पंचांग के अनुसार, अनंत चतुर्दशी का व्रत हर साल भाद्रपद माह के चतुर्दशी तिथि पर मनाया जाता है। इस अवसर पर भगवान विष्णु के अनंत अवतारों की पूजा की जाती है और लोग व्रत कथा पढ़ने के बाद अनंत सूत्र पहनते हैं। ऐसी मान्यता है कि अनंत चतुर्दशी पर व्रत कथा पढ़ने तथा सूत्र बांधने से अनंत आशीर्वाद प्राप्त होता है। साथ ही, जीवन की सभी कष्ट दूर होते हैं।
एक समय की बात है जब ऋषि कौण्डिन्य और उनकी पत्नी सुशीला एक गांव में रहते थे,दोनों ही अत्यधिक गरीबी से पीड़ित थे। तब सुशीला को अनंत चतुर्दशी व्रत के बारे में पता चला और उन्होंने व्रत करने का निश्चय किया जिसके बाद उन्हें भगवान विष्णु का आशीर्वाद प्राप्त हुआ और दोनों दम्पति धनवान हो गए।
लेकिन ऋषि कौण्डिन्य ने सोचा कि सुशीला उनकी कड़ी मेहनत का सारा श्रेय भगवान विष्णु को दे रही है, जिससे वे क्रोधित हो गए। क्रोध में आकर उन्होंने अपनी पत्नी के हाथ में पहना हुआ अनंत सूत्र छीन लिया और उसे आग में फेंक दिया। इससे उनकी संपत्ति और समृद्धि नष्ट हो गई और वे पुनः गरीब हो गए।
उन्हें फिर से जीवन में परेशानियों का सामना करना पड़ा, तब सुशीला ने अपने पति को उनकी गलती का एहसास कराया। उनके पति को अपनी गलती का एहसास हुआ और वह इसके लिए दोषी महसूस करने लगे। इसके बाद ऋषि कौण्डिन्य वन में घूम कर तप करने लगे तभी भगवान विष्णु ने दर्शन देकर कहा कि यदि तुम अनंत चतुर्दशी व्रत को पूरी विधि के साथ करोगे तो तुम्हारे सभी कष्ट समाप्त हो जाएंगे।
इसके बाद ऋषि कौण्डिन्य ने पूरे विधि-विधान से अनंत चतुर्दशी की और भगवान विष्णु को प्रसन्न किया। जिससे उन्हें अपार आशीर्वाद और समृद्धि प्राप्त हुई और उनके सभी कष्ट भी समाप्त हो गए।
महाभारत के समय जब पांडव वन में रह रहे थे, तब भगवान श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर को अनंत चतुर्दशी व्रत करने की सलाह दी जिससे उनको राज्य वापस मिल जाए। ऐसी मान्यता है कि अनंत चतुर्दशी का व्रत करने से खोया हुआ धन तथा राज्य दोनों वापस प्राप्त होता है। इसीलिए युधिष्ठिर ने अनंत चतुर्दशी व्रत किया, जिससे पांडवों को अपना खोया हुआ राज-पाट पुनः प्राप्त हुआ।
धार्मिक मान्याताओं के अनुसार, अनंत चतुर्दशी का व्रत करने से सभी कष्ट समाप्त होते हैं और जीवन की सभी बाधाएं दूर हो जाती हैं। साथ ही, धन संपदा और समृद्धि का आशीर्वाद प्राप्त होता है और भगवान विष्णु की कृपा सदा बनी रहती है।