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गया में ही क्यों किया जाता है पिंडदान

गया में ही क्यों किया जाता है पिंडदान

सिर्फ गया में ही क्यों किया जाता है पिंडदान, जानिए दैत्य गयासुर की पूरी कहानी


शास्त्रों में वर्णित है कि हम अपने पितरों को जो देते हैं उससे कई गुना ज्यादा वो हमें प्रदान कर देते हैं। उनका आशीर्वाद सदा हमें हमारे जीवन में आगे की ओर बढ़ने को मार्ग प्रशस्त करता है। हम रंग, रूप, धन, वैभव हर चीज से समृद्ध हो जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि हम जो भी तर्पण करते हैं वो उन्हें मिलता है और श्री हरि के कृपा से वो अपने कष्टों से मुक्त होते हैं। हालांकि, जब भी पितरों की बात चलती है तो गया का नाम ही सबसे पहले आता है। बिहार में स्थित गया जिला विष्णुपद मंदिर और पिण्ड दान के लिए काफी प्रसिद्ध है। गरुड़ पुराण में भी गया तीर्थ के बारे में विस्तार से वर्णन किया गया है। 


क्या है दैत्य गयासुर की कहनी? 


हिंदू पौराणिक कथाओं में गयासुर नामक एक दुर्जेय दैत्य की चर्चा है। दरअसल, गयासुर अपनी महान शक्ति के लिए जाना जाता था, अपने राक्षसी स्वभाव के बावजूद, गयासुर हिंदू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक भगवान विष्णु का एक समर्पित अनुयायी था। गयासुर की तपस्या इतनी तीव्र और कठोर थी कि उसने स्वर्ग और पृथ्वी को हिलाकर रख दिया था। उसकी अटूट भक्ति और समर्पण से प्रभावित होकर भगवान विष्णु ने गयासुर के संकल्प की परीक्षा लेने का फैसला किया। उन्होंने एक ब्राह्मण ऋषि का भेष धारण किया और गयासुर के सामने प्रकट हुए, जो ध्यान में लीन था। ब्राह्मण ऋषि एक विनम्र भक्त के वेश में गयासुर के पास पहुंचे और उससे पूछा कि वह अपनी तपस्या के माध्यम से आखिर क्या चाहता है। गयासुर ने बड़ी विनम्रता और ईमानदारी के साथ वरदान की इच्छा व्यक्त की जिससे वह अजेय बन जाए। वह किसी भी दुश्मन को हराने और पूरी दुनिया पर अपना आधिपत्य स्थापित करने की शक्ति चाहता था। 


मोक्ष प्रदान करने का मिला वरदान


भगवान विष्णु ने गयासुर की अच्छाई और भक्ति को समझते हुए उसे एक अनोखा और अपरंपरागत वरदान देने का फैसला किया। उन्होंने कहा, "हे गयासुर, मैं तुम्हारी अनन्य भक्ति और तपस्या से बहुत प्रसन्न हूँ। इसलिए मैं तुम्हें वरदान तो दूँगा, लेकिन यह तुम्हारी अपेक्षा से अलग होगा। तुम्हें अजेय बनाने के बजाय, मैं तुम्हें एक विशेष शक्ति का आशीर्वाद दूँगा जिससे तुम अपने पूर्वजों सहित असंख्य प्राणियों को मोक्ष प्रदान कर सकोगे।"


इसलिए गया में होता है पिंड दान 


हिन्दू धर्म में कहा जाता है कि अगर पितृ तृप्त होंगे तो आप अपने जीवन में हमेशा सफलता प्राप्त करेंगे। गया में पिण्ड दान करने से एक सौ आठ कुल और सात पीढ़ियों का उद्धार होता है। गया में किए जाने वाले पिण्ड दान का गुणगान श्री राम ने भी किया है। ऐसा कहा जाता है कि इसी जगह पर भगवान श्री राम और माता सीता ने राजा दशरथ का पिण्ड दान किया था।


यहां पितरों को प्राप्त होता है स्वर्ग


गरुड़ पुराण के अनुसार कहा जाता है कि यदि पितरों का पिंड दान यहां पर किया जाए तो उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होती है। स्वयं भगवान विष्णु यहां पितृ देव के रूप में मौजूद हैं इसलिए गया को पितृ तीर्थ के रूप में भी जाना जाता है। पंडित राजनाथ झा बताते हैं कि जब मनुष्य को जीवन मिलता है तो उनपर कई प्रकार के ऋण होते हैं। इनमे देव ऋण, गुरु ऋण और पितृ ऋण प्रमुख होते हैं। माता-पिता की सेवा करके मरणोपरांत पितृपक्ष में पूर्ण श्रद्धा से श्राद्ध करने पर पितृऋण से मुक्ति मिलती है। ऐसे तो देश के पुष्कर, गंगासागर, कुरुक्षेत्र, हरिद्वार, चित्रकूट सहित कई स्थानों में भगवान पितरों को श्रद्धापूर्वक किए गए श्राद्ध से मोक्ष प्रदान कर देते हैं। हालांकि, इन सभी स्थानों में गया जी का महत्व सबसे अधिक है। 


कई पुराणों में मिलता है उल्लेख


गरुड़ पुराण में कहा गया है कि पृथ्वी के सभी तीर्थों में गया सर्वोत्तम है, तो वायु पुराण में वर्णित है कि गया में ऐसा कोई स्थान नहीं, जो तीर्थ न हो। मत्स्य पुराण में गया को पितृतीर्थ कहा गया है। गया में जहां-जहां पितरों की स्मृति में पिंड अर्पित किया जाता है, उसे पिंडवेदी कहा जाता है। कहते हैं कि पहले गया श्राद्ध में कुल पिंड वेदियों की संख्या 365 थी, पर वर्तमान में इनकी संख्या 50 के आसपास ही रह गई है। इनमें श्री विष्णुपद, फल्गु नदी और अक्षयवट का विशेष मान है। गया तीर्थ का कुल परिमाप पांच कोस (करीब 16 किलोमीटर) है और इसी सीमा में गया की पिंड वेदियां भी विराजमान हैं। गया में श्राद्ध करने से सभी महापातक नष्ट हो जाते हैं। गया में श्राद्ध 101 कुल और सात पीढ़ियों को तृप्त कर देता है। वहीं, कई पुराणों में चर्चा है कि गया आने मात्र से ही व्यक्ति पितृऋण से मुक्त हो जाता है। गरुड़ पुराण की पंक्ति है कि पितृपक्ष के दिनों में समस्त ज्ञात-अज्ञात पितर अपने-अपने परिजनों, खासकर पुत्र आदि से अन्न-जल की आशा में गया में फल्गु के तट पर आ विराजते हैं और अपने लोगों को परम आशीर्वाद देते हैं। गया में देवताओं ने भी पिंडदान किया है। 


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