पितृपक्ष में प्रत्येक तिथि का अपना महत्व होता है और उस दिन विशेष श्राद्ध किया जाता है। इस बार द्वादशी श्राद्ध गुरुवार, 18 सितम्बर 2025 को मनाया जाएगा। इसे सामान्य भाषा में बारस श्राद्ध भी कहा जाता है। यह दिन उन पितरों के लिए समर्पित है जिनका निधन द्वादशी तिथि को हुआ हो। शास्त्रों में यह भी उल्लेख मिलता है कि जो लोग मृत्यु से पूर्व संन्यास ग्रहण करते हैं, उनका श्राद्ध भी द्वादशी तिथि को ही किया जाना चाहिए।
श्राद्ध कर्म के लिए कुतुप और रौहिण मुहूर्त सर्वश्रेष्ठ माने जाते हैं। यदि इनका पालन संभव न हो तो अपराह्न काल में भी श्राद्ध करना शुभ माना गया है।
द्वादशी तिथि का संबंध भगवान विष्णु से है। यही कारण है कि इस दिन किया गया श्राद्ध न केवल पितरों को तृप्त करता है, बल्कि भगवान विष्णु की कृपा भी परिवार पर बनी रहती है। शास्त्रों में कहा गया है कि जो भी श्रद्धापूर्वक इस दिन तर्पण करता है, उसे पुण्य की प्राप्ति होती है और परिवार से पितृ दोष का निवारण होता है। संन्यास ग्रहण कर मृत्यु को प्राप्त हुए व्यक्तियों के लिए भी यह दिन विशेष माना गया है। मान्यता है कि ऐसे पितरों के लिए किया गया श्राद्ध उन्हें मोक्ष प्राप्त कराने वाला होता है।
द्वादशी श्राद्ध की प्रक्रिया अन्य पार्वण श्राद्धों के समान ही होती है।
धर्मशास्त्रों में कहा गया है – “श्राद्धेन पितरः तृप्यन्ति, तृप्ताः तु प्रसन्नाः भवन्ति।” यानी श्राद्ध से पितर तृप्त होते हैं और तृप्त होकर आशीर्वाद देते हैं।