संध्या अर्घ्य : छठ पूजा का तीसरा दिन

छठ पर्व के तीसरे दिन डूबते सूरज को चढ़ाया जाता है अर्घ्य, पर्व का सबसे पवित्र दिन माना जाता है


छठ महापर्व का तीसरा दिन संध्या अर्घ्य के लिए जाना जाता है। इसमें व्रती महिलाएं पवित्र नदी में या किसी कुंड में डुबकी लगाती हैं और सूर्य और छठी मैया की पूजा करती है। यह अर्घ्य संध्या काल के दौरान सूर्य को दिया जाता है। और इसमें कुछ पवित्र मंत्रों का जाप करके सूर्य का भक्ति भाव से पूजन किया जाता है। छठ पूजा के तीसरे दिन महिलाएं परिवार और संतान की दीर्घायु के लिए भगवान सूर्य से प्रार्थना करती हैं। सूर्यास्त के साथ लोकगीत गाए जाते हैं और प्रसाद के रुप में पारंपरिक व्यंजन सूर्य देव को चढ़ाए जाते हैं। 

संध्या अर्घ्य का दिन छठ पूजा का सबसे पवित्र दिन होता है। इस दिन व्रती महिलाएं सूर्य देव को अर्घ्य देकर अपनी मनोकामनाएं पूरी होने की कामना करती हैं। माना जाता है कि इस दिन सूर्य देव अपनी कृपा बरसाते हैं और सभी मनोकामनाएं पूरी करते हैं।


संध्या अर्घ्य की पूजा विधि


  • इस दिन प्रातः काल उठकर स्नानादि करके निवृत्त हो जाएं और मुठ्ठी में जल लेकर व्रत का संकल्प लें।
  • पूरे दिन निर्जला व्रत का पालन करें और शाम के समय नदी या तालाब में स्नान आदि करने के बाद साफ कपड़े पहन के सूर्यदेव को अर्घ्य दें।
  • संध्या के समय सूर्य देव को अर्घ्य देने के लिए बांस की बड़ी टोकरी या 3 सूप लें और उसमें चावल, दीया, सिंदूर, गन्ना, हल्दी, सब्जी और अन्य सामग्री रखें।
  • सभी पूजन सामग्रियों को टोकरी में सजा लें और सूर्य को अर्घ्य देते समय सारा सूप में रखें।
  • पूजन के समय सूप में एक दीपक जरूर रखें।
  • छठ का डाला सजाकर नदी या जल कुंड में प्रवेश करके सूर्य देव की पूजा करें और छठी मैया को प्रणाम करके सूर्य देव को अर्घ्य दें।
  • सप्तक (सात चक्र) का ध्यान: इस दौरान व्रती मन में अपने परिवार की सुख और समृद्धि के लिए प्रार्थना करती हैं।


संध्या अर्घ्य का भोग


संध्या अर्घ्य के दिन भोग में मुख्य रूप से फल, ठेकुआ, दूध और जल शामिल होता है। फल जैसे केला, अंगूर, सेब आदि को भोग में शामिल किया जाता है। ठेकुआ एक विशेष प्रकार का मिठाई है जो छठ पूजा के लिए बनाया जाता है। संध्या अर्घ्य के दिन परिवार के सभी सदस्य एक साथ मिलकर पूजा करते हैं जो परिवार की एकता का प्रतीक है।


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