भारत में मनाए जाने वाले त्योहार जीवन को अध्यात्म, आस्था और संस्कारों से जोड़ते हैं। इन्हीं में से एक महत्वपूर्ण पर्व है अक्षय तृतीया, जिसे ‘आखा तीज’ भी कहा जाता है। यह पर्व न केवल धार्मिक दृष्टि से विशेष होता है, बल्कि इसे अबूझ मुहूर्त भी माना जाता है, यानी इस दिन किसी भी शुभ कार्य के लिए विशेष मुहूर्त देखने की जरूरत नहीं होती।
हिंदू पंचांग के अनुसार, अक्षय तृतीया वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाई जाती है। इस साल यह शुभ तिथि 29 अप्रैल, मंगलवार को शाम 05 बजकर 31 मिनट से शुरू होगी, और 30 अप्रैल, बुधवार को दोपहर 02 बजकर 12 मिनट पर समाप्त होगी।
धार्मिक परंपराओं के अनुसार, उदया तिथि को प्राथमिकता दी जाती है, इसलिए इस साल अक्षय तृतीया 30 अप्रैल, बुधवार को मनाई जाएगी।
धार्मिक रूप से अक्षय तृतीया को पूरे दिन शुभ माना जाता है, फिर भी इस दिन कुछ अत्यंत विशेष मुहूर्त होते हैं। जैसे पुण्य काल मुहूर्त, जो इस साल सुबह 05:45 बजे से दोपहर 12:20 बजे तक रहेगा और महापुण्य काल, जो सुबह 06:10 बजे से सुबह 08:25 बजे तक रहेगा। यह समय दान, पूजा, खरीदारी, विवाह, गृह प्रवेश, भूमि पूजन जैसे कार्यों के लिए विशेष रूप से शुभ माना गया है।
‘अक्षय’ शब्द का अर्थ है जो कभी क्षय न हो, अर्थात जो कभी नष्ट न हो। इसलिए इस दिन किए गए दान, जप, तप, व्रत और पूजा का फल अक्षय रहता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन भगवान विष्णु, परशुराम और देवी लक्ष्मी की आराधना विशेष फलदायी होती है। आइए जानते हैं इस पर्व के शुभ होने के कुछ धार्मिक कारण
हे पुरुषोत्तम श्रीराम,
करूणानिधान भगवान ॥
सात्विक मंत्र साधना में शुद्धि, शांति, और उन्नति का विशेष महत्व है। इसका उद्देश्य भौतिक इच्छाओं से मुक्त होकर ईश्वर की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करना है।
हो के नाचूं अब दिवाना,
मैं प्रभु श्रीराम का,
है सुखी मेरा परिवार,
माँ तेरे कारण,