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15 से 21 अक्टूबर 2025 व्रत-त्योहार

15 से 21 अक्टूबर 2025 व्रत-त्योहार

October 2025 Third Week Vrat Tyohar: 15 से 21 अक्टूबर तीसरे हफ्ते में पड़ेंगे ये त्योहार, देखें लिस्ट

अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से अक्टूबर साल का 10वां महीना होता है। अक्टूबर का तीसरा हफ्ता विभिन्न व्रतों भरा हुआ है। इस हफ्ते में कई महत्वपूर्ण व्रत पड़ेंगे। जिनमें रमा एकादशी, धनतेरस, काली चौदस, हनुमान पूजा, नरक चतुर्दशी, दीवाली और अन्य शामिल हैं। ये व्रत न केवल हमारी सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा हैं, बल्कि हमारे जीवन को अध्यात्मिक और धार्मिक मूल्यों से भी भरते हैं। आइए इस आर्टिकल में अक्टूबर के तीसरे हफ्ते में पड़ने वाले इन महत्वपूर्ण त्योहारों के बारे में जानते हैं। साथ ही उनके धार्मिक महत्व को समझते हैं।

15 से 21 अक्टूबर 2025 के व्रत-त्योहार

  • 15 अक्टूबर 2025- कोई व्रत और त्योहार नहीं है
  • 16 अक्टूबर 2025- कोई व्रत और त्योहार नहीं है
  • 17 अक्टूबर 2025- गोवत्स द्वादशी, रमा एकादशी
  • 18 अक्टूबर 2025- शनि त्रयोदशी, धनतेरस, यम दीपम, शनि प्रदोष व्रत
  • 19 अक्टूबर 2025- काली चौदस, हनुमान पूजा, मासिक शिवरात्रि
  • 20 अक्टूबर 2025- लक्ष्मी पूजा, नरक चतुर्दशी, केदार गौरी व्रत, दीवाली, चोपड़ा पूजा, शारदा पूजा, काली पूजा, कमला जयंती
  • 21 अक्टूबर 2025- दर्श अमावस्या, कार्तिक अमावस्या 

15 अक्टूबर 2025 के व्रत और त्योहार 

15 अक्टूबर 2025 के व्रत और त्योहारों के बारे में यहां पूरी जानकारी दी गई है: 

  • बुधवार का व्रत- आज आप बुधवार का व्रत रख सकते हैं, जो भगवान गणेश को समर्पित है।

16 अक्टूबर 2025 के व्रत और त्योहार 

  • गुरूवार का व्रत- आज आप गुरूवार का व्रत रख सकते हैं, जो भगवान विष्णु को समर्पित है।

17 अक्टूबर 2025 के व्रत और त्योहार 

17 अक्टूबर 2025 के व्रत और त्योहारों के बारे में यहां पूरी जानकारी दी गई है: 

शुक्रवार का व्रत- आज आप शुक्रवार का व्रत रख सकते हैं, जो माता लक्ष्मी को समर्पित है।

गोवत्स द्वादशी - गोवत्स द्वादशी धनतेरस से एक दिन पहले मनाई जाती है, जिसमें गायों और बछड़ों की पूजा की जाती है। पूजा के बाद उन्हें गेहूं से बने उत्पाद दिए जाते हैं। इस दिन जो लोग व्रत रखते हैं वे दिनभर गेहूं और दूध से बने उत्पादों का सेवन नहीं करते। इसे नन्दिनी व्रत भी कहा जाता है, जिसमें नन्दिनी नामक दिव्य गाय की पूजा होती है। महाराष्ट्र में इसे वसु बारस के नाम से जाना जाता है और दीपावली का पहला दिन माना जाता है।

रमा एकादशी - कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को रमा एकादशी कहा जाता है, जिसमें श्रीहरि और माता लक्ष्मी की विधिवत पूजा करने से सभी पापों से मुक्ति मिलती है और जीवन में खुशियों का आगमन होता है। इस व्रत को करने से घर में सुख-समृद्धि आती है, जीवन की बाधाएं दूर होती हैं और धन की कमी नहीं होती। भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की कृपा से तिजोरी सदैव धन से भरी रहती है और परिवार के सदस्यों पर उनकी विशेष कृपा बनी रहती है।

18 अक्टूबर 2025 के व्रत और त्योहार 

18 अक्टूबर 2025 के व्रत और त्योहारों के बारे में यहां पूरी जानकारी दी गई है: 

  • शनिवार का व्रत- आज आप शनिवार का व्रत रख सकते हैं, जो न्याय के देवता शनि देव को समर्पित है।
  • धनतेरस - धनतेरस पूजा प्रदोष काल के दौरान की जानी चाहिए, जो सूर्यास्त के बाद लगभग 2 घंटे 24 मिनट तक रहता है। इस पूजा के लिए स्थिर लग्न का समय सबसे उपयुक्त माना जाता है, जिससे लक्ष्मीजी घर में ठहर जाती हैं। वृषभ लग्न को स्थिर माना गया है और यह अक्सर प्रदोष काल के साथ मिलता है। धनतेरस पूजा के लिए त्रयोदशी तिथि, प्रदोष काल और स्थिर लग्न का समय महत्वपूर्ण होता है। इस दिन यमराज के लिए घर के बाहर दीपक जलाया जाता है, जिसे यम दीपम कहा जाता है, ताकि परिवार के सदस्यों की असामयिक मृत्यु से बचा जा सके।
  • यम दीपम - दीवाली के दौरान त्रयोदशी तिथि को घर के बाहर एक दीपक यमराज के लिए जलाया जाता है, जिसे यम दीपम कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस दीपदान से यमदेव प्रसन्न होते हैं और परिवार के सदस्यों की अकाल मृत्यु से रक्षा करते हैं। सन्ध्याकाल में जलाए गए इस दीपक से परिवार के सदस्यों की सुरक्षा और दीर्घायु की कामना की जाती है।
  • शनि प्रदोष व्रत - प्रदोष व्रत चन्द्र मास की दोनों त्रयोदशी तिथियों पर किया जाता है, जो शुक्ल और कृष्ण पक्ष में आती हैं। यह व्रत तब किया जाता है जब त्रयोदशी तिथि प्रदोष काल (सूर्यास्त के समय) में व्याप्त होती है। शनि प्रदोष व्रत शनिवार को पड़ने पर विशेष महत्व रखता है, जो भगवान शिव और शनि देव की कृपा प्राप्त करने के लिए किया जाता है। इस व्रत से शनि ग्रह से संबंधित दोष, कालसर्प दोष और पितृ दोष आदि का निवारण होता है। शास्त्र सम्मत विधि से व्रत करने पर भगवान शिव की कृपा से सभी ग्रह दोषों से मुक्ति मिलती है और कर्म बंधन कट जाते हैं।

19 अक्टूबर 2025 के व्रत और त्योहार 

19 अक्टूबर 2025 के व्रत और त्योहारों के बारे में यहां पूरी जानकारी दी गई है: 

  • रविवार का व्रत- आज आप रविवार का व्रत रख सकते हैं, जो सूर्य देव को समर्पित है।
  • काली चौदस - काली चौदस, जिसे भूत चतुर्दशी भी कहा जाता है, मुख्य रूप से गुजरात में दीवाली उत्सव के दौरान मनाई जाती है। यह चतुर्दशी तिथि पर तब निर्धारित होती है जब मध्य रात्रि में चतुर्दशी तिथि प्रचलित होती है, जिसे महा निशिता काल कहा जाता है। इस दिन मध्यरात्रि में श्मशान जाकर अंधकार की देवी और वीर वेताल की पूजा की जाती है। काली चौदस को रूप चौदस और नरक चतुर्दशी से अलग समझना चाहिए। इसे बंगाल काली पूजा से भी भ्रमित नहीं करना चाहिए, जो एक दिन बाद अमावस्या तिथि पर मनाई जाती है। इसलिए काली चौदस की तिथि का अवलोकन करते समय सावधानी बरतनी चाहिए।
  • हनुमान पूजा - हनुमान पूजा दीवाली से एक दिन पहले की जाती है, जो काली चौदस के दिन आती है। इस दिन हनुमान जी की पूजा करने से बुरी आत्माओं से सुरक्षा और शक्ति की प्राप्ति होती है। पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान राम ने हनुमान जी को वरदान दिया था कि उनसे पहले हनुमान जी का पूजन किया जाएगा। इसलिए लोग दीवाली से पहले हनुमान जी की पूजा करते हैं। अयोध्या के हनुमानगढ़ी मंदिर में इस दिन हनुमान जन्मोत्सव मनाया जाता है, जबकि उत्तर भारत में अधिकांश भक्त चैत्र पूर्णिमा पर हनुमान जन्मोत्सव मनाते हैं।
  • मासिक शिवरात्रि - महाशिवरात्रि भगवान शिव और शक्ति के मिलन का विशेष पर्व है, जो हर साल फाल्गुन या माघ माह की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन भगवान शिव लिंग के रूप में प्रकट हुए थे और भगवान विष्णु और ब्रह्माजी ने उनकी पूजा की थी। महाशिवरात्रि भगवान शिव के जन्मदिवस के रूप में मनाई जाती है और श्रद्धालु इस दिन शिवलिंग की पूजा-अर्चना करते हैं। मासिक शिवरात्रि का व्रत करने से भगवान शिव की कृपा से कठिन कार्य भी पूरे हो सकते हैं। इस व्रत को विवाहित जीवन में सुख-शांति और विवाह की कामना के लिए भी किया जाता है। मंगलवार के दिन पड़ने वाली शिवरात्रि विशेष शुभ मानी जाती है। शिवरात्रि की पूजा मध्य रात्रि में निशिता काल के दौरान की जाती है, जो भगवान शिव के भोले-भाले स्वभाव को दर्शाती है।

20 अक्टूबर 2025 के व्रत और त्योहार 

20 अक्टूबर 2025 के व्रत और त्योहारों के बारे में यहां पूरी जानकारी दी गई है: 

  • सोमवार का व्रत- आज आप सोमवार का व्रत रख सकते हैं, जो भगवान शिव को समर्पित है।
  • लक्ष्मी पूजा - दीपावली का त्योहार पूरे देश में बड़े उत्साह और धूमधाम से मनाया जाता है। इस पावन अवसर पर धन की देवी मां लक्ष्मी, भगवान गणेश और धन के देवता कुबेर की पूजा की जाती है। मान्यता है कि समुद्र मंथन के समय, कार्तिक अमावस्या की तिथि पर मां लक्ष्मी का अवतरण हुआ था। इसी कारण, हर वर्ष कार्तिक अमावस्या के दिन दीपावली का पर्व मनाया जाता है। त्रेता युग में भगवान श्रीराम के 14 वर्षों के वनवास के बाद अयोध्या लौटने की खुशी में अयोध्यावासियों द्वारा दीप जलाकर इस पर्व को मनाया गया था। तभी से यह परंपरा चली आ रही है और हर वर्ष दीपावली धूमधाम से मनाई जाती है। इस दिन मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की विशेष पूजा की जाती है, दीप जलाए जाते हैं और घरों को रोशनी से सजाया जाता है। धार्मिक विश्वास है कि मां लक्ष्मी की विधिपूर्वक पूजा करने से सुख, समृद्धि और सौभाग्य में वृद्धि होती है।
  • नरक चतु्र्दशी - दीपावली का पंचदिवसीय उत्सव धनतेरस से शुरू होकर भैया दूज तक मनाया जाता है। इसमें चतुर्दशी, अमावस्या और प्रतिपदा के दिन अभ्यंग स्नान करने की परंपरा है। खासकर चतुर्दशी को, जिसे नरक चतुर्दशी, रूप चौदस या छोटी दीवाली कहा जाता है, अभ्यंग स्नान का विशेष महत्व होता है। मान्यता है कि इस दिन सूर्योदय से पूर्व चतुर्दशी तिथि में स्नान करने से नरकगति से मुक्ति मिलती है। स्नान के समय तिल के तेल का उबटन प्रयोग में लाया जाता है। कभी-कभी यह तिथि लक्ष्मी पूजा से एक दिन पहले या उसी दिन भी पड़ सकती है, जो चतुर्दशी और अमावस्या की स्थिति पर निर्भर करता है। काली चौदस और नरक चतुर्दशी अक्सर एक मानी जाती हैं, जबकि वे वास्तव में दो अलग पर्व होते हैं।
  • केदार गौरी व्रत - केदार गौरी व्रत दक्षिण भारत में विशेष रूप से तमिलनाडु में मनाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण पर्व है, जिसे केदार व्रतम् भी कहा जाता है। यह व्रत दीपावली अमावस्या के दिन किया जाता है और लक्ष्मी पूजा के साथ जुड़ा होता है। कुछ परिवारों में यह व्रत 21 दिनों तक चलता है, जबकि अधिकांश लोग एक दिन का उपवास रखते हैं। भगवान शिव के भक्तों के लिए यह व्रत अत्यधिक महत्वपूर्ण है और दीवाली के अवसर पर विशेष रूप से मनाया जाता है।
  • दीवाली - कार्तिक माह में दीवाली का पर्व अत्यधिक उत्साह और बेसब्री से मनाया जाता है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, यह पर्व भगवान श्रीराम, माता सीता और भगवान लक्ष्मण के 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटने की खुशी में मनाया जाता है। कार्तिक माह की अमावस्या तिथि पर यह पर्व विशेष रूप से मनाया जाता है और लोग इसे बड़े उत्साह और धूमधाम से मनाते हैं।
  • चोपड़ा पूजा - गुजरात में दीवाली को चोपड़ा पूजा के रूप में मनाया जाता है, जिसमें व्यापारी वर्ग देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना कर एक सफल और लाभप्रद व्यावसायिक वर्ष की प्रार्थना करते हैं। इस दिन नए बही-खातों या लैपटॉप की पूजा की जाती है, जिसमें स्वास्तिक, ॐ और शुभ-लाभ बनाए जाते हैं। चोपड़ा पूजा के लिए चौघड़िया मुहूर्त का विशेष महत्व है, जिसमें अमृत, शुभ, लाभ और चर मुहूर्त सबसे शुभ माने जाते हैं। हालांकि, लग्न आधारित दीवाली मुहूर्त और प्रदोष लक्ष्मी पूजा मुहूर्त को अधिक महत्वपूर्ण माना जाता है। यह परंपरा गुजरात के अलावा राजस्थान और महाराष्ट्र में भी व्यापारी वर्ग द्वारा मनाई जाती है और इसे मुहूर्त पूजन भी कहा जाता है।
  • शारदा पूजा - दीपावली पूजा गुजरात में शारदा पूजा और चोपड़ा पूजा के नाम से भी जानी जाती है, जिसमें देवी सरस्वती, लक्ष्मी और श्री गणेश की पूजा की जाती है। देवी सरस्वती ज्ञान, बुद्धि और विद्या की देवी हैं, जबकि माता लक्ष्मी धन और समृद्धि की देवी हैं। श्री गणेश बुद्धि और विद्या के प्रदाता हैं। इस दिन तीनों की पूजा करने से स्थाई संपत्ति और वृद्धि की कामना की जाती है। शारदा पूजा विद्यार्थियों और व्यापारी वर्ग दोनों के लिए महत्वपूर्ण है, जिसमें नए चोपड़े (बही-खातों) की पूजा की जाती है और समृद्धि व सफलता के लिए प्रार्थना की जाती है। यह पूजा दीवाली हैं और इसका विशेष महत्व गुजरात, राजस्थान और महाराष्ट्र में है।
  • काली पूजा - काली पूजा एक हिंदू त्योहार है, जो देवी काली को समर्पित है। यह पर्व दीवाली उत्सव के दौरान अमावस्या तिथि पर मनाया जाता है। पश्चिम बंगाल, उड़ीसा और असम में काली पूजा का विशेष महत्व है, जबकि अन्य जगहों पर लक्ष्मी पूजा की जाती है। काली पूजा के लिए मध्यरात्रि का समय उपयुक्त माना जाता है, जबकि लक्ष्मी पूजा के लिए प्रदोष का समय उपयुक्त है। इन राज्यों में लक्ष्मी पूजा का प्रमुख दिन आश्विन माह की पूर्णिमा को कोजागर पूजा या बंगाल लक्ष्मी पूजा के रूप में मनाया जाता है। काली पूजा को श्यामा पूजा भी कहा जाता है और इसका अपना विशेष महत्व और अनुष्ठान हैं।
  • कमला जयंती - देवी कमला दस महाविद्याओं में से दसवीं महाविद्या हैं और उन्हें तांत्रिक लक्ष्मी के रूप में भी जाना जाता है। धर्म ग्रंथों में उन्हें देवी लक्ष्मी के समान स्वरूप में वर्णित किया गया है, जो अपने भक्तों को संपत्ति, समृद्धि, उर्वरता, और सौभाग्य प्रदान करती हैं। देवी कमला की साधना से धन और धान्य की कमी नहीं रहती और स्थिर लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। उन्हें कमल पुष्प अत्यंत प्रिय है। देवी कमला भगवान विष्णु की वैष्णवी शक्ति और लीला सहचरी हैं, और आगम-निगम दोनों ही उनकी महिमा का वर्णन करते हैं। देवी कमला को त्रिपुरा भी कहा जाता है, क्योंकि वह भगवान शिव के त्रिपुर स्वरूप की शक्ति हैं या भगवान ब्रह्मा, विष्णु और शिव तीनों उनकी आराधना करते हैं।

21 अक्टूबर 2025 के व्रत और त्योहार 

21 अक्टूबर 2025 के व्रत और त्योहारों के बारे में यहां पूरी जानकारी दी गई है:

  • मंगलवार का व्रत- आज आप मंगलवार का व्रत रख सकते हैं, जो हनुमान जी को समर्पित है।
  • दर्श अमावस्या - हिंदू धर्म में दर्श अमावस्या पितरों को समर्पित एक महत्वपूर्ण तिथि है, जिसमें रात के समय विशेष उपाय किए जाते हैं। ये उपाय जीवन में सुख-समृद्धि लाने और बिगड़े कामों को बनाने में प्रभावी माने जाते हैं। दर्श अमावस्या की रात में किए जाने वाले उपाय पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करने, नकारात्मकता को दूर करने और चंद्र दोष को शांत करने से संबंधित होते हैं, जो रुके हुए कार्यों को गति देते हैं और जीवन में सकारात्मक परिवर्तन लाते हैं।
  • कार्तिक अमावस्या - कार्तिक अमावस्या पर लक्ष्मीजी पृथ्वी पर आती हैं, जैसा कि ब्रह्म पुराण में बताया गया है। पद्म पुराण के अनुसार, इस दिन दीपदान करने से अक्षय पुण्य मिलता है। स्कंदपुराण के मुताबिक, कार्तिक अमावस्या पर गीता पाठ, अन्न दान और भगवान विष्णु को तुलसी चढ़ाना चाहिए। इससे सभी प्रकार के पाप नष्ट हो जाते हैं और सुख बढ़ता है। अन्नदान करने से चिरंजीवी होने का फल मिलता है और यह हजारों गाय दान करने जितना पुण्य देता है।

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