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गोवर्धन पूजा की कथा

गोवर्धन पूजा की कथा

Govardhan Puja Katha: गोवर्धन पूजा के दिन जरूर करें इस कथा का पाठ, जानें गोबर से गोवर्धन बनाने का महत्व


गोवर्धन पूजा एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है, जो भगवान कृष्ण की महिमा और उनके भक्तों के प्रति उनके प्रेम का उत्सव मनाता है। इस त्योहार के दौरान, एक पारंपरिक प्रथा है जिसमें गोबर से गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाई जाती है। यह प्रथा न केवल भगवान कृष्ण की महिमा को दर्शाती है, बल्कि गाय के गोबर के महत्व को भी प्रकट करती है। गोवर्धन पूजा की कथा में भगवान कृष्ण की महिमा और उनके भक्तों के प्रति उनके प्रेम की कहानी बताई गई है। यह कथा हमें सिखाती है कि भगवान कृष्ण ने अपने भक्तों की रक्षा के लिए गोवर्धन पर्वत को उठाया था, जो उनकी शक्ति और भक्तों के प्रति उनके प्रेम का प्रतीक है। इस लेख में हम गोवर्धन पूजा की कथा और गोबर से गोवर्धन बनाने के महत्व के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे। साथ ही यह भी जानेंगे कि गोवर्धन पूजा के दिन इस कथा का पाठ क्यों महत्वपूर्ण है।



गोवर्धन पूजा 2025 की तिथि


पंचांग के अनुसार, गोवर्धन पूजा का त्योहार कार्तिक माह की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है। साल 2025 में कार्तिक माह की प्रतिपदा तिथि 21 अक्टूबर 2025 को शाम 5 बजकर 54 मिनट से शुरू होगी और 22 अक्टूबर 2025 को रात्रि 8 बजकर 16 मिनट तक रहेगी। इसलिए, उदयातिथि के अनुसार, गोवर्धन पूजा का पर्व 22 अक्टूबर 2025 को मनाया जाएगा।



गोवर्धन पूजा के शुभ मुहूर्त


गोवर्धन पूजा शुभ मुहूर्त के अनुसार की जानी चाहिए:


  • प्रात:काल मुहूर्त: प्रात: 6 बजकर 26 मिनट से प्रात: 8 बजकर 42 मिनट तक
  • सायंकाल मुहूर्त: दोपहर 3 बजकर 29 मिनट से शाम 5 बजकर 44 मिनट तक



गोवर्धन पूजा कथा


गोवर्धन पूजा की पौराणिक कथा के अनुसार, द्वापर युग में एक बार देवराज इंद्र को अपने ऊपर अभिमान हो गया था। इंद्र का अभिमान चूर करने के लिए भगवान श्री कृष्ण ने एक अद्भुत लीला रची। श्री कृष्ण ने देखा कि एक दिन सभी बृजवासी उत्तम पकवान बना रहे थे और किसी पूजा की तैयारी में व्यस्त थे। तब कान्हा ने मां यशोदा से पूछा, "मईया, ये आप लोग किसकी पूजा की तैयारी कर रहे हैं?" मां यशोदा ने कहा, "लल्ला, हम देवराज इन्द्र की पूजा करने जा रहे हैं। इंद्रदेव की सभी ग्राम वासी पूजा करते हैं, जिससे गांव में ठीक से वर्षा होती रहे और कभी भी फसल खराब न हो, साथ ही अन्न-धन बना रहे।" यशोदा मइया ने कृष्ण जी को यह भी बताया कि इंद्र देव की कृपा से ही अन्न की पैदावार होती है और उनसे गायों को चारा मिलता है। उस समय लोग इंद्र देव को प्रसन्न करने के लिए अन्नकूट (अन्नकूट का महत्व) चढ़ाते थे। इस बात पर श्री कृष्ण ने कहा कि फिर इंद्र देव की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा होनी चाहिए, क्योंकि गायों को चारा वहीं से मिलता है। इंद्रदेव का तो दर्शन भी नहीं होता और वह तो पूजा न करने पर क्रोधित होते हैं।

कृष्ण की बात सुनकर बृज के लोग इंद्र देव की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा करने लगे। इंद्र ने इसे अपना अपमान समझा और कुपित होकर मूसलधार वर्षा शुरू कर दी। इस बारिश ने सभी बृजवासियों को भयभीत कर दिया और उन्होंने भगवान कृष्ण को दोषी ठहराना शुरू कर दिया और बचाने के लिए उन्हें ही कुछ करने के लिए कहने लगे। इस पर भगवान कृष्ण ने सभी ब्रजवासियों को गोवर्धन पर्वत के पास इकट्ठा होने के लिए कहा, अपनी मुरली को कमर में बांधकर अपनी कनिष्ठा अंगुली पर गोवर्धन पर्वत को उठा लिया और सभी ब्रजवासियों को अपने गाय और बछड़ों के साथ गोवर्धन पर्वत के नीचे शरण लेने के लिए बुलाया। इस पर इंद्र का क्रोध और बढ़ गया और उन्होंने बारिश की तीव्रता को और भी बढ़ा दिया। इस स्थिति को नियंत्रित करने के लिए, भगवान कृष्ण ने सुदर्शन चक्र को आदेश दिया कि वह पर्वत के ऊपर रहकर वर्षा की गति को नियंत्रित करें। उन्होंने शेषनाग से भी कहा कि वह मेड़ बनाकर पानी को पर्वत की ओर आने से रोकें। इस प्रकार, भगवान कृष्ण ने अपने भक्तों की रक्षा की।

इंद्र लगातार सात दिन तक वर्षा करते रहे। इंद्र ने यह सब देखकर महसूस किया कि कृष्ण कोई साधारण व्यक्ति नहीं हैं। वह ब्रह्मा जी के पास पहुंचे और अपनी समस्या बताई। ब्रह्मा जी ने इंद्र को समझाया कि भगवान कृष्ण स्वयं भगवान विष्णु के अवतार हैं और उन्हें पहचानने में उनकी गलती हुई है। इस पर इंद्र का घमंड टूट गया और उन्होंने भगवान कृष्ण से क्षमा याचना की और उनकी पूजा करने का निर्णय लिया। साथ ही अन्नकूट का 56 तरह का भोग लगाया। तभी से गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाने लगी और श्री कृष्ण को प्रसाद में 56 भोग चढ़ाया जाने लगा। ऐसा माना जाता है कि इस दिन जो भी गोवर्धन की इस कथा का पाठ करता है और श्रद्धापूर्वक गाय के गोबर से बने पर्वत की पूजा करता है, उसकी सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।



गोवर्धन पूजा की पारंपरिक प्रथा


गोवर्धन पूजा एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है, जो भगवान कृष्ण की महिमा और उनके भक्तों के प्रति उनके प्रेम का उत्सव मनाता है। इस त्योहार के दौरान, एक पारंपरिक प्रथा है जिसमें गोबर से गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाई जाती है।


1. गोवर्धन पर्वत का निर्माण


इस प्रथा के अनुसार, गोबर से गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाई जाती है, जिसके चारों कोनों में करवा की सींकें लगाईं जाती हैं। इसके भीतर कई अन्य आकृतियां भी बनाई जाती हैं, जो भगवान कृष्ण की महिमा को दर्शाती हैं।


2. गोवर्धन पर्वत की पूजा


गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाती है, जिसमें भगवान कृष्ण को प्रसन्न करने के लिए विभिन्न प्रकार के प्रसाद और फूल चढ़ाए जाते हैं।


3. गोबर का महत्व


हिंदू धर्म में गाय को एक पवित्र पशु माना जाता है, और इसका गोबर भी पवित्र माना जाता है। गोबर को पवित्र मानने के पीछे एक कारण यह है कि यह गाय के पाचन तंत्र से निकलता है, जो एक प्राकृतिक और शुद्ध प्रक्रिया है। गोबर में कई औषधीय गुण होते हैं जो इसे एक महत्वपूर्ण संसाधन बनाते हैं। गोबर में एंटीबायोटिक और एंटीफंगल गुण होते हैं जो इसे एक प्राकृतिक उपचार बनाते हैं। गोबर का धार्मिक महत्व भी बहुत अधिक है। गोबर से बने गोवर्धन पर्वत की पूजा करने से भगवान कृष्ण की कृपा प्राप्त होती है।


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