बुध प्रदोष व्रत, नवंबर 2024

Budh Pradosh Vrat 2024: कब है बुध प्रदोष व्रत? पूजा के शुभ मुहूर्त और व्रत के महत्व के साथ जानिए समस्त पूजा विधि 


सनातन धर्म में प्रत्येक तिथि का अपना विशेष महत्व है, जैसे एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित है, वैसे ही त्रयोदशी तिथि महादेव भगवान शिव की प्रिय तिथि मानी जाती है। हर माह की त्रयोदशी तिथि पर प्रदोष व्रत रखा जाता है। ऐसे में महीने में दो बार प्रदोष व्रत करने की परंपरा है। प्रदोष व्रत में शाम को यानी प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा-अर्चना की जाती है। ऐसे में यदि प्रदोष व्रत का पर्व किसी विशेष दिन होता है तो उसका महत्व कुछ अधिका हो जाता है। जैसे इस बार आने वाला प्रदोष व्रत कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि यानी बुधवार को पड़ रही है, जिससे बुध प्रदोष का विशेष संयोग बन रहा है। मान्यताओं के अनुसार भोलेनाथ की कृपा पाने के लिए प्रदोष व्रत का बड़ा महत्व है और इससे जीवन की सभी कठिनाइयां दूर होती हैं। आईये जानते हैं नवंबर के पहले प्रदोष व्रत की तारीख और पूजा के शुभ मुहूर्त के बारे में, साथ ही जानेंगे प्रदोष में महादेव शिव की करने की विधि और व्रत कथा को भी….


कब है बुध प्रदोष व्रत 2024?


पंचांग के अनुसार कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष का प्रदोष व्रत नवंबर माह का पहला प्रदोष व्रत होगा। त्रयोदशी तिथि 13 नवंबर, बुधवार को दोपहर 1 बजकर 1 मिनट से शुरू होकर 14 नवंबर, गुरुवार को सुबह 9 बजकर 43 मिनट तक रहेगी। ऐसे में प्रदोष व्रत की पूजा संध्या के समय किए जाने की वजह से ये प्रदोष व्रत 13 नवंबर के दिन रखा जाएगा। ऐसे में 13 नवंबर को बुध प्रदोष व्रत रखा जाएगा। 


बुध प्रदोष व्रत 2024 के लिए पूजा का मुहूर्त


13 नवंबर को प्रदोष पूजा का मुहूर्त शाम को 5 बजकर 28 मिनट से लेकर 8 बजकर 7 मिनट तक रहेगा। जो कुल 2 घंटे 39 मिनट को होगा। इस दिन, दिन में में प्रदोष काल का समय 5 बजकर 28 मिनट से लेकर 8 बजकर 7 मिनट तक है। मान्यताओं के अनुसार प्रदोष व्रत की पूजा अपने शहर के सूर्यास्त होने के समय के अनुसार प्रदोष काल मे करनी चाहिए।


बुध प्रदोष व्रत पूजा विधि


  1. प्रदोष व्रत करने के लिए मनुष्य को त्रयोदशी के दिन प्रात: सूर्य उदय से पूर्व उठना चाहिए।
  2. नित्यकर्मों से निवृ्त होकर, भगवान श्री भोले नाथ का स्मरण करें।
  3. इस व्रत में आहार नहीं लिया जाता है।
  4. पूरे दिन उपावस रखने के बाद सूर्यास्त से एक घंटा पहले, स्नान आदि कर श्वेत वस्त्र धारण किए जाते है।
  5. पूजन स्थल को गंगाजल या स्वच्छ जल से शुद्ध करने के बाद, गाय के गोबर से लीपकर, मंडप तैयार किया जाता है।
  6. अब इस मंडप में पांच रंगों का उपयोग करते हुए रंगोली बनाई जाती है।
  7. प्रदोष व्रत कि आराधना करने के लिए कुशा के आसन का प्रयोग किया जाता है।
  8. पूजा की थाली में अबीर, गुलाल, चंदन, काले तिल, फूल, धतूरा, बिल्वपत्र, शमी पत्र, जनेऊ, कलावा, दीपक, कपूर, अगरबत्ती एवं फल के साथ पूजा करें।
  9. इस प्रकार पूजन की तैयारियां करके उतर-पूर्व दिशा की ओर मुख करके बैठें और भगवान शंकर का पूजन करना चाहिए।
  10. पूजन में भगवान शिव के पंचाक्षरी मंत्र 'ऊँ नम: शिवाय' का जाप करते हुए शिव को जल अर्पित करना चाहिए।
  11. पूजा समाप्त होने पर भगवान शिव की आरती करें।
  12. आखिर में शिव जी को सफेद चीजों जैसे खीर का प्रसाद चढ़ाएं।


बुध प्रदोष व्रत का महत्व 


कार्तिक महीने का प्रदोष व्रत बहुत ही खास होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवान शिव की पूजा करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं और जीवन के दुख-दर्द समेत सभी दोषों का निवारण होता है। इसके साथ ही व्यक्ति के पाप भी नष्ट होते हैं और बीमारियों से छुटकारा मिलता है। साथ ही बता दें कि बुधवार का दिन भगवान गणेश को समर्पित होता है और यदि इस दिन प्रदोष व्रत का संयोग बन जाए तो ये अत्याधिक शुभ होता है। ऐसे में भक्तों को भगवान शिव और श्री गणेश दोनों की पूजा करना चाहिए जिससे पिता और पुत्र दोनों का आशीर्वाद मिल सके।

बुध प्रदोष व्रत कथा 


बुध प्रदोष व्रत रखने के दौरान इसकी कथा सुनने और पढ़ने का भी बहुत महत्व है। इस लिंक पर क्लिक करके आप बुध प्रदोष व्रत कथा को पढ़ सकते हैं। 


नोट: प्रदोष व्रत एक ही देश के दो अलग-अलग शहरों के लिए अलग हो सकते हैं। चूँकि प्रदोष व्रत सूर्यास्त के समय, त्रयोदशी के प्रबल होने पर निर्भर करता है। तथा दो शहरों का सूर्यास्त का समय अलग-अलग हो सकता है, इस प्रकार उन दोनो शहरों के प्रदोष व्रत का समय भी अलग-अलग हो सकता है। इसीलिए कभी-कभी ऐसा भी देखने को मिलता है कि, प्रदोष व्रत त्रयोदशी से एक दिन पूर्व अर्थात द्वादशी तिथि के दिन ही हो जाता है। सूर्यास्त होने का समय सभी शहरों के लिए अलग-अलग होता है अतः प्रदोष व्रत करने से पूर्व अपने शहर का सूर्यास्त समय अवश्य जाँच लें, चाहे वो शहर एक ही देश मे क्यों ना हों। प्रदोष व्रत चन्द्र मास की शुक्ल एवं कृष्ण पक्ष की दोनों त्रयोदशी के दिन किया जाता है।

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