्धिमत्ता से उन्होंने यमराज को प्रभावित किया।
सावित्री ने यमराज से पहले अपने ससुर का नेत्र-ज्योति और राज्य मांगा, फिर सौ पुत्रों की कामना की। जब यमराज ने वरदान दे दिया, तो सावित्री ने युक्ति से यमराज को बाध्य किया कि उसे सत्यवान को लौटाना होगा, क्योंकि सौ पुत्रों की प्राप्ति पति के बिना संभव नहीं। आखिरकार यमराज सावित्री के प्रेम, व्रत, बुद्धिमत्ता और दृढ़ निश्चय से प्रसन्न होकर सत्यवान के प्राण लौटा देते हैं।
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