अपरा एकादशी का व्रत जेष्ठ माह के कृष्ण पक्ष में मनाया जाता है, जो विशेष रूप से भगवान विष्णु की पूजा का दिन होता है। एकादशी का दिन भगवान विष्णु के समर्पण और कृपा प्राप्त करने के सर्वोत्तम दिन के रूप में जाना जाता है। इस दिन व्रत रखने से न केवल व्यक्ति के जीवन में सुख-समृद्धि आती है, बल्कि उसे पापों से मुक्ति भी मिलती है। अपरा एकादशी का व्रत उन लोगों के लिए विशेष रूप से फायदेमंद होता है, जो भगवान विष्णु से अपने जीवन में सुख और समृद्धि की कामना करते हैं। ऐसा कहा जाता है कि एकादशी का व्रत रखने से व्यक्ति के जीवन में आई हुई बाधाएं समाप्त होती हैं और जीवन में शांति और संतुलन स्थापित होता है। ऐसे में आइए जानते हैं कि आखिर अपरा एकादशी का व्रत क्यों किया जाता है।
वैदिक पंचांग के अनुसार, अपरा एकादशी का व्रत जेष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है। इस साल अपरा एकादशी का व्रत 23 मई को रखा जाएगा। इस दिन एकादशी तिथि का आरंभ 23 मई को रात 1 बजकर 12 मिनट पर होगा और इस तिथि का समापन उसी दिन रात 10 बजकर 29 मिनट पर होगा। ऐसे में उदया तिथि के अनुसार, अपरा एकादशी का व्रत 23 मई को रखा जाएगा।
पौराणिक कथा के अनुसार, राजा महीध्वज का छोटे भाई वज्रध्वज एक अत्यंत क्रूर और अधर्मी व्यक्ति था। उसने अपने भाई की हत्या कर दी और उसकी लाश को पीपल के नीचे गाड़ दिया। इसके कारण राजा महीध्वज प्रेत योनि में चला गया। एक दिन महर्षि धौम्य उस रास्ते से गुजर रहे थे और उन्होंने राजा की प्रेतात्मा को देखा। महर्षि धौम्य ने राजा को उसकी मुक्ति का उपाय बताया और अपरा एकादशी व्रत का पालन करने की सलाह दी। महर्षि ने भगवान विष्णु से राजा की प्रेत योनि से मुक्ति की प्रार्थना की, और इसके बाद राजा को प्रेत योनि से मुक्ति मिल गई। वह स्वर्ग लोक को प्राप्त हुआ और उसे भगवान विष्णु की कृपा से मोक्ष प्राप्त हुआ।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, अपरा एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से जीवन के सभी कष्टों का निवारण होता है और व्यक्ति को पुण्य की प्राप्ति होती है। यह व्रत पापों से मुक्ति, मोक्ष की प्राप्ति और जीवन में सुख-समृद्धि बढ़ाने के लिए किया जाता है। व्रति इस दिन अपने बुरे कर्मों का प्रायश्चित करते हैं और अपने जीवन को एक नई दिशा देने के लिए भगवान विष्णु से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
शीश नवा अरिहंत को, सिद्धन को, करुं प्रणाम |
उपाध्याय आचार्य का ले सुखकारी नाम ||
श्री गुरु गणनायक सिमर, शारदा का आधार।
कहूँ सुयश श्रीनाथ का, निज मति के अनुसार।
बन्दौ चरण सरोज निज जनक लली सुख धाम,
राम प्रिय किरपा करें सुमिरौं आठों धाम ॥
श्री गणपति पद नाय सिर , धरि हिय शारदा ध्यान ।
सन्तोषी मां की करूँ , कीरति सकल बखान ।