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वट सावित्री व्रत हिंदू धर्म की सबसे प्रमुख व्रत परंपराओं में से एक है, जिसे विशेष रूप से विवाहित महिलाएं अपने पति की दीर्घायु, सौभाग्य और समृद्ध जीवन के लिए करती हैं। इस व्रत का वर्णन महाभारत, स्कंद पुराण, और व्रतराज जैसे शास्त्रों में विस्तार से मिलता है। इस दिन स्त्रियां वट वृक्ष की पूजा करती हैं, और इस वर्ष यह पर्व सोमवार, 26 मई को मनाया जाएगा।
अवैधव्यं च सौभाग्यं देहि त्वं मम सुव्रते। पुत्रान् पौत्रांश्च सौख्यं च गृहाणार्घ्यं नमोऽस्तुते।।
इस मंत्र का अर्थ है, ‘हे सुव्रता देवी! मुझे सौभाग्य, अखंड वैवाहिक जीवन, पुत्र-पौत्रों का सुख और पारिवारिक सुख-शांति प्रदान करें। यह मेरा अर्घ्य स्वीकार करें, आपको मेरा नमन है।’
यह मंत्र पूजा के समय अर्घ्य अर्पण करते हुए बोला जाता है। यह देवी सावित्री की स्तुति है और इससे स्त्री को अखंड सौभाग्य प्राप्त होता है।
यथा शाखाप्रशाखाभिर्वृद्धोऽसि त्वं महीतले। तथा ममापि सौभाग्यं वृद्धिं कुर्याद् जनार्दन।।
इस मंत्र का अर्थ है, ‘हे वट वृक्ष! जैसे आप अपनी शाखा-प्रशाखाओं के द्वारा पृथ्वी पर विस्तृत और वृद्ध हो रहे हैं, वैसे ही मेरे सौभाग्य और परिवार में भी वृद्धि हो।
यह मंत्र वट वृक्ष की परिक्रमा करते समय बोला जाता है। इस मंत्र से वृक्ष का आशीर्वाद प्राप्त होता है और जीवन में दीर्घायु, स्वास्थ्य और समृद्धि आती है।
सावित्र्यै च नमस्तुभ्यं सत्यवानसहिताय च। दीर्घायुष्यमयं देहि सौभाग्यं मे प्रयच्छ च।।
इस मंत्र से सावित्री और सत्यवान की पूजा करते समय प्रार्थना की जाती है कि वे अपने आदर्श प्रेम, तप और आशीर्वाद से भक्तों को भी सौभाग्य और लंबा जीवन प्रदान करें।
पूजा विधि के दौरान उच्चारित किए गए मंत्र न केवल वातावरण को पवित्र करते हैं, बल्कि भक्तों की आस्था और श्रद्धा को भी शक्ति प्रदान करते हैं। इन विशेष मंत्रों का जाप देवी सावित्री की कृपा प्राप्त करने और पूजा को शुद्ध रूप सम्पूर्ण करने में मदद करता है।
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