गया में सूर्यास्त के बाद भी यहां होता है पिंडदान और श्राद्ध

अनोखी परंपरा: गया में सूर्यास्त के बाद भी यहां होता है पिंडदान और श्राद्ध, जानिए क्या है मान्यताएं


भारत की पवित्र नगरी गया दरअसल भगवान विष्णु की पावन भूमि के रूप में जानी जाती है। गया पूरे विश्व में पिंडदान और श्राद्ध के लिए प्रसिद्ध है। यहां आने वाले श्रद्धालु अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। खासकर, पितृपक्ष के दौरान यहां का महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है। क्योंकि, इस समय देश-विदेश से हजारों, लाखों की संख्या में श्रद्धालु अपने पितरों का श्राद्ध और पिंडदान करने यहां पहुंचते हैं। हालांकि, पिंडदान के लिए दिन का समय ही उपयुक्त माना गया है, लेकिन बिहार के गया जिले के ब्राह्मणी घाट में स्थित विरंचिनारायण सूर्य मंदिर एक ऐसा स्थान है जहां सूर्यास्त के बाद भी पिंडदान और श्राद्ध किया जाता है। यह मंदिर अपने आप में अनोखा है, क्योंकि पूरे भारत में यह एकमात्र मंदिर है जहां रात्रि में भी श्राद्ध करने की अनुमति दी गई है।


विरंचिनारायण सूर्य मंदिर की पौराणिक मान्यता 


बता दें कि विरंचिनारायण सूर्य मंदिर ब्राह्मणी घाट पर स्थित है और यह मंदिर सूर्य देवता को ही समर्पित है। मंदिर की एक अद्वितीय विशेषता यह है कि यहां भगवान सूर्य 24 घंटे उपस्थित माने जाते हैं, और इसी कारण यहां सूर्यास्त के बाद भी श्राद्ध करने का विधान है। शास्त्रों के अनुसार, सामान्यतः सूर्यास्त के बाद पिंडदान या श्राद्ध कार्य नहीं किए जाते, लेकिन इस मंदिर में भगवान सूर्य की निरंतर उपस्थिति के कारण यह संभव हो पाता है। ऐसा माना जाता है कि इस स्थान पर भगवान सूर्य अपने परिवार के साथ विराजमान हैं, जिसमें उनकी पत्नी संज्ञा, ज्येष्ठ पुत्र शनि, कनिष्ठ पुत्र यम, सारथी अरुण और उनके सात घोड़ों वाले रथ का भी चित्रण है।


मंदिर की वास्तुकला और धार्मिक महत्ता 


विरंचिनारायण सूर्य मंदिर की मूर्ति और स्थापत्य कला इसे अन्य मंदिरों से विशेष बनाती है। मंदिर में सूर्य देव का विग्रह बहुत ही विस्तृत और कलात्मक ढंग से निर्मित है। मुख्य विग्रह में सूर्य देव रथ पर सवार हैं, जिसमें सात घोड़े और एक चक्का है। भगवान सूर्य के पैर के बीच उनकी पत्नी संज्ञा विराजमान हैं, जबकि दाहिनी ओर उनके पुत्र शनि और बाईं ओर यम की मूर्तियाँ हैं। उनके रथ के नीचे सारथी अरुण रथ को संचालन मुद्रा में दिखाए गए हैं। इसके अलावा, मंदिर में चारण, सशस्त्र सेवक और सेविकाएँ, चंवर डुलाते प्रहरीगण, और देवी उषा एवं प्रत्युषा की भी मूर्तियाँ हैं। उषा और प्रत्युषा को सूर्य पुराण में अन्धकार को दूर करने वाली देवियों के रूप में मान्यता प्राप्त है।


श्राद्ध और पिंडदान की परंपरा 


गया में पिंडदान करने की परंपरा वैदिक काल से चली आ रही है। यहां पर पिंडदान के 54 पिंडवेदी हैं, जहां पितरों की आत्मा की शांति के लिए विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं। पितृपक्ष के दौरान, गया में श्राद्ध और पिंडदान करने का महत्व और बढ़ जाता है। हालांकि, पिंडदान के लिए दिन का समय अधिक उपयुक्त माना गया है, लेकिन यदि कोई श्रद्धालु सूर्यास्त के बाद पहुंचता है, तो ब्राह्मणी घाट के इस विशेष सूर्य मंदिर में रात्रि में भी श्राद्ध कर सकता है। यह मंदिर खासकर मिथिलांचल के लोगों के लिए प्रमुख स्थान है, जहां वे अपने पितरों के लिए श्राद्ध और पिंडदान करते हैं। 


ब्राह्मणी घाट के प्रधान पुजारी अजय पांडेय कहते हैं कि “शास्त्रों के अनुसार सूर्यास्त के बाद श्राद्ध करना उचित नहीं माना जाता, लेकिन ब्राह्मणी घाट स्थित विरंचिनारायण सूर्य मंदिर पूरे भारत का एकमात्र ऐसा स्थान है जहां भगवान सूर्य की 24 घंटे उपस्थिति मानी जाती है। इस वजह से यहां किसी भी समय श्राद्ध और पिंडदान किया जा सकता है।”


मिथिलांचल के लोगों की श्रद्धा


गया का यह सूर्य मंदिर खासतौर पर मिथिलांचल के लोगों के लिए एक प्रमुख धार्मिक केंद्र है। पितृपक्ष हो या अन्य कोई समय, यहां मिथिलांचल के लोग अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान और श्राद्ध करते हैं। ब्राह्मणी घाट पर स्थित यह मंदिर न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि इसकी स्थापत्य कला और पौराणिक महत्व भी इसे एक अनोखा स्थान बनाते हैं। इसी कारण गया का ये अनूठा विरंचिनारायण सूर्य मंदिर न केवल धार्मिक महत्व रखता है, बल्कि यह भारत की अनूठी परंपराओं का एक जीवंत उदाहरण भी पेश करता है। जहां एक ओर शास्त्रों के अनुसार श्राद्ध दिन में करना आवश्यक माना जाता है, वहीं इस मंदिर में सूर्यास्त के बाद भी पिंडदान करने की परंपरा ने इसे एक विशेष स्थान दिया है। भगवान सूर्य की 24 घंटे उपस्थिति की मान्यता और इस मंदिर का पौराणिक महत्व इसे भारत के धार्मिक स्थलों में एक अलग पहचान दिलाता है।


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