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सनातन धर्म में धन की देवी मां महालक्ष्मी सभी सुखों को प्रदान करने वाली मानी जाती हैं। आज के इस आधुनिक दौर में भी हिन्दू धर्म मे माता महालक्ष्मी की पूजा अत्यंत श्रद्धा के साथ की जाती है। श्री महालक्ष्मी को प्रसन्न करने हेतु विभिन्न पूजा अनुष्ठान करने का विधान है लेकिन इन सब में माता को सर्वाधिक प्रिय माना जाने वाला श्री यंत्र है। जो आपको मां की विशेष प्रकार की कृपा प्राप्त करने का सौभाग्य भी प्रदान करवाता है। तों bhaktvatsal.com के इस नए लेख में हम आपको बताएंगे श्री यंत्र का महत्व, उसकी पूजा विधि और आखिर किसने की इस दिव्य श्री यंत्र की रचना।
श्री यंत्र की पूजा अगर आप सही ढंग से कर लें तो ये आपकी सभी दरिद्रता को दूर कर सकता है। इससे आपका भाग्य बदल सकता है। क्योंकि स्वयं "श्री" शब्द का अर्थ होता है लक्ष्मी अर्थात श्री यंत्र स्वयं लक्ष्मी जी का ही प्रतीक है। “श्री यंत्र” का पूजन करने वाले व्यक्ति पर मां लक्ष्मी की विशेष कृपा सदैव बनी रहती है।
एक समय जब माता महालक्ष्मी पृथ्वी के मनुष्यों से रुष्ठ होकर पृथ्वी से चली गईं तो मां लक्ष्मी के जाने से पूरी पृथ्वी का संतुलन बिगड़ने लगा व यहां धन- धान्य की भारी कमी होने लगी। तब सभी देव भगवान विष्णु के पास आग्रह करते हुए पहुंचे कि वो मां लक्ष्मी को मनाएं और पुनः उन्हें धरती पर आने के लिए राजी करें। परन्तु मां लक्ष्मी उनकी बात से तनिक भी प्रभावित नहीं हुईं। तब देव गुरु श्री बृहस्पति ने लक्ष्मी जी को प्रसन्न करने का एक मात्र उपाय श्री यंत्र को बताया और कहा कि सिर्फ श्री यंत्र से ही मां लक्ष्मी को प्रसन्न किया जा सकता है।
तब सभी देवगण ने मां महालक्ष्मी की आराधना की और मां लक्ष्मी प्रसन्न हुई और कहा कि श्री यंत्र में स्वयं वो जीवंत स्वरूप में वास करती हैं। तभी ब्रह्मदेव ने कहा कि आने वाले युग में जो भी मनुष्य पूर्ण श्रद्धा भाव के साथ दिव्य “श्री यंत्र” की पूजा करेगा, उसे सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होगी। कथाओं में वर्णित है कि आदि गुरु श्री शंकराचार्य जी ने श्री यंत्र को लोगों के समक्ष पुनः प्रकाशित किया।
उर्ध्वमुखी श्री यंत्र वह है जो किसी पिरामिड की आकृति के समान ऊपर की ओर रहता। जबकि, अधोमुखी श्री यंत्र वह है जो किसी कागज़ या धातु पृष्ठ पर अंकित किया होता है।
मान्यताओं के अनुसार प्रत्येक श्री यंत्र मां लक्ष्मी का ही स्वरूप है व इसमें सभी देवी देवता वास करते हैं। श्री आदि गुरु शंकराचार्य जी ने उर्ध्वमुखी श्री यंत्र को ही अधिक मान्यता दी है। इसलिए, आप चाहें तो ऊर्ध्वमुखी श्री यंत्र को अपने पूजन स्थल पर पूर्ण विधि विधान से स्थापित करें व इसकी नियमित रूप से पूजा अर्चना करें। श्री यंत्र सिर्फ धन से संबंधित नहीं है अपितु ये यंत्र सभी प्रकार के सुख समृद्धि व ऐश्वर्य को देने वाला है।
श्री यंत्र के अधोमुखी रूप को आप अपने कार्य करने के स्थान पर अथवा पढ़ाई- लिखाई करने की जगह पर स्थापित कर सकते हैं। श्री यंत्र को आप जहां भी स्थापित करें वहां पर पवित्रता का विशेष ध्यान रखें।
किसी दुकान, ज्योतिषी अथवा पंडित से यह यंत्र लें। श्री यंत्र लेते समय जांच लें कि वह सही प्रकार से बना हुआ है। श्री यंत्र के पूजन के पूर्व स्नान व अपनी सभी क्रियाओं से मुक्त होकर साफ- सुथरे कपड़े पहन कर घर के मंदिर में गुलाबी रंग के आसन पर श्री यंत्र को विराजमान करें। इसके बाद गंगाजल, दूध आदि से श्री यंत्र को स्नान कराएं और चन्दन, धूप, फूल आदि पूजन सामग्रियों से श्री यंत्र का पूजन संपन्न करें। पूजन होने के पश्चात आप चंदन अथवा रुद्राक्ष की माला से मां महालक्ष्मी के किसी एक मंत्र का पूर्ण श्रद्धा से पाठ कर सकते हैं।
दीपावली मां लक्ष्मी का सबसे प्रिय त्योहार है। ऐसा माना जाता है कि दीपावली के दिन मां महालक्ष्मी स्वयं पृथ्वी पर हो रहे दीपमाला, आरती, पूजन आदि को देखने पहुंचती हैं और दीपावली पर मां अपने सच्चे भक्तों पर कृपा करती हैं। दीपावली पर श्री यंत्र पूजन का एक विशेष महत्व है। इसलिए, जो भक्त पूर्ण विधि विधान से पूजन करते हैं और इसके बाद जो भी मनोकामना श्री यंत्र से करते है वह मां महालक्ष्मी अवश्य पूर्ण करती हैं।
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