सोना खरीदना एक महत्वपूर्ण निर्णय होता है। साथ ही इसके लिए शुभ मुहूर्त का चयन करना भी आवश्यक माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि शुभ मुहूर्त में सोना खरीदने से जीवन में समृद्धि और सौभाग्य आता है। शुभ मुहूर्त का चयन करने के लिए ग्रहों की स्थिति और तिथि का ध्यान रखना आवश्यक होता है। शुभ मुहूर्त में खरीदा गया सोना न केवल एक सफल निवेश सिद्ध होता है, बल्कि यह जीवन में सकारात्मक ऊर्जा भी लाता है। इससे आर्थिक स्थिति भी मजबूत होती है। इस लेख में हम आपको मई 2025 में सोना खरीदने के शुभ मुहूर्त के बारे में बताएंगे, साथ ही यह भी समझाएंगे कि शुभ मुहूर्त में सोना खरीदना क्यों महत्वपूर्ण है।
पंचांग के अनुसार, मई में सोना खरीदने के लिए 4 शुभ तिथियां हैं: 1,15,21 और 27 मई। इसके अलावा और शुभ तिथियां, शुभ मुहूर्त और नक्षत्र नीचे दिए गए हैं-
1. 7 मई 2025, बुधवार
सुबह 06:55 से दोपहर 11:45 बजे तक
2. 15 मई 2025, गुरुवार
सुबह 08:10 से दोपहर 01:25 बजे तक
शाम 03:15 से 06:10 बजे तक
3. 21 मई 2025, बुधवार
सुबह 07:30 से दोपहर 12:00 बजे तक
दोपहर 01:50 से शाम 05:40 बजे तक
4. 27 मई 2025, मंगलवार
सुबह 09:00 से दोपहर 02:20 बजे तक
शाम 04:00 से 06:30 बजे तक
सोना खरीदने के लिए कुछ विशेष दिन होते हैं जिन्हें अत्यंत शुभ माना जाता है। इन दिनों में किया गया निवेश सफल होता है और जीवन में समृद्धि और सौभाग्य लाता है।
कुछ विशेष तिथियां सोना खरीदने के लिए अत्यंत शुभ मानी जाती हैं। इन तिथियों पर सोना खरीदने से विशेष लाभ और समृद्धि प्राप्त होती है।
पुष्य नक्षत्र को सोना खरीदने के लिए सबसे शुभ नक्षत्र माना जाता है। यह नक्षत्र समृद्धि और वृद्धि का प्रतीक है। पुष्य नक्षत्र में खरीदा गया सोना विशेष लाभ और समृद्धि प्रदान करता है।
उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में आयोजित महाकुंभ 2025 में अखाड़े और साधु-संत आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। इनमें से सबसे अलग और अद्भुत दिखने वाले नागा साधु हैं। भस्म लगाए और अपने विशिष्ट स्वरूप में नागा साधु हर किसी का ध्यान खींचते हैं।
हिंदू धर्म की समृद्ध परंपरा में "सोलह संस्कार" का महत्वपूर्ण स्थान है, जो जीवन के हर महत्वपूर्ण पड़ाव को दिशा देते हैं। इन संस्कारों में से एक है अन्नप्राशन, जब बच्चा पहली बार ठोस आहार का स्वाद लेता है।
हिंदू धर्म में 16 संस्कारों का विशेष महत्व है और उनमें नौवां संस्कार है कर्णवेध। यह संस्कार बच्चे के कान छिदवाने का समय होता है जो सामान्यतः 1 से 5 वर्ष की उम्र में किया जाता है।
उपनयन संस्कार, जिसे जनेऊ संस्कार के नाम से भी जाना जाता है। हिंदू धर्म में 16 संस्कारों में से 10वां संस्कार है। यह संस्कार पुरुषों में जनेऊ धारण करने की पारंपरिक प्रथा को दर्शाता है, जो सदियों से चली आ रही है। उपनयन शब्द का अर्थ है "अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ना"।