छठ पर्व में लोहंडा क्या है

खरना को क्यों कहा जाता है लोहंडा? निर्जला उपवास के लिए यह दिन विशेष क्यों माना जाता है?


छठ महापर्व का दूसरा दिन खरना कहलाता है। जिसे लोहंडा भी कहा जाता है। इस दिन का उद्देश्य मानसिक और शारीरिक शुद्धिकरण है। व्रती सुबह से ही उपवास रखते हैं और शाम को छठी मईया के प्रसाद की पूजा करते हैं। जिसमें शुद्धता और पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है। खरना का प्रसाद ग्रहण करने के बाद 36 घंटे का निर्जला उपवास आरंभ होता है। धार्मिक मान्यता है कि यह कठोर तपस्या छठी मईया और भगवान सूर्य की कृपा प्राप्त करने का माध्यम है। 


खरना को लोहंडा क्यों कहा जाता है?

 

छठ महापर्व के दूसरे दिन खरना मनाया जाता है इसे लोहंडा भी कहते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार "खरना" का अर्थ शुद्धिकरण होता है। खरना के दिन का महत्व इसलिए विशेष है क्योंकि व्रतधारी इसी दिन शाम को प्रसाद ग्रहण करके अपने निर्जला उपवास की शुरुआत करते हैं। "लोहंडा" शब्द का उपयोग इस दिन की कठिन तपस्या को दर्शाने के लिए किया जाता है। इस दिन व्रती सुबह से उपवास रखते हैं और शाम को प्रसाद बनाकर सूर्य देव और छठी मैया की पूजा करते हैं। मान्यता है कि इस दिन की गई पूजा से व्रतधारी के मन और आत्मा की शुद्धि होती है और उसे आशीर्वाद प्राप्त होता है।


खरना के दिन व्रत की विशेषता


खरना के दिन व्रती सुबह से लेकर शाम तक उपवास रखते हैं और फिर शाम को प्रसाद ग्रहण करते हैं। खरना के प्रसाद में मुख्य रूप से गुड़ और चावल से बनी खीर, गेहूं की रोटी और केले का भोग होता है। यह प्रसाद मिट्टी के चूल्हे पर बनता है जो शुद्धता का प्रतीक है। प्रसाद में शुद्धता और पवित्रता का विशेष ध्यान रखा जाता है ताकि छठी मईया और भगवान सूर्य का आशीर्वाद प्राप्त हो सके। 


खरना की पूजा विधि और तैयारी


खरना की पूजा विधि में विशेष ध्यान रखा जाता है कि सब कुछ शुद्ध और पारंपरिक तरीके से हो। पूजा का समय शाम को निर्धारित होता है और व्रती अपने घरों में शुद्धता के साथ प्रसाद तैयार करते हैं। इस प्रसाद में मुख्य रूप से ये पदार्थ शामिल होते हैं। 


खीर: साठी के चावल, दूध, और गुड़ से बनी खीर।

रोटी: शुद्ध घी से चुपड़ी गेहूं की रोटी, जो प्रसाद में आवश्यक मानी जाती है।

पिट्ठा और ठेकुआ: ये खासतौर पर गेहूं के आटे से बने होते हैं और छठ का मुख्य प्रसाद माने जाते हैं।


प्रसाद को सबसे पहले छठी मईया को अर्पित किया जाता है और फिर परिवार के लोग इसे ग्रहण करते हैं। इसके बाद ही 36 घंटे का निर्जला उपवास भी प्रारंभ हो जाता है।


निर्जला उपवास का महत्व


खरना के प्रसाद ग्रहण करने के बाद व्रतधारी 36 घंटे के कठिन निर्जला व्रत का आरंभ करते हैं। इस उपवास का उद्देश्य आत्मशुद्धि और संकल्प की शक्ति को प्रदर्शित करना है। धार्मिक मान्यता के अनुसार यह तपस्या व्रती को मानसिक और शारीरिक रूप से भगवान सूर्य और छठी मैया के प्रति श्रद्धा व्यक्त करने का अवसर देती है। व्रती पूरे संयम के साथ इस व्रत को निभाते हैं और उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर इसे पूरा करते हैं।


छठ पर्व में महत्वपूर्ण होती है पवित्रता


छठ पूजा में प्रसाद की पवित्रता और शुद्धता का विशेष ध्यान रखा जाता है। पूजा के दौरान उपयोग की जाने वाली महत्वपूर्ण सामग्री में दौउरा, सूप, सुथनी, नींबू, छोटा नींबू, शकरकंद, अदरक पात, मूंगफली, लाल धान का चावल, हल्दी पात, नारियल, आंवला, सिंघाड़ा, अनानास, गन्ना, धूप की लकड़ी और कलश शामिल हैं। छठ का प्रमुख प्रसाद "ठेकुआ" होता है जो गेहूं के आटे से बनाया जाता है और इसे छठ पूजा में अत्यधिक महत्व दिया जाता है। साथ ही, भूसवा भी पूजा में अर्पित किया जाता है। प्रसाद और अन्य सामग्री में प्रकृति से जुड़े फल और शुद्ध सामग्री का प्रयोग किया जाता है। खरना का दिन छठ पूजा का अत्यंत महत्वपूर्ण भाग है। इसे लोहंडा कहने का अर्थ यह है कि व्रती इस दिन अपने मन, वचन और शरीर को पवित्र कर निर्जला व्रत के लिए तैयार होते हैं। खरना के बाद शुरू होने वाला यह 36 घंटे का निर्जला उपवास अत्यंत कठोर होता है, जो व्रतधारी की आस्था, श्रद्धा और संकल्प शक्ति का परिचायक है।


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