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मां ने सपना देकर बनवाया मंदिर, गुरू द्रोण पत्नी यहीं सती हुईं थी, दर्शन से चेचक दूर होता है

मां ने सपना देकर बनवाया मंदिर, गुरू द्रोण पत्नी यहीं सती हुईं थी, दर्शन से चेचक दूर होता है

माता शीतला का मंदिर हरियाणा के गुरुग्राम में स्थित है। माता का यह मंदिर करीब 400 साल पुराना है। स्थानीय लोगों का मानना है कि शीतला माता ने गुरुग्राम के सिंघा जाट नाम के व्यक्ति को सपने में दर्शन दिए थे और मंदिर बनाने के लिए कहा था। मान्यता है कि माता यहां साक्षात वास करती हैं। इस मंदिर में दर्शन मात्र से चेचक, खसरा और नेत्र रोग जड़ से खत्म हो जाते हैं।


गुरू द्रोण और उनकी पत्नी से जुड़ी कथा


इस मंदिर का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा है। कहा जाता है गुरु द्रोणाचार्य महाभारत के युद्ध में  वीरगति को प्राप्त हुए थे तो उनकी पत्नी सोलह श्रृंगार कर गुरु द्रोणाचार्य के साथ उनकी चिता में बैठ गई। लोगो ने उन्हें रोकने का प्रयत्न किया परंतु अपने पति की चिता में सती होने का दृढ निर्णय ले चुकी कृपी ने लोगों की बात नहीं मानी।


सती होने से पूर्ण उन्होंने लोगो को आशीर्वाद देते हुए कहा कि मेरे इस सती स्थल पर जो भी व्यक्ति अपनी मनोकामनाएं लेकर पहुंचेगा उसकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होगी। भारतपुर के एक राजा ने सन 1650 में गुरुग्राम में जहां पर माता कृपी सती हुई थी, एक बहुत ही भव्य मंदिर बनवाया एवं उस मंदिर में सवा किलो सोने से निर्मित माता कृपी की मूर्ति स्थापित की। ये कथा शीतला माता मंदिर से भी जोड़ी जाती है।


चेचक बाधा को मां करती हैं दूर


माता के दर्शन मात्र से चेचक रोग नहीं होता


मान्यता है कि मंदिर में माता शीतला की पूजा करने से व्यक्ति को कभी चेचक का रोग नहीं होता है।  हर साल लाखों लोग अपने बच्चों का मुंडन इस मंदिर में कराते है। यहां पर बैसाख और आषाढ़ के महीने एवं अश्विन की नवरात्रि में विशाल मेला लगता है। देश के अनेको राज्यों से विशेष कर हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश, यूपी, उत्तराखंड, दिल्ली आदि प्रदेशों से श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए भारी संख्या में पहुंचते हैं। 


पेड़ पर कलावा बांधने से मनोकामना पूरी होती है


इस मंदिर में चैत्र माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि पर ज्यादा संख्या में श्रद्धालु आते है। इस खास मौके पर मंदिर में अलग ही रौनक देखने को मिलती है। मंदिर में कई सालों पुराना एक बरगद का पेड़ है। मान्यता है कि जो साधक इस पेड़ पर कलावे के रुप में मन्नत का धागा बांधते है और चुन्नी चढ़ाकर जल अर्पित करते है, तो उनकी मनोकामना पूरी होती है। 


माता शीतला का मंदिर कैसे पहुंचे मंदिर


हवाई मार्ग - यहां के लिए निकटतम हवाई अड्डा इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एयरपोर्ट है। यहां से आप कैब, टैक्सी द्वारा मंदिर तक पहुंच सकते हैं।

रेल मार्ग - इस मंदिर में पहुंचने के लिए आप गुरुग्राम, नई दिल्ली, निजामुद्दीन किसी भी रेलवे स्टेशन पर उतर सकते हैं। फिर वहां से कैब, ऑटो या स्थानीय परिवहन के द्वारा मंदिर पहुंच सकते हैं

सड़क मार्ग- दिल्ली से गुरुग्राम पहुंचने के लिए आप NH48 का उपयोग कर सकते है। गुरुग्राम में एक बार पहुंचने के बाद आपको मंदिर की दिशा में सड़क पर संकेत मिल जाएंगे।


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महाकुंभ का तीसरा शाही स्नान

शाही स्नान कुंभ मेले का प्रमुख आकर्षण है। इसके लिए बड़ी संख्या में श्रद्धालु और साधु संत महाकुंभ वाली जगह इकट्ठे होते हैं। इस दौरान सबसे पहले अखाड़ों के साधु-संत, विशेष रूप से नागा साधु, पवित्र नदियों में स्नान करते हैं।

पूजा में क्यों करते हैं अक्षत का प्रयोग

अक्षत यानी कि पीले चावल। हिंदू धर्म में अक्षत को बेहद महत्वपूर्ण माना गया है। इसे पूजा-पाठ में मुख्य रूप से इस्तेमाल किया जाता है। बिना खंडित हुए चावल को अक्षत कहते हैं। यह पूजा में इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह पवित्रता, समृद्धि और अखंडता का प्रतीक माना जाता है। पूजा-पाठ अक्षत के बिना अधूरा माना जाता है। यह पूजा का विशेष सामग्री है।

शनिवार को तेल दान क्यों किया जाता है?

हिंदू धर्म में शनिवार का दिन शनिदेव को समर्पित होता है। शनिदेव को न्याय का देवता माना जाता है और उनकी कृपा पाने के लिए भक्त विभिन्न प्रकार के उपाय करते हैं। इनमें से एक प्रमुख उपाय है शनिवार के दिन शनिदेव को तेल चढ़ाना है।

घर में मोर पंख क्यों रखा जाता है?

हिंदू धर्म में मोर पंख का सबसे प्रसिद्ध संबंध भगवान श्री कृष्ण से है। श्री कृष्ण के मुकुट में मोर पंख सजे होते थे। इसे उनके सौंदर्य और दिव्यत्व का प्रतीक माना जाता है। कुछ शास्त्रों के अनुसार, मोर पंख भगवान कृष्ण के साथ जुड़ा हुआ है क्योंकि वह मोर के प्रिय हैं और मोरपंख उनके संगीत और नृत्य के प्रतीक के रूप में दिखता है।

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