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जब जब मन मेरा घबराए(Jab Jab Man Mera Ghabraye)

जब जब मन मेरा घबराए(Jab Jab Man Mera Ghabraye)

जब मन मेरा घबराए,

कोई राह नज़र ना आये,

ये हाथ पकड़ कर मेरा,

मुझे मंज़िल तक ले जाये,

ये बाबा तो मेरा रखवाला है,

मुझे पल पल संभाला हैं ॥


कोई भी पास नहीं था,

तब ये ही साथ खड़ा था

मुझ दीन हीन कि खातिर,

दीनो का नाथ लड़ा था,

मेरे सिर पे हाथ फिराया,

मुझे अपने गले लगाया,

मैं हर दम साथ हूँ तेरे,

मुझको एहसास कराया,

ये बाबा तो मेरा रखवाला है,

मुझे पल पल संभाला हैं ॥


दर्दो को सहते सहते,

कितना मैं टूट गया था,

रो रो कर इन आँखों का,

हर आंसू सूख गया था,

मेरे श्याम ने मुझे निहारा,

दुःख मेट दिया है सारा,

अब इसके भरोसे छोड़ा,

मैंने ये जीवन सारा,

ये बाबा तो मेरा रखवाला है,

मुझे पल पल संभाला हैं ॥


मेरे मन के उपवन का,

मेरा श्याम बना है माली,

इनकी शीतल छाया में,

महकी हैं डाली डाली,

‘आनंद’ का फूल खिलाया,

जीवन मधुबन है बनाया,

अपनी किरपा का अमृत,

मुझ पर है खूब लुटाया,

ये बाबा तो मेरा रखवाला है,

मुझे पल पल संभाला हैं ॥


अंतिम अरदास यही है,

मेरे श्याम का ही हो जाऊं,

गोदी में श्याम प्रभु की,

मैं सर रख कर सो जाऊं,

मुझे देख श्याम मुस्काये,

मेरी रूह चैन तब पाए,

फिर ‘तरूण’ श्याम मस्ती में,

लेकर इकतारा गाये,

ये बाबा तो मेरा रखवाला है,

मुझे पल पल संभाला हैं ॥


जब मन मेरा घबराए,

कोई राह नज़र न आये,

ये हाथ पकड़ कर मेरा,

मुझे मंज़िल तक ले जाये,

ये बाबा तो मेरा रखवाला है,

मुझे पल पल संभाला हैं ॥

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कौन बन सकता है नागा साधु ?

जनवरी 2025 से कुंभ मेले की शुरुआत संगम नगरी प्रयागराज में होने जा रही है। इस दौरान वहां ऐसे शानदार नजारे देखने को मिलेंगे, जो आम लोग अपनी जिंदगी में बहुत कम ही देखते हैं। अब जब कुंभ की बात हो रही है, तो नागा साधुओं की बात जरूर होगी ही। यह मेले का मुख्य आकर्षण होते है, जो सिर्फ कुंभ मेले के दौरान ही दिखाई देते है।

नागा साधुओं का रहस्यमी इतिहास

हिंदुओं के सबसे बड़े सांस्कृतिक समागम महाकुंभ की शुरुआत में अब ज्यादा समय नहीं बचा है। पहला शाही 13 जनवरी को पौष पूर्णिमा पर होने वाला है। इसमें सबसे पहले नागा साधु स्नान करेंगे।

रहस्यमयी जिंदगी जीते हैं नागा साधु

नागा साधु को महाकुंभ का आकर्षण माना जाता है, जिन्हें देखने के लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं। इनका शाही स्नान में महत्व बहुत अधिक है। क्योंकि इन्हें आध्यात्मिक शक्ति के प्रतीक के रूप में देखा जाता है।

पूर्णिमा तिथि 2025 में कब-कब पड़ेगी?

पूर्णिमा के दिन चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से परिपूर्ण होते हैं। इस दिन माता लक्ष्मी और चंद्रमा की विशेष पूजा की जाती है। इस दिन को मन, शरीर और आत्मा के संतुलन बनाने के लिए उचित माना जाता है।

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