गोवर्धन पूजा के दिन भगवान कृष्ण, गोवर्धन पर्वत, गाय और गौवंश की पूजा का विशेष महत्व है। साथ ही इस दिन 56 या 108 तरह के पकवान बनाकर श्रीकृष्ण को उनका भोग लगाने और अन्नकूट महोत्सव का भी विधान है। इन पकवानों को ही अन्नकूट कहा जाता है।
इसके पीछे मान्यता है कि इंद्र से ब्रजवासियों की रक्षा करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी अंगुली पर उठाया था। इस तरह भगवान कृष्ण ने इंद्र का अहंकार तोड़ कर गोवर्धन पर्वत की पूजा शुरू की थी। इसके बाद ब्रजवासियों ने गोवर्धन पर्वत और श्रीकृष्ण के सम्मान में अन्नकूट का आयोजन किया था। तभी से यह परंपरा शुरू हुई।
अन्नकूट में तरह-तरह के पकवानों से भगवान की पूजा की जाती है। उन्हें स्वादिष्ट व्यंजनों का भोग लगाया जाता है। बाद में इसे प्रसाद स्वरूप सभी को वितरित किया जाता है। अन्नकूट का आशय है विभिन्न अन्नों का समूह। इस दौरान श्रद्धालु तरह-तरह की मिठाई, पकवान, हर प्रकार की सब्जी, कढ़ी-चावल, पूड़ी आदि बना कर भगवान को अर्पित करते हैं।
त्योहारों पर भगवान को 56 भोग लगाने की सनातनी परंपरा का निर्वहन अन्नकूट में भी किया जाता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि भगवान को 56 व्यंजनों का भोग ही क्यों लगाया जाता है या इनकी संख्या 56 ही क्यों है। इससे जुड़ी दो मान्यताएं हैं।
पहली यह कि इंद्र के प्रकोप से ब्रजवासियों को बचाने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने सात दिनों तक गोवर्धन पर्वत उठाया तो वे सात दिन-रात भूखे रहे थे। इसके बाद उन्हें ब्रजवासियों ने सात दिनों और आठ पहर के हिसाब से 8X7=56 व्यंजन खिलाए थे। माना जाता है तभी से 56 भोग की परंपरा शुरू हुई।
वहीं छप्पन भोग को लेकर एक कथा यह भी है कि श्रीकृष्ण और राधा जिस दिव्य कमल पर विराजते हैं। उस कमल की 56 पंखुड़ियां हैं। इसलिए 56 भोग लगाया जाता है। माना जाता है कि छप्पन भोग के बिना गोवर्धन पूजा अधूरी है।
कड़वा, तीखा, कसैला, अम्ल, नमकीन और मीठा इन छह रस या स्वाद को मिलाकर छप्पन भोग तैयार किया जाता है।
1) भक्त (भात), 2) सूप (दाल), 3) प्रलेह (चटनी), 4) सदिका (कढ़ी), 5) दधिशाकजा (दही शाक की कढ़ी), 6) सिखरिणी (सिखरन), 7) अवलेह (शरबत), 8) बालका (बाटी), 9) इक्षु खेरिणी (मुरब्बा), 10) त्रिकोण (शर्करा युक्त), 11) बटक (बड़ा), 12) मधु शीर्षक (मठरी), 13) फेणिका (फेनी), 14) परिष्टाश्च (पूरी), 15) शतपत्र (खजला), 16) सधिद्रक (घेवर), 17) चक्राम (मालपुआ), 18) चिल्डिका (चोला), 19) सुधाकुंडलिका (जलेबी), 20) धृतपूर (मेसू), 21) वायुपूर (रसगुल्ला), 22) चन्द्रकला (पगी हुई), 23) दधि (महारायता), 24) स्थूली (थूली), 25 कर्पूरनाड़ी (लौंगपूरी), 26 खंड मंडल (खुरमा), 27 गोधूम (दलिया), 28 परिखा, 29 सुफलाढय़ा (सौंफ युक्त), 30 दधिरूप (बिलसारू), 31 मोदक (लड्डू), 32 शाक (साग), 33 सौधान (अधानौ अचार), 34 मंडका (मोठ), 35 पायस (खीर), 36 दधि (दही), 37 गोघृत, 38 हैयंगपीनम (मक्खन), 39 मंडूरी (मलाई), 40 कूपिका, 41 पर्पट (पापड़), 42 शक्तिका (सीरा), 43 लसिका (लस्सी), 44 सुवत, 45 संघाय (मोहन), 46 सुफला (सुपारी), 47 सिता (इलायची), 48 फल, 49 तांबूल, 50 मोहन भोग, 51 लवण, 52 कषाय, 53 मधुर, 54 तिक्त, 55 कटु, 56 अम्ल।
बसंत पंचमी का दिन विद्या की देवी माता सरस्वती की पूजा-अर्चना के लिए समर्पित है। हर वर्ष माघ माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को बसंत पंचमी मनाई जाती है और विधि-विधान से माता सरस्वती की पूजा की जाती है।
फरवरी का महीना धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि इस महीने में फाल्गुन माह की शुरुआत होती है। हिंदू पंचांग के अनुसार, फरवरी 2025 में कई प्रमुख व्रत और त्योहार मनाए जाएंगे।
हिंदू धर्म में मां शबरी का नाम बहुत ही आदर और सम्मान के साथ लिया जाता है। वह भगवान राम की परम भक्त थीं और उनके जीवन की कहानी हमें कई महत्वपूर्ण सीख देती है।
महाकुंभ जो कि दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक समागम है इस बार बसंत पंचमी पर विशेष रूप से खास होने वाला है। इस दिन महाकुंभ में तीसरा अमृत स्नान होना तय हुआ है जो कि त्रिवेणी संगम में होगा।