भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को गणेश चतुर्थी मनाने की परम्परा प्राचीन काल से चली आ रही है। शास्त्रों के अनुसार इसी तिथि के मध्यान्ह काल में गणेश जी का प्राकट्य हुआ था, इसलिए इस समय की पूजा अत्यंत फलदायी मानी जाती है। 2026 में यह शुभ पर्व सोमवार, 14 सितंबर को आएगा और गणेशोत्सव का समापन 25 सितंबर को अनन्त चतुर्दशी पर होगा। इस दिन भक्तजन गणेश प्रतिमाओं का भव्य रूप से विसर्जन करते हैं। गणेश चतुर्थी को विनायक चतुर्थी, कलंक चतुर्थी और डण्डा चौथ भी कहा जाता है। इस तिथि का व्रत बुद्धि, समृद्धि, सौभाग्य तथा झूठे आरोपों से रक्षा प्रदान करने वाला माना गया है। आइए इस वर्ष के विस्तृत मुहूर्त और पूजन-विधि को जानें।
गणेश चतुर्थी सोमवार, 14 सितंबर 2026 को
शास्त्रों के अनुसार गणेश जी का जन्म मध्यान्ह में हुआ था, इसलिए गणेश चतुर्थी पर मध्यान्ह-व्यापिनी चतुर्थी को ही प्रमुख माना गया है। इस दिन रविवार या मंगलवार हो तो इसे महाचतुर्थी कहा जाता है। पूजा में षोडशोपचार गणपति पूजन का विशेष विधान है।
धर्मसिन्धु के अनुसार चतुर्थी तिथि के सम्पूर्ण काल में चन्द्र-दर्शन निषिद्ध होता है। यदि चतुर्थी तिथि चन्द्रास्त से पूर्व समाप्त हो जाए, तब भी उसी तिथि में उदित चन्द्रमा का दर्शन चन्द्रास्त तक वर्जित रहता है। यह मान्यता भगवान गणेश द्वारा चन्द्रदेव को दिये गये श्राप से सम्बन्धित है।
मान्यता है कि इस तिथि के चन्द्र-दर्शन से मिथ्या दोष लगता है, जैसा कि भगवान कृष्ण पर स्यमन्तक मणि चोरी का झूठा आरोप लगा था। भूल से चन्द्र-दर्शन हो जाए तो नीचे दिया मन्त्र 28, 54 या 108 बार जपना चाहिए। श्रीमद्भागवत के दशम स्कन्द के 57वें अध्याय का पाठ भी फलदायी है।
मन्त्र:
सिंहः प्रसेनमवधीत् सिंहो जाम्बवता हतः।
सुकुमारक मा रोदीस्तव ह्येष स्यमन्तकः॥
व्रती प्रातः स्नान कर सोने, ताम्र या मिट्टी की गणेश प्रतिमा स्थापित करें। एक कोरे कलश में जल भरकर उसके ऊपर नवीन वस्त्र बांधकर गणेश जी को विराजित करें। गणेश जी को सिंदूर, अक्षत और दूर्वा अर्पित कर 21 लड्डुओं का भोग लगाएं, जिनमें से पांच लड्डू गणेश जी को समर्पित करें और शेष ब्राह्मणों या जरूरतमंदों में बांट दें। सायंकाल गणेश चतुर्थी की कथा, गणेश चालीसा और आरती के पश्चात दृष्टि नीचे रखते हुए चन्द्रमा को अर्घ्य देना चाहिए। इस दिन सिद्धिविनायक रूप की पूजा अत्यंत शुभ मानी गई है। ध्यान रहे कि तुलसी पत्र गणेश पूजा में प्रयोग नहीं होते।
गणेश जी के जन्म और स्वरूप से जुड़ी अनेक कथाएं प्रचलित हैं। एक कथा के अनुसार पार्वती जी ने अपने शरीर के उबटन से एक बालक का निर्माण किया और उसे द्वार पर नियुक्त किया। शिवजी के प्रवेश रोकने पर उन्होंने उसका मस्तक काट दिया, जिसे बाद में हाथी के सिर से प्रतिस्थापित किया गया। एक अन्य कथा में शनि की दृष्टि से बालक गणेश का सिर भस्म हुआ और विष्णु जी ने हाथी के मस्तक से पुनः जीवन दिया। परशुराम जी के परशु से दन्त कटने के कारण वे एकदन्त कहलाए। ये सभी कथाएँ गणेश जी के अद्भुत स्वरूप और दिव्य शक्ति का परिचय कराती हैं।
गणेश जी को कार्यारम्भ के देवता माना जाता है। प्रत्येक शुभ कार्य की शुरुआत उनके स्मरण और पूजन से ही की जाती है। ऋग्वेद और यजुर्वेद में गणपति मन्त्रों का उल्लेख होने से वे वैदिक देवता माने जाते हैं। पंचदेवों में उनका स्थान प्रमुख है। गणेश जी के बारह नाम सुमुख, एकदन्त, कपिल, गजकर्ण, लम्बोदर, विकट, विघ्नविनाशन, विनायक, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचन्द्र और गजानन शास्त्रों में वर्णित हैं। महाभारत का लेखन कार्य भी उन्होंने वेदव्यास के आग्रह पर किया था। पौराणिक मान्यता के अनुसार ‘ओम्’ गणेश जी का साक्षात स्वरूप है।