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बिजली महादेव मंदिर, हिमाचल (Bijli Mahadev Temple, Himachal Pradesh)

दर्शन समय

6 AM - 8 PM

बिजली मंदिर के शिवलिंग के 12वें साल में गिरती है बिजली, कुछ दिनों में फिर जुड़ जाता है 


बिजली महादेव मंदिर कुल्लू घाटी के काशवरी में,  2460 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। मंदिर शिव देवता को समर्पित है इसे भारत के प्राचीन मंदिरों में भी गिना जाता है।

मंदिर के अंदर स्थित शिव लिंगम हर 12 साल में रहस्यमय तरीके से बिजली के बोल्ट से टकराता है। इस रहस्य को अभी तक कोई नहीं समझ पाया है और बिजली गिरने की इस घटना की वजह से शिव लिंगम के टुकड़े-टुकड़े हो जाते है।


अनाज-दाल और मक्खन के पेस्ट से जोड़ते हैं


माना जाता है कि मंदिर के पुजारी हर टुकड़ों को इकठ्ठा करके उन्हें अनाज, दाल के आटे और कुछ अनसाल्टेड मक्खन से बने पेस्ट के उपयोग से जोड़ते हैं। कुछ महीनों के बाद शिवलिंग पहले जैसा लगने लगता है। माना जाता है कि यह घटना इस क्षेत्र की विनाश से रक्षा करती है, क्योंकि लिंगम की दिव्य शक्ति बिजली को अवशोषित कर लेती है।


दानव और राक्षस से भी जुड़ी मंदिर की कहानी


किवदंती है कि दानव कुलंत ब्यास नदी के प्रवाह को रोककर पूरी घाटी को जलमग्न करना चाहता था। उसने एक विशाल सांप का रूप धारण किया और लाहौल-स्पीति के मंथन गांव में पहुंच गया। उसके क्रूर इरादे को देखते हुए, भगवान शिव ने उससे युद्ध किया और एक भयंकर युद्ध में उसे हरा दिया। राक्षस की मृत्यु के बाद, उसका पूरा शरीर एक विशाल पर्वत में बदल गया, जिसे अब कुल्लू के नाम से जाना जाता है।

एक अन्य कहानी में भगवान शिव की जालंधर नामक कथित अजेय राक्षस के साथ लड़ाई का वर्णन है। पुराणों के अनुसार, शिव ने इसी स्थान पर उसका वध किया था। सबसे प्रचलित किंवदंती यह है कि ऋषि वशिष्ठ ने भगवान शिव से मानवता को बिजली गिरने और उसके कारण होने वाले विनाश से बचाने का अनुरोध किया था। भगवान शिव ने प्रार्थना स्वीकार कर ली और क्षेत्र को सुरक्षित रखने के लिए बिजली को अपने में समाहित कर लिया। इसके बाद घटनास्थल पर बिजलेश्वर महादेव या बिजली महादेव मंदिर का निर्माण किया गया।


बिजली महादेव मंदिर की वास्तुकला


बिजली महादेव मंदिर को पहाड़ी शैली की वास्तुकला में बनाया गया है जिसे कुल्लू घाटी के अन्य मंदिरों में भी देखा जा सकता है। प्रवेश द्वार के फ्रेम जटिल लकड़ी की नक्काशी से अलंकृत हैं। मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग है इसकी रक्षा नंदी की पत्थर की मूर्ति करती है। गर्भगृह को 60 फीट लंबे डंडे से सजाया गया है। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, डंडा पहाड़ी शहर की सुरक्षा के लिए वायुमंडलीय बिजली को आकर्षित करता है। हर 12 साल में यहां बिजली गिरती है जिससे शिवलिंग नष्ट हो जाता है।


बिजली महादेव मंदिर कैसे पहुंचे


हवाई मार्ग - अगर आप हवाई यात्रा कर रहे हैं तो, आपको भुंतर हवाई अड्डे पर उतरना होगा। यह हिल स्टेशन से 60 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। मनाली पहुंचने के लिए आप टैक्सी किराए पर ले सकते हैं या स्थानीय बस ले सकते हैं।


रेल मार्ग - यहां से सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन जोगिंदर नगर रेलवे स्टेशन है। मनाली पहुंचने के लिए आप रेलवे स्टेशन से टैक्सी किराए पर ले सकते हैं।


सड़क मार्ग - मनाली के आस-पास के सभी प्रमुख शहरों से बस सेवाएं उपलब्ध हैं। ये बसे आपको मनाली बस डिपो पर छोड़ देती हैं। बिजली महादेव मंदिर तक पहुंचने के लिए आप बस, टैक्सी या ऑटो-रिक्शा जैसे स्थानीय परिवहन किराए पर ले सकते हैं।

मंदिर का समय- सुबह 6 बजे से शाम 8 बजे तक खुला रहता है।


डिसक्लेमर

'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है, पाठक या उपयोगकर्ता इसे सिर्फ सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त इसके किसी भी तरह से उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता या पाठक की ही होगी।

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