जमुना के तट पर,
मारी नजरिया ऐसी सांवरिया ने,
घायल हो गई पल में,
गजरा गिर गया जमुना जल में,
की गजरा गिर गया जमुना जल में ॥
लेने गगरिया गई थी बजरिया,
बजरिया में मिल गया वो,
बांके सांवरिया,
गगरी मेरी छीन के उसने,
बईया मरोड़ी,
बईया यूँ मरोड़ के पूछे,
क्या मर्जी है तेरी,
फिर ऐसे मैं शरमाई,
निकला वो तो हरजाई,
चली गई एक पल में,
की गजरा गिर गया जमुना जल में ॥
प्रीत में उसके ऐसे खोयी,
ना में जागी ना में सोई,
मेरा आँचल पायल काजल,
तीनो कर गया घायल,
थर थर कांपे मेरी काया,
डोल रहा मन पागल,
फिर काटे कटे ना वो रैना,
बेरी छीन के ले गयो चैना,
चली गई एक पल में,
की गजरा गिर गया जमुना जल में ॥
जमुना के तट पर,
मारी नजरिया ऐसी सांवरिया ने,
घायल हो गई पल में,
गजरा गिर गया जमुना जल में,
की गजरा गिर गया जमुना जल में ॥
फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि के दिन नरसिंह द्वादशी का पर्व मनाया जाता है। इस दिन विष्णु जी के अवतार भगवान नरसिंह भगवान की पूजा करने की परंपरा है।
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होलाष्टक फागुन मास के शुक्ल पक्ष अष्टमी तिथि से लेकर पूर्णिमा तक मनाया जाता है। पुराणिक कथाओं के अनुसार ये 8 दिन किसी शुभ कार्य के लिए उचित नहीं माने जाते I
होलाष्टक की तिथि शुभ कार्य के लिए उचित नहीं मानी जाती है, इन तिथियों के अनुसार इस समय कुछ कार्य करने से सख्त मनाही होती है। क्योंकि इन्हीं दिनों में भक्त प्रह्लाद पर उनके पिता हिरण्यकश्यप ने बहुत अत्याचार किया था।