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जानते हैं ग्रहों के राजकुमार बुधदेव के बारे में (Jaanate Hain Grahon ke Raajakumaar Budhadev ke Baare Mein)

जानते हैं ग्रहों के राजकुमार बुधदेव के बारे में (Jaanate Hain Grahon ke Raajakumaar Budhadev ke Baare Mein)

ग्रहों के राजकुमार माने जाने वाले ग्रह बुध सौर मंडल के सबसे छोटे ग्रह हैं, ये सूर्य के सबसे निकटतम ग्रह हैं। इनकी सूर्य से दूरी लगभग ५८० लाख किलोमीटर हैं तथा इनका क्षेत्र ७४८ लाख किलोमीटर।  नवग्रहों में राजकुमार माने गए ग्रह बुध हरे रंग के बताए गए हैं तथा ज्योतिष में इनका सम्बन्ध बुद्धि, समृद्धि, शांति, व्यापार, अकाउंट, गणित, त्वचा और ज्योतिष से बताया गया है।  रिश्तों में बुध बुआ, बहन और बेटी के कारक माने गए हैं।  बुधवार का दिन भगवान गणेश और श्रीकृष्ण को समर्पित किया गया है। bhaktvatsal.com के इस लेख में हम बुध ग्रह के बारे में जानने की कोशिश करते हैं। 


बुध के जन्म की एक पौराणिक कथा के अनुसार देवगुरु बृहस्पति की पत्नि तारा जो अत्यंत सुंदर, गुणी और पतिव्रता थीं और चंद्रदेव मन में विकार उत्पन्न हो जाने के कारण उनकी सुंदरता से मोहित हो गए और उन्हें पाना चाहते थे किन्तु तारा के विवाहित होने के कारण ये संभव नहीं था तब चंद्रदेव ने तारा का अपहरण कर लिया और बृहस्पतिदेव इस बात पर अत्यधिक कुपित हो गए। बृहस्पति ने चंद्रदेव से तारा को छोड़ने के लिए कहा, लेकिन वे नहीं माने और युद्ध के लिए तैयार हो गए लेकिन चंद्रदेव ने भाग कर असुर गुरु, शुक्राचार्य के पास शरण ली जिसके बाद बृहस्पति ने सभी देवताओं से अपील की और उनसे चंद्रमा से अपनी पत्नी को वापस लाने में मदद करने का अनुरोध किया। शुक्राचार्य के सरंक्षण के कारण देवता तारा को नहीं बचा सके हालाँकि मन की स्तिथि ठीक होने पर चंद्रदेव ने तारा को बृहस्पति के पास लौटा दिया। लौटने पर तारा ने कुछ समय बाद एक आकर्षक बच्चे को जन्म दिया और पुत्र बुध को लेकर दोबारा चंद्रदेव और बृहस्पति के बीच वाक्य युद्ध छिड़ गया तब तारा ने स्वयं स्वीकार किया और बताया कि बुध के जनक चंद्रदेव हैं, निर्मल मन से सत्य स्वीकार करने और सत्य को उजागर करने के कारण बृहस्पति ने भी उन्हें क्षमा दान दिया और बुध को अपने बालक रूप में स्वीकार किया।  बुधदेव को गुरु और चंद्रदेव दोनों अपना पुत्र मानते हैं और स्नेह करते हैं। 


ज्योतिष के अनुसार कालपुरुष की कुंडली में बुध को तीसरे और छठवें भाव का स्वामी माना गया है और मिथुन एवं कन्या राशियों का इन्हे आधिपत्य प्राप्त है। इन्हे अश्लेषा, ज्येष्ठा और रेवती नक्षत्रों का स्वामी माना जाता है।  शास्त्रों में बुध को हरे रंग का, भगवान विष्णु के समान काया वाला बताया गया है, उत्तर दिशा पे इनका स्वामित्व है और पन्ना इनका रत्न है। बुध कन्या राशि में उच्च और मीन राशि में नीच माने जाते हैं। सूर्य और शुक्र को बुध अपना मित्र मानते हैं तथा चंद्र को शत्रु, अन्य ग्रहों से इनका व्यवहार सम है। यह ग्रह बुद्धि, संचार, खोज, त्वचा, विज्ञान, गणित, व्यापार, शिक्षा, बुआ, बहिन तथा बेटी का प्रतिनिधित्व करता है इसलिए इनके कुंडली में नीच या उच्च होने पर सम्बंधित विभागों के अच्छे और बुरे फल मिलते हैं। 


बुधदेव को प्रसन्न करने के लिए कुछ सरल उपाय -


१) बुआ, बहिन और बेटी का आशीर्वाद लें और उनका कभी भी अपमान न करें। 

२) हरी घास पे टहलें, पेड़ पौधों की सेवा करें और यथासंभव नए पेड़ लगाएं। 

३) गणेशजी की आराधना करें, उन्हें दूर्वा अर्पित करें, प्रतिदिन करें अन्यथा बुधवार को अवश्य करें।  

४) बुधदेव को प्रसन्न करने के लिए भगवान विष्णु का विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें, प्रतिदिन करें अन्यथा बुधवार को अवश्य करें।  

५) किन्नरों को हरी चूड़ियों और श्रृंगार का दान करें। 

६) दुर्गा सप्तशती या देवी कवच का पाठ करें, प्रतिदिन करें अन्यथा बुधवार को अवश्य करें।



नीचे दिए हुए कुछ मंत्र का जाप से भी बुधदेव को प्रसन्न किया जा सकता है -


१) ॐ बुं बुधाय नमः 

२) ॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं सः बुधाय नमः

३) ॐ प्रियंगु कलिका श्यामं रूपेणाप्रतिमं बुधं, सौम्यं सौम्यगुणोपेतं तं बुधं प्रणमाम्यहम्।

४) ॐ सौम्यरुपाय विद्महे वाणेशाय धीमहि तन्नौ सौम्यः प्रचोदयात्।

५) ॐ उदबुध्यस्वाग्ने प्रति जागृहि त्वमिष्टापूर्ते स सृजेथामयं च अस्मिन्त्सधस्थे अध्युत्तरस्मिन् विश्वेदेवा यजमानश्च सीदत।


ऊपर दिए गए सभी उपाय और मंत्र ऐसे तो दैनिक चर्या में उपयोग किये जा सकते हैं फिर भी किसी योग्य ज्योतिषी की सलाह लेकर ही अपनी कुंडली के शुभाशुभ अनुसार ही इनका प्रयोग करें। बुधदेव बुद्धि और वाणी के कारक हैं इसलिए वाणी और बुद्धि पर संयम रखें।


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