पितृपक्ष का अंतिम दिन, जिसे सर्वपितृ मोक्ष अमावस्या कहा जाता है, सबसे महत्वपूर्ण माना गया है। यह दिन उन सभी पितरों को समर्पित है जिनकी पुण्यतिथि या तो ज्ञात नहीं है, या फिर परिवारजन पूरे पक्ष में अलग-अलग तिथियों पर श्राद्ध करने में सक्षम नहीं हो पाते। अमावस्या का यह दिन पितृपक्ष का समापन भी करता है और माना जाता है कि इस दिन विधिवत श्राद्ध और तर्पण करने से समस्त पूर्वज तृप्त होकर आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
वर्ष 2025 में अमावस्या श्राद्ध रविवार, 21 सितम्बर को मनाया जाएगा। पंचांग के अनुसार, अमावस्या तिथि 21 सितम्बर की रात 12:46 बजे से शुरू होकर 22 सितम्बर की रात 1:53 बजे तक रहेगी। इस दिन तर्पण और पिंडदान के लिए दोपहर का समय शुभ है। कुतुप मुहूर्त (11:26 एएम से 12:15 पीएम), रौहिण मुहूर्त (12:15 पीएम से 01:03 पीएम) और अपराह्न काल (01:03 पीएम से 03:29 पीएम) में श्राद्ध कर्म करने का विशेष महत्व है।
अमावस्या तिथि पर-
अमावस्या की सुबह स्नान कर संकल्प लिया जाता है। इसके बाद कुशा, तिल, जल और पुष्प के साथ पिंडदान और तर्पण किया जाता है। गाय को चारा, कौओं और चींटियों को अन्न तथा ब्राह्मणों को भोजन करवाना शुभ माना जाता है। पितरों के नाम से वस्त्र और दक्षिणा दान करने का भी महत्व है।
श्राद्ध समाप्त होने के बाद परिवारजन मिलकर भोजन करते हैं और पितरों को स्मरण करते हैं।
पश्चिम बंगाल में इस दिन को महालय अमावस्या कहा जाता है। मान्यता है कि इसी दिन माता दुर्गा पृथ्वी पर अवतरित होती हैं और नवरात्रि की शुरुआत का संकेत मिलता है। वहाँ श्रद्धालु इस अवसर पर पितृ तर्पण के साथ देवी दुर्गा की उपासना भी करते हैं।
गरुड़ पुराण और धर्मशास्त्रों में उल्लेख है कि पितरों की आत्मा अमावस्या पर विशेष रूप से पृथ्वी लोक पर आती है। यदि उन्हें श्रद्धा से तर्पण और अर्पण मिल जाए तो वे संतुष्ट होकर वंशजों को स्वास्थ्य, धन, समृद्धि और संतान सुख का आशीर्वाद देते हैं। जबकि उपेक्षा करने से घर-परिवार में कलह, अकाल मृत्यु और अशांति बढ़ सकती है।