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ऊषा अर्घ्य की विधियां

ऊषा अर्घ्य की विधियां

उषा अर्घ्य के साथ समाप्त होगा छठ, जानें छठ में अर्घ्य समर्पण की विधियां


छठ महापर्व भारत में सूर्य उपासना का एक सबसे पवित्र और कठिन त्योहार है। जिसे कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि पर मनाया जाता है। आपने आप में अनूठा ये महापर्व नहाय खाय के साथ प्रारंभ होकर 36 घंटे के कठिन उपवास के साथ संपन्न होता है। इस पर्व में भगवान भास्कर और छठी मैया की पूजा के लिए महिलाएं एवं पुरुष उपवास रखते हैं और संतान की दीर्घायु व परिवार की खुशहाली की कामना करते हैं। इस व्रत में व्रतियों द्वारा उगते और डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। 


छठ महापर्व की विधि और अर्घ्य 


छठ पर्व का चौथा और अंतिम दिन उषा अर्घ्य का दिन होता है जिसे सप्तमी के दिन उगते सूर्य को अर्पित किया जाता है। इस पूजा का महत्व अत्यंत विशेष माना जाता है। छठ पर्व चार दिनों तक चलता है जिसमें हर दिन की अपनी विशिष्ट पूजा विधि और नियम होते हैं।


सुबह का अर्घ्य दान


छठ के चौथे दिन सप्तमी को सूर्योदय के समय भक्त उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करते हैं। इस समय व्रती नदी, तालाब या जलस्रोत में खड़े होकर सूर्य को प्रणाम करते हैं और अर्घ्य देते हैं। कुछ व्रती शाम के अर्घ्य में चढ़ाए गए पकवानों को नए पकवानों से बदल देते हैं लेकिन फलों को नहीं बदलते। इसके बाद विधिपूर्वक पूजा करके सूर्य देव को अर्घ्य दिया जाता है और प्रसाद बांटने की परंपरा निभाई जाती है। घर लौटने के बाद प्रसाद को पड़ोसियों के बीच बांटा जाता है। इसके पश्चात पीपल के पेड़ की पूजा की जाती है और व्रती शरबत और प्रसाद का सेवन करके व्रत का पारण करते हैं। व्रत समाप्ति की इस प्रक्रिया को पारण कहा जाता है।


अर्घ्य समर्पण की विधि


छठ पूजा के समय भक्त नदी, तालाब या नहर के जल में उतर कर सूर्य देव का ध्यान करते हैं। वे बांस और पीतल के बर्तनों में रखे प्रसाद को हाथ में लेकर सूर्य को तीन बार दिखाते हैं और जल स्पर्श कराते हैं। इसके बाद परिवार के अन्य सदस्य दूध से भरा लोटा लेकर सूर्य को अर्पित करते हैं और सूर्य देव को जल अर्पण करते हैं। इस विधि में पूरी श्रद्धा और निष्ठा के साथ सूर्य भगवान का ध्यान करना अत्यंत महत्वपूर्ण होता है।


क्या है छठ में अर्घ्य का महत्व


छठ महापर्व में सूर्य देवता और छठी मैया की पूजा की जाती है। मान्यता है कि यह व्रत करने से संतान को दीर्घायु और समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस व्रत को करने से निरोगी जीवन का वरदान भी मिलता है। छठ पर्व लोक आस्था का महापर्व है जिसे हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। यह व्रत 36 घंटे का निर्जला उपवास होता है जो चार दिनों तक चलता है। पहले दिन नहाय-खाय होता है, दूसरे दिन खरना मनाया जाता है, तीसरे दिन डूबते सूर्य को अर्घ्य अर्पित किया जाता है और अंतिम दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ व्रत का समापन होता है।


उगते सूर्य के अर्घ्य के साथ छठ पूजा का समापन


8 नवंबर, 2024 को सप्तमी के दिन उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ छठ पूजा का समापन होगा। इस दिन व्रती महिलाएं और पुरुष, छठी मैया और सूर्य देव से अपने परिवार की सुख-शांति और संतान की लंबी उम्र की प्रार्थना करते हैं। अर्घ्य देने के बाद घर के देवी-देवता की पूजा की जाती है और प्रसाद ग्रहण करके व्रत का पारण किया जाता है।


छठ पूजा का उद्देश्य और मान्यता


छठ पूजा को विशेष रूप से संतान की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि के लिए किया जाता है। यह व्रत कठिन और पूर्ण निष्ठा के साथ किया जाता है, जिसमें व्रती व्यक्ति पूरी श्रद्धा के साथ निर्जला उपवास रखते हैं। इस पर्व को मनाने से परिवार में सुख, शांति, समृद्धि, स्वास्थ्य और मान-सम्मान की प्राप्ति होती है।


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