कौन हैं शनिदेव? क्यों डरते हैं सब शनिदेव से !

शनिदेव को नवग्रहों में एक प्रमुख ग्रह की मान्यता दी गयी है और इन्हें कर्म-प्रधान, कर्म फलदाता एवं दंडाधिकारी भी कहा गया है, ऐसा क्यों कहा गया है या माना गया है इसके लिए जानते हैं शनिदेव के जन्म और इतिहास के बारे में -


शनिदेव भगवान सूर्यदेव के पुत्र हैं एवं छाया इनकी माता हैं लेकिन ये इतना सरल नहीं है, भगवान सूर्यदेव की प्रथम पत्नी संज्ञा हैं जिनसे उनकी तीन संतानों मनु, यमराज और यमुना का जन्म हुआ, लेकिन माता संज्ञा को सूर्यदेव का तेज सहन करने में बहुत परेशानी होती थी और उस तेज को सहन करने के लिए उन्होंने तपस्या का विचार किया लेकिन ये सूर्यदेव को बताने से वे डरती थीं इसलिए उन्होंने एक स्त्री को उत्पन्न किया और उस स्त्री का रूप हूबहू अपने जैसा होने के कारण उसको छाया नाम दिया और स्वयं तप करने चली गयीं। 


एक दिन सूर्यदेव गर्भाधान के लिए माता छाया के पास  गए तो डर से उन्होंने अपनी आँखें बंद कर लीं जिसके प्रभाव से शनिदेव का जन्म हुआ और उनका रंग काला हुआ।  शनिदेव के काले रंग को देखकर सूर्यदेव गुस्सा हो गए और उन्हें अपना पुत्र मानने से मना कर दिया जिससे शनिदेव काफी दुखी हुए।  सूर्यदेव के द्वारा त्याग जाने से दुखी शनिदेव ने भगवान शिव की कठिन तपस्या की और भगवान शिव ने प्रसन्न होकर जब इनसे वरदान मांगने को कहा तो शनिदेव ने कहा कि सूर्यदेव उनकी माता का अनादर करते हैं इससे उनकी माता को हमेशा अपमानित होना पड़ता है इसलिए प्रभु मुझे सूर्यदेव से अधिक शक्तिशाली और पूज्यनीय होने का वरदान दीजिये, इस पर भगवान शिव ने शनिदेव को वरदान दिया कि वह नौ ग्रहों के स्वामी होंगे यानि उन्हें सबसे श्रेष्ठ स्थान की प्राप्ति होगी। इसके साथ ही सिर्फ मानव जाति ही नहीं बल्कि देवता, असुर, गंधर्व, नाग और जगत का हर प्राणी उनके कर्मफल प्रदान करने के कार्य से सदा भयभीत रहेगा।  


चूँकि शनिदेव को भगवान शिव से लोगों को कर्म के अनुसार फल प्रदान करने का कार्य प्राप्त हुआ, इसीलिए वो लोग जो गलत कर्मों में लिप्त रहे या रहते हैं चाहे वो देवता ही क्यों न हों, शनिदेव से डरते हैं और अगर कोई अच्छे कर्म करता है तो शनिदेव से डरने की जरा भी जरुरत नहीं है बल्कि शनि आपको अच्छा फल देंगे ही।  


ग्रहों में शनिदेव को एक विशिष्ट स्थान प्राप्त है और ज्योतिष के अनुसार कालपुरुष की कुंडली में इन्हें दसवां एवं ग्यारहवां स्थान प्राप्त है, दसवां घर कर्मक्षेत्र का माना गया है और ग्यारहवां घर लाभ का, अगर आप अपने कर्म अच्छे से करेंगे और ईमानदारी से अपनी जिम्मेदारी को पूर्ण करेंगे तो शनिदेव अवश्य ही आपको लाभ पहुंचाएंगे अन्यथा आप उनके गुस्से का शिकार हो सकते हैं। शनिदेव तुला राशि में उच्च तथा मेष राशि में नीच अवस्था के माने जाते हैं, शनि को मकर एवं कुम्भ राशियों का स्वामी माना जाता है, शनिदेव  पुष्य, अनुराधा और उत्तराभाद्रपद नक्षत्र के स्वामी भी हैं अतः जब भी कुंडली में शनि अपनी उच्च राशि, मित्र राशि या अपने नक्षत्र में होते हैं तो वे उस मनुष्य को अच्छा फल ही प्रदान करते हैं बशर्ते कर्म बहुत ख़राब न हों  तो मित्रों शनिदेव से डरें नहीं अपितु उन्हें समझकर और अपने कर्म सुधारकर उनकी स्तुति करके उनकी कृपा प्राप्त करें।  


शनिदेव को शनैश्चर भी कहा जाता है क्यूंकि ज्योतिषशास्त्र के अनुसार शनि की धरती से दूरी लगभग नौ करोड़ मील है औऱ इसकी चौड़ाई एक अरब बयालीस करोड़ साठ लाख किलोमीटर है। इसका बल धरती से पंचानवे गुना अधिक है। शनि को सूर्य की परिक्रमा करने में उन्नीस वर्ष लगते हैं इतना धीरे धीरे विचरण करने के कारण ही इन्हें ही शनैश्चर कहा जाता है। 


शनिदेव को प्रसन्न करने के उपाय -


लोग कहते हैं शनि के उपाय मात्रा करने से शनिदेव प्रसन्न हो जाते हैं लेकिन ऐसा नहीं है क्यूंकि जो ग्रह कर्म प्रधान हो और कर्म का फल जिसने रावण और अपने पिता को भी दिया हो वो आपके सिर्फ कुछ उपाय करने से प्रसन्न नहीं हो सकता, इसलिए सबसे पहले अपने कर्मों को सुधारें और साथ साथ निचे दिए गए उपाय भी करें -


१) शनिदेव को निम्न और गरीब वर्ग या यूँ कहिये कि मेहनत करने वालों का ग्रह माना गया है इसलिए अपने नीचे काम करने वालों का ध्यान रखें, उनका अपमान न करें।  अपने घर में काम करने वाले कर्मचारियों या सोसाइटी के सफाई कर्मियों, सुरक्षा कर्मियों का अनादर न करें। 

२) शनिवार के दिन हनुमान चालीसा का पाठ करें, संभव हो तो हनुमान मंदिर में जाकर करें।  

३) काले घोड़े की नाल से बनी अंगूठी मध्यमा ऊँगली में शनिवार को सूर्यास्त के समय पहनें। 

४) शनिवार को शनिदेव के मंदिर जाकर उनपे काली उड़द, काली तिल एवं सरसों का तेल अर्पित करके उनकी पूजा करें। 

५) शनि स्तोत्र का पाठ करें। 

६) शनिवार के दिन सात मुखी रुद्राक्ष गले में धारण करें। 

७) शनिवार के दिन किसी पात्र में तेल लेकर उसमें अपनी छाया देखकर तेल किसी गरीब को दान कर दें। 


शनि मंत्र 


शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए निम्न मन्त्रों का जाप भी लाभकारी होता है -


१)  नीलांजन-समाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम्, छाया-मार्तण्ड-सम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम्।।

२)  ॐ प्रां प्रीं प्रौं सः शनये नमः।।

३)  ॐ शं शनैश्चराय नमः।।

४)  हनुमान चालीसा का पाठ


फिर से बताना आवश्यक है कि शनिदेव कर्म प्रधान हैं और जब तक आप अपने कर्म को ठीक नहीं करते शनिदेव प्रसन्न नहीं होंगे, अपने कर्मों को ठीक करते हुए इन उपायों और मन्त्रों को करें तो अवश्य फल प्राप्त होगा। 


हम bhaktvatsal.com पर शनिदेव से जुडी और भी जानकारियां आपको उपलब्ध कराएँगे तो पड़ते रहिये ऐसे ही रोचक लेख। 

जय शनिदेव


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