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माता की अष्ट सिद्धियां

यह होती हैं नौ दुर्गा मां की अष्ट सिद्धियां, भगवान शिव ने भी मैय्या से प्राप्त की थीं दिव्य शक्तियां 


हम जब भी मैय्या रानी की आराधना करते हैं एक वाक्य जरूर बोलते और सुनते हैं अष्ट सिद्धियां, मैय्या के विषय में जब भी बात होती हैं तो मां की अष्ट सिद्धियों के संदर्भ में चर्चा जरूर होती है। पौराणिक कथाओं में वर्णित है कि स्वयं भोलेनाथ शिव ने भी मां से ही ये सिद्धियां प्राप्त की थी। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिर यह अष्ट सिद्धियां क्या हैं और क्या है इनका प्रभाव? भक्त वत्सल के नवरात्रि विशेषांक श्रृंखला के इस लेख में हम आपको माता की इन्हीं अष्ट सिद्धियों के बारे में बताने का प्रयास कर रहे हैं।


अणिमा महिमा चैव लघिमा गरिमा तथा।
प्राप्तिः प्राकाम्यमीशित्वं वशित्वं चाष्ट सिद्धयः ।।


संस्कृत के इस श्लोक में मैय्या की सभी अष्ट सिद्धियों के नाम निहित हैं। इसका अर्थ है कि अणिमा, महिमा, लघिमा, गरिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, इशित्व और वशित्व  ये अष्टसिद्धि कही गई हैं। इसके अलावा सिद्धि का आशय उन आत्मिक शक्तियों से है जो तप और साधना के द्वारा प्राप्त की जा सकती हैं। यह आठ सिद्धियां उन्हीं में से हैं। 


अब जानिए हर एक सिद्धी के बारे में


अणिमा - यह शरीर को एक अणु के समान छोटा कर लेने की क्षमता प्रदान करती है। यह अष्ट सिद्धियों में सबसे पहली है। अणिमा सिद्धि साधक को अणु समान सूक्ष्मता प्रदान करती हैं। जिससे आपको कोई भी देख नहीं सकता। 


महिमा - यह अणिमा के विपरित शरीर का आकार अत्यन्त बड़ा करने के लिए सिद्ध की जाती है। महिमा सिद्धि से साधक जब चाहे अपने शरीर को असीमित विशालता दे सकता है।


गरिमा - शरीर को भारी बनाने के लिए है। इससे साधक का आकार तो सीमित रहता है, परन्तु उसके शरीर का भार जितना चाहे उतना बढ़ जाता है।


लघिमा - शरीर को हल्का करने की क्षमता लघिमा देती है। यह सिद्धि पवन वेग से उड़ने में सक्षम बनाती है।


प्राप्ति - किसी भी स्थान पर बेरोकटोक जाने की क्षमता इसी सिद्धी से मिलती है। यह मन चाहे समय पर अदृश्य और सदृश्य होकर गंतव्य तक जाने की शक्ति प्रदान करती है।


प्राकाम्य - यह मन में जो भी हो उस इच्छा को पूर्ण करने की क्षमता देने वाली सिद्धी है। यह किसी के बिना बोले ही उसके मन की बात जानने की शक्ति प्रदान भी करती है।


ईशित्व - यह प्रत्येक वस्तु और प्राणी पर पूर्ण अधिकार की क्षमता देती है। यह मनुष्य को ईश्वरत्व देती है। इसे प्राप्त करने वाला स्वयं ईश्वर हो जाता है। 


वशित्व - यह किसी भी प्राणी को वश में करने का सामर्थ्य देने वाली है। इसका साधक किसी को भी अपना दास बना सकता है।


माता के पास ये सभी शक्तियां थीं जिन्हें उन्होंने जगत कल्याण के लिए कठिन तपस्या से अर्जित किया था।


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