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सिर्फ पितृपक्ष ही नहीं गया में सालभर होतें हैं पिंडदान, जानिए क्या है यहां का महत्व

सिर्फ पितृपक्ष ही नहीं गया में सालभर होतें हैं पिंडदान, जानिए क्या है  यहां का महत्व

पौराणिक कथा के अनुसार, गयासुर नाम का एक असुर था। वह श्री हरि की  बहुत बड़ा भक्त था। उसने अपनी भक्ति के द्वारा भगवान विष्णु को प्रसन्न किया और सभी देवी-देवताओं से पवित्रता का  वरदान प्राप्त किया। माना जाता है कि प्राचीन समय में गयासुर के दर्शन करने से जातक को सभी पापों से मुक्ति मिलती थी। उसे मरने के बाद स्वर्ग की प्राप्ति हो जाती थी। इससे स्वर्ग में अव्यवस्था फैल गई। ऐसा देख सभी देवी-देवता चिंतित होने लगे। इस स्थिति में देवी-देवताओं ने गयासुर से किसी पवित्र जगह पर यज्ञ करने की इच्छा जाहिर की, इस बात को सुनकर गयासुर गया में भूमि पर लेट गए और इसी जगह पर देवी-देवताओं ने गयासुर के शरीर पर विधिपूर्वक यज्ञ किया। यज्ञ के दौरान गयासुर का शरीर स्थिर रहा। ऐसा देख सभी देवता श्रीहरि के पास पहुंचे। गयासुर की भक्ति से मुक्ति दिलाने की इच्छा जताई तभी विष्णु भगवान गयासुर के शरीर पर बैठ गए और उन्होंने गयासुर से मनचाहा वर मांगने के लिए कहा। गयासुर ने बोला कि आप अनंत काल तक इस स्थान पर विराजमान रहें। इस बात को सुनकर प्रभू उसके भाव में डूब गए और गयासुर का शरीर पत्थर में बदल गया जो आज गया के नाम से प्रसिद्ध है।


पितरों के लिए विशेष पक्ष यानी पितृपक्ष


वैसे तो पूरे साल गयाजी में पिंडदान किया जाता है लेकिन पितरों के लिए विशेष पक्ष यानि पितृपक्ष के दौरान पिंडदान करने का अलग महत्व शास्त्रों में बताया गया है। पितृपक्ष प्रतिवर्ष भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अनन्त चतुदर्शी के दिन से प्रारम्भ होता है जो अश्विन मास की आमावस्या तिथि को समाप्त होता है।


पूरे साल हो सकता है पिंडदान


बता दें कि गया जी में पिंडदान पूरे साल किया जा सकता है लेकिन गया में श्राद्ध या गया में पिंडदान शुभ मुहूर्त 17 दिन के पितृपक्ष मेले को माना गया है। फल्गु नदी के जल का महत्व इतना ज्यादा है यदि कोई पक्षी भी नदी के जल में पांव भिगोकर और निश्चित जगह छिड़क दे तो भी पूर्वजों की आत्मा को मुक्ति मिल जाती है। 17 दिनों का पितृपक्ष मेला, पितरों या परिवार के किसी भी दिवंगत सदस्य के लिए तर्पण करने के लिए सबसे शुभ दिन माना जाता है।


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भानु सप्तमी कथा

भानु सप्तमी एक महत्वपूर्ण हिंदू पर्व है, जो सूर्य देव की पूजा के लिए समर्पित है। इस दिन सूर्य देव की आराधना करने से व्यक्ति को अपने जीवन में सुख-समृद्धि और सफलता प्राप्त होती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, भानु सप्तमी का व्रत करने से न केवल भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है, बल्कि यह आत्मिक शांति और मोक्ष का मार्ग भी प्रशस्त करता है।

सीता नवमी 2025 कब है

सीता नवमी एक महत्वपूर्ण हिंदू पर्व है, जो माता सीता के जन्म की वर्षगांठ के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि पर पड़ता है। इस दिन माता सीता की विशेष पूजा करने और व्रत रखने का खास महत्व होता है।

सीता नवमी 2025 के उपाय

सीता नवमी का दिन माता सीता के जन्म की खुशी में मनाया जाता है, जो वैशाख महीने की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को पड़ता है। इस दिन देवी सीता की पूजा करने से वैवाहिक जीवन में प्रेम और स्थायित्व आता है।

सीता नवमी की व्रत कथा

सीता नवमी वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण पर्व है, जो माता सीता के प्राकट्य के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। इस दिन सुहागिन महिलाएं व्रत रखती हैं।

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