कल्पवास हिंदू धर्म की एक विशेष धार्मिक परंपरा है, जो माघ महीने में प्रयागराज के संगम तट पर की जाती है। यह व्रत व्यक्ति को भगवान के और करीब लाने में मदद करता है। इस बार माघ माह 21 जनवरी से शुरु हो रहा है। इस दौरान महाकुंभ भी पड़ रहा है। ऐसे में बड़ी संख्या में श्रद्धालु कल्पवास की प्रक्रिया का पालन करने के लिए संगम तट पर पहुंचने वाले हैं। यह लोग एक महीने तक कठोर नियमों का पालन करेंगे और अपना जीवन भगवान की साधना में समर्पित कर देंगे। एक महीने की आध्यात्मिक यात्रा उनके लिए जीवन में आगे बढ़ने और आत्मिक शांति प्राप्त करने का अवसर प्रदान करेगी। चलिए आपको कल्पवास की प्रक्रिया, पूजा विधि और इसके नियमों के बारे में बताते हैं। लेकिन सबसे पहले जानिए कल्पवास क्या है।
कल्पवास एक कठिन तपस्या है, जिसे भगवान से जुडने का माध्यम माना जाता है। इस तप को करने से आध्यात्मिक शांति मिलती है।इसके लिए श्रद्धालुओं को माघ माह संगम तट पर बिताना होता है। औप अपनी सांसारिक मोह को त्याग कर भगवान की साधना में अपने आप को समर्पित करना पड़ता है। माना जाता है कि जो व्यक्ति कल्पवास करता है, उसे पापों से मुक्ति मिलती है और मोक्ष प्राप्त होता है।
धर्म ग्रंथों के मुताबिक कल्पवास के दौरान 21 नियमों का पालन करना होता है, जिसमें सत्य बोलना, अहिंसा का पालन करना, सात्विक भोजन करना जैसा नियम शामिल है। यह नियम अनुशासन का प्रतीक होते हैं।
कल्पवास के दौरान श्रद्धालु दिन में सिर्फ एक ही बार भोजन करते हैं। और दिन में गंगा नदी पर तीन बार स्नान करते हैं।
कल्पवास के दौरान ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए श्रद्धालु संकल्प लेते हैं और किसी तरह की हिंसा से बचते हैं।
कल्पवास के दौरान श्रद्धालु अपना ज्यादातर समय भगवान की साधना में लगाते हैं, और भजन कीतर्न में लगे रहते हैं।
कल्पवासी संगम तट पर अपना टेंट लगाने के साथ- साथ तुलसी का बिरवा लगाते हैं, जो उनके जीवन को शुद्ध और पवित्र बनाने का प्रतीक होता है। तुलसी हिंदू धर्म में बेहद पवित्र भी मानी जाती है। वहीं कल्पवास के पहले ही दिन श्रद्धालु जौ भी बोते हैं, जो समय के साथ उगते हैं। इनमें से उगे हुए जौ का कुछ हिस्सा श्रद्धालु पानी में बहा देते हैं, तो वहीं कई अपने साथ ले जाते हैं।
प्रत्येक माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर मासिक कृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाती है। इस दिन भगवान कृष्ण और काल भैरव की पूजा की जाती है। साथ ही उनके निमित्त अष्टमी का व्रत रखा जाता है।
माता जानकी का जन्म अष्टमी तिथि को हुआ था, जब राजा जनक ने एक दिन खेत जोतते समय एक कन्या को पाया। उन्होंने उसे अपनी पुत्री के रूप में स्वीकार किया और उसका पालन-पोषण किया।
हिंदू धर्म में जानकी जयंती का विशेष महत्व है, जिसे माता सीता के अवतरण का दिन माना जाता है। इस दिन व्रत, पूजा-पाठ और दान-पुण्य का विशेष महत्व है।
हिंदू धर्म में जानकी जयंती का बहुत महत्व है। इस पर्व को माता सीता के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। साल 2025 में जानकी जयंती आज यानी 21 फरवरी, शुक्रवार को मनाई जाएगी।