सनातन धर्म में हर पर्व, हर परंपरा के पीछे गहरा धार्मिक और आध्यात्मिक तात्पर्य छिपा होता है। देवशयनी एकादशी, जो आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को आती है, 2025 में 6 जुलाई को मनाई जाएगी। इस दिन से चातुर्मास की शुरुआत होती है और भगवान विष्णु क्षीरसागर में योगनिद्रा में चले जाते हैं। इस विशेष दिन पर चौमुखी दीपक जलाने की परंपरा का पालन किया जाता है, जिसे शुभ, शक्तिशाली और अत्यंत फलदायक माना गया है।
चौमुखी दीपक को चातुर्मास का प्रतीक भी माना गया है। चूंकि देवशयनी एकादशी से ही चातुर्मास आरंभ होता है, जो श्रावण, भाद्रपद, आश्विन और कार्तिक इन चार महीनों तक चलता है। इसलिए यह दीपक आने वाले चार महीनों में उजाले, सद्भाव और आध्यात्मिकता का प्रतीक बन जाता है।
चौमुखी दीपक यानी ऐसा दीपक जिसमें चार मुख होते हैं और यह चारों दिशाओं में प्रकाश फैलाता है। यह संपूर्ण दिशाओं में सुख, शांति और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि जब दीपक सभी दिशाओं में समान रूप से प्रकाशित होता है, तो वह केवल भौतिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक ऊर्जा का भी संचार करता है।
ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, देवशयनी एकादशी पर चौमुखी दीपक जलाने से विशेष ग्रह दोषों का प्रभाव भी कम होता है। यह दीपक पितृदोष, राहु-केतु दोष और अशुभ ग्रहों की शांति में सहायक होता है। विशेष रूप से यदि दीपक में तिल का तेल या गाय के घी का उपयोग किया जाए और उसमें रुई की चार बातियों को चारों दिशाओं की ओर जलाया जाए, तो यह और भी फलदायी होता है।
ॐ जय जानकीनाथा, प्रभु! जय श्रीरघुनाथा।
दोउ कर जोरें बिनवौं, प्रभु! सुनियेबाता॥
ऐसी आरती राम रघुबीर की करहि मन।
हरण दुख द्वन्द, गोविन्द आनन्दघन॥
जय गणपति सद्गुण सदन कविवर बदन कृपाल।
विघ्न हरण मंगल करण जय जय गिरिजालाल॥
हनुमान चालीसा न केवल एक भक्तिपूर्ण स्तुति है, बल्कि यह विश्वास, शक्ति और समर्पण का प्रतीक भी है। गोस्वामी तुलसीदास द्वारा रचित यह चालीसा श्री हनुमान जी की महिमा का बखान है।